Market Risk in Mutual Fund: आखिर क्यों बार-बार ये कहा जाता है और हमारे सुनने में आता है कि म्यूचुअल फंड में निवेश बाजार जोखिम के अधीन हैं? ये बाजार जोखिम (Market Risk) क्या हैं? एक जानकार और स्मार्ट निवेशक अपने निवेश से पहले सारी इंफॉर्मेशन कलेक्ट करता है और अपनी सिक्योरिटी की कीमत निर्धारित करने के लिए सभी प्रकार का होमवर्क करता है, फिर भी याद रखें कि अंततः तो मार्केट ही कीमत तय करता है. हरेक निवेशक को ये पता होना चाहिए कि ‘मार्केट’ में किसी भी तरह की सिक्योरिटी के साथ हमेशा एक निश्चित जोखिम मौजूद होता है. आपको ये भी पता होना चाहिए कि म्यूचुअल फंड इस जोखिम को यथासंभव कम करने के लिए ही डिजाइन किए गए हैं.
म्यूचुअल फंड द्वारा विभिन्न सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता हैं और सिक्योरिटीज की प्रकृति फंड के उद्देश्य पर निर्भर करती है.
उदाहरण के लिए, एक इक्विटी या ग्रोथ फंड द्वारा विभिन्न कंपनी के शेयरों में निवेश किया जाता हैं, वहीं लिक्विड फंड द्वारा सर्टिफिकेट्स ऑफ डिपॉडिट (CoD) और कमर्शियल पेपर (CP) में निवेश किया जाता है.
हालांकि, इन सभी सिक्योरिटीज का कारोबार मार्केट में किया जाता है. जैसे कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से खरीदे और बेचे जाते हैं, जो कैपिटल मार्केट का हिस्सा है.
इसी तरह, सरकारी प्रतिभूतियों जैसे ऋण उपकरणों में स्टॉक एक्सचेंज में एक मंच के माध्यम से या एनडीएस नामक विशेष प्रणालियों के माध्यम से कारोबार किया जा सकता है.
ये प्रतिभूतियों को खरीदने और बेचने के लिए बाजारों के रूप में काम करते हैं और खरीदार और विक्रेता में काफी विविधता होती है. यानी, खरीदने और बेचने की पूरी प्रक्रिया, और मूल्य निर्धारण ‘मार्केट’ द्वारा किया जाता है.
किसी भी सिक्योरिटी की कीमत ‘मार्केट फॉर्स’ पर निर्भर होती है और बाजार किसी भी समाचार या गतिविधि के आधार पर अपनी दिशा तय करता है, इसलिए मार्केट की दिशा का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है, शॉर्ट-टर्म के लिए किसी शेयर या सिक्यॉरिटी की कीमत की भविष्यवाणी करना असंभव है. मार्केट कि दिशा को प्रभावित करने में बहुत सारे कारक और खिलाड़ी हैं.
कंसंट्रेशन रिस्कः किसी एक सेक्टर या एक स्टॉक या एक एसेट में पूरा पैसा लगाने से ये रिस्क बढ़ जाता है.
उपायः कंसंट्रेशन रिस्क से दूर रहने के लिए आपको डाइवर्सिफिकेशन का हथियार आजमाना चाहिए.
इंटरेस्ट रेट और इंफ्लेशन रिस्कः साइलेंट किलर कहा जाने वाला ये रिस्क आपके निवेश के मूल्य पर प्रभाव डालता है. आपके रिटर्न के मुकाबले इंफ्लेशन की दर ज्यादा हो, तो आपको नेगेटिव रिटर्न मिलता हैं और नुकसान होता है.
उपायः इंफ्लेशन रेट से अधिक रिटर्न मिले ऐसे साधनों में निवेश करना चाहिए. इंटरेस्ट रेट में बदलाव से बहुत जल्दी प्रभावित होने वाले सेक्टर्स (बैंक, NBFC, रियल एस्टेट, ऑटो) के साथ बॉन्ड इत्यादि में निवेश करके पोर्टफोलियो बनाना चाहिए.
करेंसी रिस्कः ये जोखिम डॉलर के मुकाबले आपके रुपये के पोर्टफोलियो प्रभावित करता हैं. आईटी, फार्मा और ऑटो सहायक अनिवार्य रूप से निर्यात-उन्मुख हैं और मजबूत डॉलर से लाभान्वित होते हैं, वहीं पूंजीगत सामान, बिजली और दूरसंचार जैसे क्षेत्र आयातक हैं और रुपये के मजबूत होने से लाभान्वित होते हैं.
उपायः पोर्टफोलियो बनाते वक्त अपने जोखिम को हेज करने के लिए डॉलर के रक्षात्मक और रुपये के रक्षात्मक दोनों का मिश्रण रखें.
वोलैटिलिटी रिस्कः चाहे आप बॉन्ड या इक्विटी में निवेश कर रहे हों, वोलैटिलिटी (अस्थिरता) आपका पीछा नहीं छोड़ती. जब आप शॉर्ट-टर्म के लिए निवेश करते हैं, तो ये जोखिम काफी ज्यादा रहता हैं.
उपायः आप दीर्घकालिक और व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाकर अस्थिरता का प्रबंधन कर सकते हैं. इक्विटी में उतार-चढ़ाव
लंबी अवधि के साथ बराबर हो जाता है. इसके अलावा, एक व्यवस्थित या चरणबद्ध दृष्टिकोण अस्थिरता को दूर करने में मदद करता है.
लिक्विडिटी रिस्कः यह जोखिम तब उत्पन्न होता है जब निवेशक बिना किसी नुकसान के अपना निवेश रीडिम करने में असमर्थ होता है. म्यूचुअल फंड में, इक्विटी-लिंक्ड फंड (ELSS) में 3 साल का लोक-इन पीरियड होने की वजह से यह जोखिम इस अवधि के दौरान अधिक रहता है.
उपायः लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए लिक्विड फंड, बैंक एफडी जैसे साधनों में थोडा निवेश रखना चाहिए. स्टॉक के मामले में जब बाजार में उतार-चढ़ाव होता है, तब यह समस्या और गंभीर हो जाती हैं. हालांकि, सामान्य बाजार स्थितियों में, आप कम प्रभाव-लागत वाले शेयरों पर टिके रहकर इस जोखिम से बच सकते हैं.