T+1 साइकिल, पीक मार्जिन नॉर्म्स निवेशकों के हित में: सेबी प्रमुख

SEBI: T+3 से T+2 में परिवर्तन 18 साल पहले हुआ था. अब इसे और कम करने की आवश्यकता है क्योंकि पेमेंट और बैंकिंग सिस्टम में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं

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Pixabay - 2021 के लिए, लीड मैनेजर्स की फीस इश्यू खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा है. ये जुटाई राशि का 2.2% है.

Pixabay - 2021 के लिए, लीड मैनेजर्स की फीस इश्यू खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा है. ये जुटाई राशि का 2.2% है.
SEBI: सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) के चेयरमैन अजय त्यागी ने रेगुलेटर के घोषित हालिया सुधारों को निवेशकों के हित में बताया है. सेबी ने हाल ही में पीक मार्जिन मानदंड (peak margin norms) और ट्रेड सेटलमेंट साइकिल को छोटे करने जैसे बदलाव का प्रस्ताव दिया है. ब्रोकिंग कम्युनिटी और फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) ने सेबी के इस कदम का विरोध किया था. CII फाइनेंशियल मार्केट्स समिट में अपने उद्घाटन भाषण के बाद मीडिया से बात करते हुए, त्यागी ने कहा: ‘जल्दी सेटलमेंट सभी बाजार सहभागियों (market participants) के लिए अच्छा होगा. यह सभी के हित में है.’ उन्होंने कहा, ‘T+3 से T+2 में परिवर्तन करीब 18 साल पहले 2003 में हुआ था. अब इसे और कम करने की आवश्यकता है क्योंकि पेमेंट और बैंकिंग सिस्टम में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं. निवेशकों को ये अधिकार है कि उन्होंने जो खरीदारी की है उन्हें वो जल्द से जल्द मिले.

वर्तमान में फॉलो होता है T+2 सेटलमेंट साइकिल

वर्तमान में, भारत एक T+2 सेटलमेंट साइकिल को फॉलो किया जाता है. इसका अर्थ है कि ट्रेड के दिन के बाद दो वर्किंग डे में एक्सचेंजों पर ट्रेडों का सेटलमेंट होता है. T+1 साइकिल से, अगले वर्किंग डे पर ही ट्रेडों का सेटलमेंट किया जाएगा.
7 सितंबर को, सेबी ने 1 जनवरी, 2022 से घरेलू बाजारों के लिए एक वैकल्पिक टी+1 सेटलमेंट साइकिल को लेकर सर्कुलर जारी किया था.
नियामक ने स्टॉक एक्सचेंजों को यह तय करने का निर्देश दिया है कि क्या वे लिस्टेड शेयरों में से किसी के लिए छोटे साइकिल का विकल्प चुनना चाहते हैं. त्यागी ने कहा कि एफपीआई की चिंताओं और चुनौतियों के कारण सेबी चरणबद्ध तरीके से छोटे सेटलमेंट साइकिल की ओर बढ़ रहा है.

FPI ने इन वजहों से किया था विरोध

FPI ने कई ऑपरेशनल चैलेंजेज जैसे टाइम जोन डिफरेंस और विदेशी मुद्रा से संबंधित मुद्दों का हवाला देते हुए इस कदम का विरोध किया है.
इनमें से कुछ चिंताओं को दूर करते हुए, त्यागी ने कहा कि FPI 1999 से डेरिवेटिव मार्केट में इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं, जहां अग्रिम भुगतान (upfront payments) की आवश्यकता होती है.

FPI IPO मार्केट में भी निवेश करते हैं जहां पैसा सात दिनों के लिए ब्लॉक हो जाते हैं. यूएस क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ने भी टी+1 सेटलमेंट के लिए एक डिस्कशन पेपर तैयार किया है.’

क्या इससे तरलता प्रभावित होगी?

सेबी प्रमुख ने कहा कि मौजूदा समय में बीएसई एक्सचेंज में डोमेस्टिक इन्वेस्टरों की हिस्सेदारी 95% है. यह पूछे जाने पर कि क्या अलग-अलग एक्सचेंज के अलग-अलग सेटलमेंट साइकिल को चुनने से तरलता (liquidity) प्रभावित होगी?
त्यागी ने कहा: ‘लिक्विडिटी इससे प्रभावित नहीं होगी. समग्र तरलता और लागत को ध्यान में रखते हुए, निवेशक निर्णय लेंगे कि उन्हें कहां ट्रेड करना है.’

सभी के हित में नए पीक मार्जिन नॉर्म्स

नए मार्जिन नॉर्म्स को लेकर सेबी प्रमुख ने कहा, ‘नए पीक मार्जिन मानदंड सभी के हित में हैं. एक निवेशक के मार्जिन का इस्तेमाल दूसरों के लिए या ब्रोकर्स की प्रोपराइटरी ट्रेडिंग के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
रिटेल पार्टिसिपेशन में बढ़ोतरी को देखते हुए, उच्च मार्जिन मानदंड हमें मन की शांति और आश्वासन देंगे कि कुछ भी गलत नहीं होगा.’

1 सितंबर से सेबी ने ब्रोकरेज को इक्विटी और डेरिवेटिव ट्रेडिंग दोनों के लिए कोई अतिरिक्त इंट्राडे लीवरेज (additional intraday leverages) देने से रोक दिया है.

इसका मतलब है कि निवेशकों को न्यूनतम मार्जिन प्रदान करना आवश्यक है – शेयरों के लिए VR+ ELM और डेरिवेटिव के लिए SPAN+Exposer, यहां तक कि इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए भी. SPAN का मतलब है स्टैंडर्ड पोर्टफोलियो एनालिसिस ऑफ रिस्क और ELM का मतलब एक्सट्रीम लॉस मार्जिन.
Published - September 17, 2021, 04:15 IST