भारतीय शेयर बाजारों की रिकॉर्ड तोड़ तेजी और आम निवेशकों द्वारा अच्छा प्रॉफिट बनाने की रिपोर्ट्स से इतर बड़ी भारी संख्या में लोग अभी भी स्मॉल सेविंग स्कीम्स में अपना विश्वास बनाए हुए हैं. डाक विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि छोटे बचतकर्ताओं के लगभग 37 करोड़ व्यक्तिगत खाते हैं, जो इक्विटी में निवेश करने के लिए आवश्यक डीमैट खातों की तुलना में 500 फीसदी से अधिक हैं.
हालांकि, देश में घटती ब्याज दरों ने हाल ही में कई लोगों को इक्विटी बाजारों और म्यूचुअल फंड उद्योग के साथ अपनी किस्मत आजमाने के लिए प्रेरित किया है. फिर भी बाजारों में अनिश्चितता का फैक्टर और उनमें निवेश की जटिलता बहुत से लोगों को बाजारों से दूर रखे हुई है. इसके अलावा वित्तीय सलाहकार भी लोगों को निर्देश देते हैं कि वे इक्विटी बाजारों पर कम निर्भर रहें और अपने कोष का बड़ा हिस्सा डेट इंस्ट्रूमेंट्स की ओर ले जाएं, क्योंकि वहां जोखिम काफी कम होता है.
स्मॉल सेविंग स्कीम्स हमारे लाखों देशवासियों के विश्वास का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनमें पीपीएफ, एनएससी, एमआईएस, सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम, पीएम वय वंदन योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं. कई निवेशक अपने मासिक खर्च को पूरा करने के लिए इन योजनाओं पर निर्भर हैं.
आबादी का एक बड़ा वर्ग जो अपनी मेहनत की कमाई को अपनी पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए एक भरोसेमंद रास्ते की तलाश में स्मॉल सेविंग स्कीम्स में निवेश करता है, उसे हर तिमाही यह डर लगा रहता है कि कहीं स्मॉल सेविंग स्कीम्स पर ब्याज दरों में कटौती ना हो जाए.
सरकार को इन दरों को बनाए रखना चाहिए, जो आबादी के एक बड़े हिस्से के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं, न केवल अक्टूबर-दिसंबर 2021 तिमाही के लिए, बल्कि महामारी के पूरी तरह समाप्त होने और अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने तक. राजनीतिक पंडित यह संकेत दे सकते हैं कि अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों को देखते हुए दरों में कटौती से दूरी बनाई जा सकती है, लेकिन अपेक्षा से अधित प्रत्यक्ष कर राजस्व में वृद्धि, एक आर्थिक कारण बनना चाहिए. चुनाव समाप्त होने के बाद भी कुछ समय के लिए दर में कटौती से दूर रहना चाहिए.