रिजर्व बैंक की हाल ही में लॉन्च की गई रिटेल डायरेक्ट बॉन्ड स्कीम (Retail Direct Bond Scheme) में नॉन-रेसिडेंट इंडियंस (NRI) की खासी दिलचस्पी देखी जा रही है. वेल्थ मैनेजर्स के पास इस स्कीम के लिए अकाउंट ओपन करने को लेकर NRI के कई सवाल आ रहे हैं. इस स्कीम के तहत रिटेल इन्वेस्टर्स भी सरकारी प्रतिभूतियों को ऑनलाइन खरीद और बेच सकते हैं. इकोनॉमिक टाइम्स ने इसे लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की है.
सिनर्जी कैपिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर विक्रम दलाल ने कहा, ‘हमें दुनिया भर में अपने एनआरआई (NRI) निवेशकों से बहुत सारे सवाल मिल रहे हैं, चाहे वह यूएस, यूके, सिंगापुर या दुबई हो.’ दलाल ने कहा कि ‘एनआरआई (NRI) अपने कैश फ्लो के लिए लंबी अवधि के डेट प्रोडक्ट से एक स्थिर इनकम की तलाश कर रहे हैं.’
रिजर्व बैंक की ओर से घोषित रिटेल डायरेक्ट स्कीम के तहत, एनआरआई (NRI) विदेश में बैठकर अपना खाता खोल सकता है और सरकारी प्रतिभूतियां खरीद सकता है. विकसित बाजारों में ब्याज दरें 1-2% की सीमा में हैं, जबकि भारत सरकार के बॉन्ड्स पर 6.5-7% की यील्ड निवेशकों को आकर्षित कर रही है.
फाइनेंशियल प्लानर्स का कहना है कि 2050 में मैच्योर होने वाले बॉन्ड में 6.91% की यील्ड मिल सकती, जबकि 2058-2061 में मैच्योर होने वाले बॉन्ड 7-7.1% की यील्ड दे सकते हैं. रूंगटा सिक्योरिटीज के चीफ फाइनेंशियल प्लानर हर्षवर्धन रूंगटा ने कहा, ‘आपको निश्चित रूप से कैश फ्लो मिलता है, क्योंकि ये बॉन्ड निश्चित रिटर्न देते हैं. आप सभी निवेशों को ऑनलाइन हैंडल कर सकते हैं.’
एनआरआई पब्लिक प्रोविडेंट फंड, किसान विकास पत्र और नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट जैसी छोटी बचत और डाक योजनाओं में निवेश नहीं कर सकते हैं. वहीं सख्त अनुपालन की वजह से उनका पीएसयू या कॉरपोरेट बॉन्ड में सीधे निवेश करना बहुत मुश्किल हो जाता था. अमेरिका और कनाडा के एनआरआई को म्यूचुअल फंड हाउस के प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ता है और बहुत कम ही उन्हें निवेश करने की अनुमति देते हैं. इसके अलावा, म्यूचुअल फंड में एक्सपेंस रेश्यो उनके रिटर्न को कम कर देता है.
एनआरआई बैंक डिपॉजिट और कॉरपोरेट डिपॉजिट में निवेश कर सकते हैं, लेकिन ये केवल 5-10 वर्षों के टेन्योर के लिए उपलब्ध हैं. लंबी अवधि के प्रोडक्ट निवेशक को उस रेट पर निवेश को लॉक करने का विकल्प देते हैं, जिससे कैश फ्लो की प्रिडिक्टिबिलिटी मिलती है. छोटी अवधि के प्रोडक्ट में रीइन्वेस्टमेंट रिस्क होता है, जिससे कैश फ्लो का प्लान बनाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि ब्याज दरें बदल सकती हैं.