Mutual Fund Fact Sheet: म्यूचुअल फंड फैक्टशीट एक दस्तावेज है, जिसमें फंड की सारी जानकारी दी जाती हैं. आपको निवेश करने से पहले फंड के बारे में सारी जानकारी हासिल करनी चाहिए और इसके लिए सेबी ने सभी फंड हाउस को फैक्ट शीट जारी करने का आदेश दिया हुआ है. सभी फंड की फैक्ट शीट में समानता रखने का भी आदेश दिया गया है, ताकि निवेशक को विभिन्न फंड की फैक्ट शीट में आसानी हो सके. इस शीट में निवेशक के काम आने वाली कई प्रकार की जरूरी जानकारी होती हैं, जिसे पढ़ने से आपको फंड चुनने में मदद मिलती है. यदि आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो आपको फंड को अच्छी तरह से जानना जरूरी है. आख बंद करके और किसी की सिफारिश सुनकर निवेश नहीं करना चाहिए.
– किसी भी म्यूचुअल फंड की फैक्टशीट में उसका निवेश करने का उद्देश्य लिखा होता हैं. फंड की कैटेगरी (लार्ज, स्मौल, मिड, मल्टि-कैप, फ्लेक्सि-कैप इत्यादि), स्कीम की नेट एसेट वैल्यू (NAV), प्लान के विकल्प (डायरेक्ट, ग्रोथ या डिविडेंड) भी इसमें लिखे होते हैं.
– इसके अलावा फंड कितने प्रकार के खर्च करता हैं और उसे फंड का प्रबंधन करने के लिए कितनी लागत उठानी पडती हैं वह लिखा होता हैं.
– फंड हाउस का कुल एसेट अंडर मेनेजमेन्ट (AUM) कितना हैं, उसका टोटल एक्सपेंस रेश्यो (TER) कितना है, फंड मैनेजर कौन हैं, उसका अगला रिकॉर्ड कैसा है वगैरह जानकारी इस पत्रक में शामिल की जाती हैं.
– फंड के इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में किस तरह के एसेट, शेयर, बॉन्ड इत्यादि शामिल हैं उसकी जानकारी होती है.
– फंड का बैन्चमार्क (निफ्टी50, निफ्टी मिडकैप 150, निफ्टी 200 TRI वगैरह), एग्जिट लॉड, न्यूनतम निवेश जैसी जानकारी को फैक्टशीट में शामिल किया जाता है.
मान लीजिए, आपने किसी लक्ष्य के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करने का फैसला किया है तो आपका फंड आपके लक्ष्यों के मुताबिक निवेश करता है या नहीं इसका पता उसकी फैक्ट शीट से चल सकता है. आपकी जोखिम लेने की क्षमता के अनुसार यह फंड निवेश करता है या नहीं उसका पता भी आपको फैक्टशीट से चलता है. आप यदि किसी फंड को चुनते है तो क्या उससे आपका टार्गेट हासिल होगा या नहीं यह पता करने में भी फैक्ट शीट आपकी मदद कर सकती है.
रिस्कोमीटर से आपको फंड कितना रिस्की है यह पता चलता हैं. इसे पांच कैटेगरी में विभाजित किया जाता है – कम जोखिम, मध्यम जोखिम, मध्यम, मध्यम से अधिक और सबसे अधिक जोखिम वाली कैटेगरी.
स्टैंडर्ड डेविएशन से आपको फंड कितना वोलेटाइल है यह पता करने में मदद मिलती है. यह रेशियो एक स्टैस्टिकल मेजरमेंट है. आपके फंड का स्टैंडर्ड डेविएशन जितना अधिक होगा, कीमत में भी उतना ज्यादा फर्क दिखेगा. जैसे वोलेटाइल स्टॉक में ज्यादा स्टैंडर्ड डेविएशन होता हैं, वहीं स्थिर ब्लूचिप स्टॉक का डेविएशन आम तौर पर कम पाया जाता है.
किसी भी फंड की फैक्टशीट में आपको कुछ अहम रेश्यो को देखना चाहिए, जिसमें एक है शार्प रेश्यो. यह रेश्यो म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन मापने का एक मानक हैं. ज्यादा शार्प रेश्यो का मतलब है ज्यादा जोखिम के बिना ज्यादा रिटर्न. शार्प रेश्यो रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न का अनुमान लगाने का अच्छा तरीका माना जाता हैं. निवेशकों को हमेशा शार्प रेश्यो को दर्शाने वाला फंड चुनना चाहिए. फंड का पोर्टफॉलियो टर्नओवर रेशियो जितना कम होगा उतना वह फंड अच्छा माना जाता हैं.
फैक्ट शीट में कई अहम चीजें होती हैं, जिसके बारे में आपको जानना बेहद आवश्यक है. आपको किसी भी फंड की फैक्ट शीट में उसकी कैटेगरी, फंड मैनेजर की प्रोफाइल, फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड, फंड का बेंचमार्क इत्यादि को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. इनके अलावा फंड कितने साल पुराना है ये जानकारी भी देखनी चाहिए क्योंकि आमतौर पर 3 साल पुराने फंड में निवेश करना बेहतर माना जाता है. आपको फैक्ट शीट में शामिल स्टैंडर्ड डेविएशन, बीटा, शार्प, आर-स्कॉयर जैसे अहम रेशियो को भी देख लेना चाहिए.