पोर्टफोलियो आपकी निवेश की गइ एमाउंट है जो आपने अलग-अलग एसेट क्लास जैसे इक्विटी, डेट, प्रोपर्टी या गोल्ड में इंवेस्ट की हुइ है. ये सारे एसेट क्लास की समय समय पर रिबैलेंसिंग करना जरुरी है. अगर आप एक म्यूचुअल फंड इंवेस्टर है तो इस बात को अच्छी तरह से जानते होंगे. म्यूचुअल फंड विशेषज्ञ साल में एक बार पोर्टफोलियो की समीक्षा करने की सलाह देते हैं. वे जरूरी होने पर रीबैलेंसिंग की भी सलाह देते हैं.
रीबैलेंसिंग एक प्रक्रिया है. समय के साथ, इक्विटी और फिक्स्ड इनकम में अलग-अलग दरों से रिटर्न मिलता है. इससे ऐसेट एलोकेशन आपके मनमुताबिक नहीं रहकर बदल जाता है. इन दोनों के बीच फंड को शिफ्ट कर आप मनचाहा ऐसेट एलोकेशन करते हैं. इसे एसेट री-बैलेंसिंग कहते हैं.
इसके जरिये आप अपने पोर्टफोलियो में एसेट के अनुपात में बदलाव करते हैं. मसलन आप चाहें तो अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी यानी शेयरों का हिस्सा बढ़ा या घटा सकते हैं. अगर बाजार में तेजी बनी रहती है तो शेयरों में आपका निवेश बढ़ जाता है. अगर शेयर कमजोर होते हैं तो आपका निवेश घट जाता है. इस हिसाब से आप चाहें तो पोर्टफोलियो में डेट का हिस्सा बढ़ा सकते हैं या गोल्ड में निवेश कम या ज्यादा कर सकते हैं.
जानकारो के मुताबिक आप साल में एक बार अपना पोर्टफोलियो री-बैलेंस कर सकते हैं. अगर बाजार में कोई बड़ी घटना हुई हो, तब आपको पोर्टफोलियो की री बैलेंसिंग जरूर करनी चाहिए. अगर शेयर बाजार में छह महीने में 50% तेजी आती है तो आपको पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग जरूर करनी चाहिए.
दो प्रकार के इंवेस्टर होते हैं. (1) कंजर्वेटिव और (2) एग्रेसिव. कंजर्वेटिव इंवेस्टर वो है जो ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहता. इसलिए वो अपना 60% एसेट एलोकेशन डेट में, 20% कैश में और 20% इक्विटी में इंवेस्ट करता है. जबकी एग्रेसिव इंवेस्टर 60% इक्विटी में, 30% डेट में और बाकी का 10% कैश हाथ पर रखता है.
आप किसी एक एसेट क्लास की यूनिट को बेचकर उस एसेट की खरीदारी कर सकते हैं जिसमें कमजोरी हो. अगर आप नया निवेश कर रहे हैं तो आपको उन एसेट में पैसे लगाने चाहिए जो पीछे छूट गया है. यहां ध्यान रखें की किसी भी निवेशक को अपने पोर्टफोलियो का एलोकेशन अपने लक्ष्य के हिसाब से करना चाहिए. निवेश गोल आधारित होना चाहिए और उसी आधार पर एसेट एलोकेशन भी होना चाहिए.
इसको एक उदाहरण से समजते हैं. एक व्यक्ति है जिसका नाम सुरेश है. सुरेश ने अपना 60% इक्विटी में और 40% फिक्सड इनकम में निवेश किया है. ये उनका टार्गेटेड पोर्टफोलियो रेशियो है. अब हो सकता है की कुछ दिन बाद ये रेशियो बदल जाए. यानी अगर इक्विटी मार्केट में तेजी आइ तो सुरेश का पोर्टफोलियो 80% इक्विटी में और 20% डेट मार्केट का हो जाएगा. अब यहां सुरेश अपने पोर्टफोलियो का रि-एलोकेशन करेगा. सुरेश अपने पोर्टफोलियो में जो 20% ज्यादा इक्विटी में आया है उसे बेचकर वही रकम को डेट में इंवेस्ट करेगा. तो ये एक रिबैलेंसिंग स्ट्रेटेजी है.
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