म्यूचुअल फंड (MF) में निवेश से आप ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप अपने पोर्टफोलियो को बेहतर बनाएं. हर गोल के लिए एक नया फंड लेने के बजाय जरूरी है कि आप अपने पोर्टफोलियो को सोच-समझकर बनाएं. ज्यादातर निवेशकों के लक्ष्य आमतौर पर एक जैसे ही होते हैं, लेकिन उम्र और जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर ये लक्ष्य हासिल करने के लिए म्यूचुअल फंड का सही इस्तेमाल करना जरूरी है. ऐसे में एक म्यूचुअल फंड निवेशक के तौर पर आपभी ये चाहेंगे कि पोर्टफोलियो में भी एसी कलरफुल स्कीम शामिल हों जो लंबी अवधि में आपके जीवन में खुशियों के रंग भर सके.
डायवर्सिफिकेशन करें
इन्वेस्टमेंट डायवर्सिफिकेशन, पोर्टफोलियो रिस्क को मैनेज करने का बहुत बढ़िया तरीका है. लेकिन, कई इन्वेस्टरों को यह गलतफहमी है कि डायवर्सिफिकेशन और कुछ नहीं बल्कि एक से अधिक इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करना है जिससे वे ढेर सारे प्रोडक्ट्स और स्कीम्स में इन्वेस्ट कर बैठते हैं. लेकिन, बहुत ज्यादा इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करना, ओवर-डायवर्सिफिकेशन कहलाता है जिससे सभी इन्वेस्टमेंट्स को मैनेज करना मुश्किल तो होता ही है, पोर्टफोलियो की रिटर्न क्षमता भी कम हो जाती है.
सबसे पहले देखें की आप कितना जोखिम उठा सकते हैं, अपनी जोखिम क्षमता के मुताबिक ही इंस्ट्रूमेंट्स चुनना चाहिए. पोर्टफोलियो बनाते वक्त भविष्य के लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए. इंवेस्ट करने के लिए हाइब्रिड फंड का चुनाव कर सकते हैं. हाइब्रिड फंड का निवेश डेट और इक्विटी दोनो में होता है. इक्विटी के मुकाबले इसमें जोखिम भी कम रहता है. इसके अलावा टेक्स सेविंग के लिए ELSS फंड भी एक बहेतरीन विकल्प है. अगर इसका लॉक-इन पीरियड पूरा हो चुका है तो पुराने निवेश को भुनाएं और नया निवेश शुरू करें.
पोर्टफोलियो में कितने फंड होने चाहिए
म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो में कितने फंड होने चाहिए ये आपकी जोखिम क्षमता पर निर्भर करता है. लेकिन एक औसत जोखिम क्षमता वाले पोर्टफोलियो में 4-6 फंड काफी होते हैं. हमने उपर बताया की कैसे पोर्टफोलियो का डायवर्सिफाई होना बेहद जरूरी है. इसलिए असेट एलोकेशन करें और लक्ष्यों के मुताबिक फंड चुनें.
भविष्य की जरुरीयात को ध्यान में रखें
म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो को इस तरह से तैयार करें कि वे लक्ष्यों पर आधारित हों. आपको यह अनुमान भी होना चाहिए कि भविष्य की तिथियों पर आपके लक्ष्य को पाने के लिए कितने धन की जरूरत होगी.
मान लीजिए, आप एक नौजवान इन्वेस्टर हैं और आपने इक्विटी स्कीम्स में अपने पोर्टफोलियो का 80% और डेब्ट में 20% इन्वेस्ट किया है. अब, इक्विटी स्कीम्स में 80% में से, एक ही फंड में पूरा पैसा आवंटित करने के बजाय उसे अपनी रिटर्न उम्मीद के अनुसार स्मॉल, मिड और लार्ज-कैप इक्विटी म्यूच्यूअल फंड्स में आवंटित करना चाहिए. अलग-अलग एसेट क्लास में फंड आवंटन का अनुपात, इन्वेस्टर की उम्र और रिस्क चाहत में बदलाव के साथ धीरे-धीरे बदलते रहना चाहिए.
सैटेलाइट और कोर एप्रोच
कोर-सैटेलाइट इन्वेस्टिंग पोर्टफोलियो बनाने का एक तरीका है. इसमें खर्च, टैक्स लायबिलिटी, उतार-चढ़ाव कम करने की रणनीति शामिल होती है. कोर पोर्टफोलियो जहां स्थिरता प्रदान करता है. वहीं, सेटेलाइट का मकसद रिस्क के साथ बढ़िया रिटर्न देने का है. कोर पोर्टफोलियो में पैसिव इन्वेस्टमेंट शामिल है. इसमें सेंसेक्स और निफ्टी को फॉलो करने वाले इंस्ट्रूमेंट, पोर्टफोलियो में मजबूत और अच्छा प्रदर्शन करने वाले फंड को रखा जाता है. जबकी सैटेलाइट पोर्टफोलियो का एक्टिव मैनेजमेंट जरूरी है. सैटेलाइट फंड्स में रीबैलेंसिंग होती रहती है. डायवर्सिफिकेशन से जोखिम कम करने की कोशिश होती है. सैटेलाइट पोर्टफोलियो में जोखिम भरी स्कीम शामिल रहती है.