क्या गवर्नमेंट बॉन्ड में नहीं होता है कोई रिस्क, जनिए क्या कहते है एक्सपर्ट्स

गवर्नमेंट बॉन्ड में इन्फ्लेशन का रिस्क भी होता है. यदि इन्फ्लेशन रेट हाई है तो बॉन्ड से प्राप्त कैश फ्लो की पर्चेजिंग पॉवर घट जाएगी.

  • Team Money9
  • Updated Date - September 4, 2021, 12:44 IST
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बांड पर मिलने वाले ब्याज को बांड यील्ड कहा जाता है. बांड पर पहले से ही तय दरों पर ब्याज मिलता है. इसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता

बांड पर मिलने वाले ब्याज को बांड यील्ड कहा जाता है. बांड पर पहले से ही तय दरों पर ब्याज मिलता है. इसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता

ज्यादातर लोग गवर्नमेंट बॉन्ड (Government Bond) में इसलिए निवेश करते हैं. क्योंकि उसमें कम रिस्क होता है. यहां तक की बड़े पैमाने पर इसे इन्वेस्टमेंट के रिस्क फ्री तरीके के रूप में देखा जाता है, लेकिन क्या वाकई में ऐसा है? क्या सच में गवर्नमेंट बॉन्ड (Government Bond) रिस्क फ्री होते हैं? किसी देश की केंद्र या फ़ेडरल गवर्नमेंट द्वारा जारी किए गए बॉन्ड डिफ़ॉल्ट के रिस्क से फ्री हो सकते हैं. लेकिन ऐसे और भी कई सारे रिस्क हैं जो गवर्नमेंट बॉन्ड (Government Bond) से जुड़े होते हैं. इंटरेस्ट रेट रिस्क और इन्फ्लेशन रिस्क हमेशा किसी भी बॉन्डधारक को परेशान कर सकते हैं. आज गवर्नमेंट बॉन्ड से जुड़े इन्हीं रिस्क को एक्सपर्ट्स से डिटेल में समझते हैं.

विंट वेल्थ के को फाउंडर अजिंक्य कुलकर्णी के मुताबिक गवर्नमेंट बॉन्ड को रिस्क फ्री माना जाता है. क्योंकि इसमें सॉवरेन गारंटी होती है. डेब्ट सिक्योरिटीज में निवेशकों का ध्यान डिफ़ॉल्ट रिस्क पर ज्यादा होता है. लेकिन ऐसे और भी कई रिस्क हैं जो गवर्नमेंट बॉन्ड के साथ जुड़े होते है. जैसे कि लिक्विडिटी रिस्क, मार्केट रिस्क या इंटरेस्ट रेट रिस्क जिन्हें नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

इंटरेस्ट रेट रिस्क का सीधा प्रभाव बॉन्डधारक पर दो तरह से पड़ता है. सबसे पहले सभी बॉन्ड (जीरो-कूपन बॉन्ड को छोड़कर) पीरियाडिक कूपन का भुगतान करते हैं. जिन्हें रिटन्‌ पर कंपाउंड इंटरेस्ट पाने के लिए रीइन्वेस्ट करने की आवश्यकता होती है. इसलिए रीइन्वेस्ट करना एक रिस्क है क्योंकि जब कूपन का भुगतान किया जाता है तो ब्याज दरें कम होने की संभावना होती है.

रीइनवेस्‍ट में है रिस्‍क भी

अजिंक्य कुलकर्णी का ये भी कहना है कि रीइन्वेस्ट करने पर एक रिस्क ये भी होता है कि नए निवेश में उपयोग किए जाने पर, बॉन्ड में निवेश से प्राप्त कैश फ्लो कम हो जाता है. एक उदहारण से समझते हैं मान लीजिए यदि बॉन्ड की मार्किट रेट 5% है और आप 5,000 रुपये प्रति वर्ष की उम्मीद से 5 साल के लिए 1,00,000 रुपये के बांड खरीदते हैं. अब उन पांच वर्षों में बांड की दर 2% तक गिर भी सकती है. ऐसे में समस्या यह है कि यदि निवेशक दूसरा बॉन्ड खरीदता है, तो उन्हें अब 5% ब्याज भुगतान प्राप्त नहीं होगा.

कभी भी अधिक हो सकती हैं ब्‍याज दरें

इंटरेस्ट रेट से जुड़ा दूसरा रिस्क ये है कि जब सेकेंडरी मार्केट में बॉन्ड बेचा जाता है तो ब्याज दरें कभी-कभी अधिक हो सकती हैं.ऐसे में अगर प्रेवेलिंग यील्ड ज्यादा है. तो बांडधारक को प्राप्त मूल्य काफी कम होगा.

इसलिए विंट वेल्थ के को फाउंडर अजिंक्य कुलकर्णी का कहना है कि यदि आपने किसी ऐसे बॉन्ड में निवेश किया है जब ब्याज दर 5% थी और आने वाले बॉन्ड के लिए यील्ड अचानक 6% तक बढ़ जाती है. तो आपको बॉन्ड को डिस्काउंट पर बेचना होगा क्योंकि बाजार में पहले से ही 6% यील्ड वाला बॉन्ड मौजूद है.

इसके अलावा गवर्नमेंट बॉन्ड में इन्फ्लेशन का रिस्क भी होता है. यदि इन्फ्लेशन रेट हाई है तो बॉन्ड से प्राप्त कैश फ्लो की परचेजिंग पॉवर घट जाएगी. आप भले ही अपने बॉन्डों को समाप्त करने में सक्षम हो सकते हैं. लेकिन फिर भी इसमें कुछ रिस्क होता है. यदि आप उस समय पर कैश आउट नहीं कर सकते हैं जब बॉन्ड में सबसे अधिक कैश फ्लो होता है तो आपको नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है. इसलिए गवर्नमेंट बॉन्ड में लिक्विडिटी का रिस्क हमेशा बना रहता है.

Published - September 4, 2021, 12:44 IST