Invoice Discounting: केवल 90 दिन में 13%-15% रिटर्न कमाना चाहते हैं? तो आप ‘इनवॉइस डिस्काउंटिंग इंवेस्टमेंट’को अपना सकते हैं.
अब तक इसमें बैंक, वित्तीय संस्थान, अल्ट्रा हाई नेटवर्थ इन्डिविजुअल (UHNIs) और HNIs जैसे बड़े निवेशक ही पैसे डालते थे, लेकिन अब छोटे निवेशक के लिए भी ये विकल्प उपलब्ध है.
बिजनेस के साथ जुड़े लोग इसके बारे में भली-भांति जानते हैं. कारोबारियों को इनवॉइस/बिल डिस्काउंटिंग की सुविधा बैंक या सरकार के NSIC (नेशनल स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन) जैसे संस्थानों से मिलती है.
इसके तहत कारोबारी उनकी वर्किंग कैपिटल की जरूरत पूरी करते हैं. जब कोई कारोबारी किसी कंपनी को उसके ऑर्डर की आपूर्ति करता है, तो उसे तुरंत कंपनी के तरफ से भुगतान नहीं मिलता है.
कोरोना के बाद तो पेमेंट साइकिल 4-5 महीने की हो गई है, ऐसे में कारोबारी बिल डिस्काउंटिंग के तहत वित्तीय संस्थान को ऑर्डर का बिल देकर तुरंत भुगतान राशि प्राप्त कर लेता है.
प्लास्टिक पैकेट बनाने वाले एक कारोबारी को निजी कंपनी से 1 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है, लेकिन ये कंपनी ऑर्डर पूरा होने के 90 दिन बाद ही पेमेंट दे सकती है.
अब इतनी अवधि तक वर्किंग कैपिटल की जरूरत को पूरा करने के लिए कारोबारी इनवॉइस डिस्काउंटिंग के तहत बड़े इंवेस्टर के पास 1 करोड़ रुपये के बिल के बदले 97 लाख रुपये लेकर समस्या का हल निकाल लेता है.
उसे 97 लाख रुपये देने वाली संस्था को 90 दिन बाद 1 करोड़ रुपये के बिल का भुगतान सीधे कंपनी से मिलता है. यानि इंवेस्टर को 90 दिन में 3% (सालाना 12%) प्रॉफिट होता है. वहीं, कारोबारी को भी 90 दिन तक इंतजार करने से मुक्ति मिलती है.
Tradecred और kredx जैसे फाइनेंस टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म ने छोटे निवेशको के लिए इनवॉइस डिस्काउंटिंग के कई प्रोडक्ट लॉन्च किए हैं. इसके जरिए छोटे इंवेस्टर भी बड़े फाइनेंसर की तरह कारोबारियों को फाइनेंस कर सकते हैं.
अभी जो प्रोडक्ट उपलब्ध हैं, उनके टिकिट साइज 50,000 रुपये से शुरू होते हैं. इंवेस्टमेंट साइज छोटा होने के कारण कोई भी व्यक्ति HUF या NRI निवेश कर सकता है.
सेबी रजिस्टर्ड इंवेस्टमेंट एड्वाइजर समीर शाह बताते हैं, “Tradecred और kredx जैसे फिनटेक प्लेटफॉर्म ने एस्क्रो अकाउंट खुलवाए हैं और 90 दिन बाद कंपनी बिल का भुगतान करेगी वो पैसा एस्क्रो अकाउंट में ट्रांसफर होता है.
यानि निवेशक को इसमें से पैसा मिल जाता है. आप शॉर्ट-टर्म के लिए निवेश कर सकते हैं, तो ज्यादा रिटर्न कमाने का ये अच्छा विकल्प है.
अगर आप फिक्स्ड अवधि से पहले पैसा निकालना चाहें, तो निकाल सकते हैं, जिसके लिए आपको सेल ऑर्डर देना होगा. बायर मिलते ही आपको पैसा वापस मिल जाता है, लेकिन इसके लिए आपको शुल्क चुकाना पड़ेगा.
आप जिस कंपनी के साथ जुड़े सप्लायर को फाइनेंस कर रहे हैं, वो अगर डिफॉल्ट हो जाए, पेमेंट में विलंब हो या कंपनी आधा पैसा ही ट्रांसफर करे तो क्या? इस सवाल का कोई ठोस जवाब ऐसे प्लेटफोर्म के पास नहीं है.
समीर शाह के मुताबिक, रिस्क तो हर जगह है और ऐसे प्लेटफोर्म डुअल रिकोर्स मैकेनिज्म को फॉलो करते हैं. फिर भी रिस्क कम करने के लिए अच्छे और बड़े ब्रान्ड के सप्लायर को ही पसंद करना चाहिए.