निवेशकों को अच्छे रिटर्न चाहिए तो लॉन्ग टर्म के लिए इनवेस्ट करना चाहिए, भले ही पोर्टफोलियो घाटे में हो या कम अवधि में उम्मीद से कम रिटर्न दे रहा हो. मनी9 को इंटरव्यू देते हुए LIC म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम सीआईओ मर्जबान ईरानी ने फाइनेंशियल अनुशासन और वर्तमान हालात के मद्देनजर निवेशकों को क्या करना चाहिए, इस पर बात की.
RBI ने अगस्त की पॉलिसी मीट के दौरान ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला लिया है. उसने 5:1 के अनुपात के साथ नरम रुख बनाए रखा है. इसका मतलब है कि उन्होंने अपने सोचने के तरीके में बदलाव किया है.
लिक्विडिटी को सामान्य करने के उपायों की घोषणा होने और त्योहारी सीजन की शुरुआत के साथ अक्टूबर 2021 से सिस्टम की लिक्विडिटी कम होने की उम्मीद है. ज्यादा महंगाई की उम्मीदों के साथ, लिक्विडिटी के रोलबैक की दिशा में ये छोटे कदम संकेत देते हैं कि हम भविष्य की नीतियों में रुख उलट देख सकते हैं. 2022 के अंत तक इसका असर देखने को मिल सकता है.
हम बढ़ती ब्याज दर के मुहाने पर खड़े हैं. निवेशक उस फंड में इनवेस्टेड रह सकते हैं, जो लोअर मैच्योरिटी पर चल रहे हैं और यील्ड कर्व के छोटे एंड पर बने रह सकते हैं.
नए निवेशक कुछ नई कैटेगरी को अपना सकते हैं, जैसे कि ओवरनाइट फंड, लिक्विड फंड और लो ड्यूरेशन फंड्स.
देश की अर्थव्यवस्था में सुधार देखने को मिल रहा है. अन्य मैक्रो इंडिकेटर्स बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन ड्राइव पर निर्भर हैं. देश की कम से कम 50 फीसदी व्यस्क आबादी को कोरोना वैक्सीन की एक डोज लग चुकी है. बीते महीनों की तुलना में अगस्त महीने में वैक्सीन लगने की रफ्तार में इजाफा हुआ है.
वैक्सीन की आपूर्ति में तेजी के साथ टीकाकरण की गति में और सुधार होने की संभावना है. वैक्सीन लगने की बढ़ती रफ्तार के मद्देनजर आगे और पाबंदियां भी हटाई जा सकती हैं. इससे मांग में इजाफा होगा. उच्च निर्यात और पर्याप्त बारिश का भी अच्छा असर इकोनॉमिक ग्रोथ पर देखने को मिलेगा.
लंबी अवधि वाले फंड्स में मौजूदा निवेशकों को अनुशासन के साथ तीन साल के लिए और निवेश करना चाहिए. निवेशकों को अच्छे रिटर्न चाहिए तो लॉन्ग टर्म के लिए इनवेस्ट करना चाहिए, भले ही पोर्टफोलियो घाटे में हो या कम अवधि में उम्मीद से कम रिटर्न दे रहा हो जिससे कि रिटर्न लंबे समय के सामान्य हो जाता है.
इक्विटी निवेश की मात्रा निवेशकों की उम्र, जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश लक्ष्यों पर निर्भर होनी चाहिए. डेट फंड कैपिटल को संरक्षित करने के लिए होते हैं. इक्विटी फंड इसके मूल्य को बढ़ाने के लिए होते हैं. बेहतर परिणामों के लिए इन कारकों के आधार पर उचित एसेट आवंटन का पालन करना चाहिए.
आदर्श रूप से, आपकी आयु को 100 से घटाकर कुल निवेश के प्रतिशत के रूप में इक्विटी में अलॉट करना चाहिए. शेष को डेट के लिए आवंटित कर देना चाहिए. कम उम्र में ज्यादा रिस्क लेने की क्षमता होती है. जोखिम लेने की क्षमता जितनी अधिक होगी, इक्विटी में उतना ज्यादा आवंटन होगा.
जोखिम निवेश का एक आंतरिक हिस्सा है और डेट फंड भी इससे अछूता नहीं रहा है. डेट फंडों के लिए कुछ खास जोखिम होते हैं जिनके बारे में निवेशक को पता होना चाहिए. निवेशकों से उम्मीद की जाती है कि वे डेट फंड से जुड़े जोखिमों के आधार पर फंड्स का चयन और विश्लेषण करें. ऐसा कर के वे डेट फंड निवेश में नकारात्मक रिटर्न से बच सकेंगे.
क्रेडिट जोखिम डेट फंडों के प्रदर्शन के लिए सबसे हानिकारक है क्योंकि इससे निवेशकों को प्रिसिंपल अमाउंट का नुकसान हो सकता है. इसलिए यह महत्वपूर्ण पहलू बन जाता है.
पोर्टफोलियो में लगातार रेटिंग में गिरावट डिफॉल्ट की अधिक आशंका का संकेत देती है. इससे फंड को स्थायी रूप से नुकसान हो सकता है. निवेशकों को यहां सावधान रहना चाहिए.
निवेशकों को ये जानकारी भी होनी चाहिए कि ड्यूरेशन रिस्क भी डेट फंड के प्रदर्शन को अस्थिर बनाता है. चूंकि यह ब्याज दर के उतार-चढ़ाव से जुड़ा होता है, इसके चलते डेट फंड्स की कीमत में उतार-चढ़ाव आता है. लॉन्ग टर्म फंड कम अवधि वाले फंडों की तुलना में अधिक अस्थिर होते हैं. इसके परिणामस्वरूप बढ़ती ब्याज दर में इनमें नेगेटिव रिटर्न हासिल हो सकता है.
इसी तरह इलिक्विड और शैलो डेट मार्केट के कारण लिक्विडिटी रिस्क विशेष रूप से डेट फंड्स के मामले में होता है. कभी-कभी ऐसे फंड हाउस, जिनके पास इलिक्विड सिक्योरिटीज का अनुपात अधिक होता है, निवेश के साथ फंस सकते हैं. ऐसा इसलिए कि क्रेडिट का माहौल सख्त हो जाता है.
इसके अलावा, यदि इस तरह की घटना हायर रिडेमशन के साथ मेल खाती है, तो म्यूचुअल फंड को ऐसी सिक्योरिटीज को अन-इकोनॉमिकल प्राइज पर समाप्त करना पड़ सकता है. इससे पोर्टफोलियो के रिटर्न पर असर पड़ सकता है. निवेशक को फंड में ट्रेडेड सिक्योरिटीज के अनुपात का विश्लेषण करने से पहले एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध ट्रेडेड सिक्योरिटीज डेटा पढ़ना चाहिए.
भविष्य के लिए तीसरी लहर रिस्क फैक्टर साबित हो सकती है. इसके अतिरिक्त, अमेरिका की टेपर वार्ता, बढ़ती महंगाई, अमेरिकी यील्ड में इजाफा और कमोडिटी की कीमतों में लगातार वृद्धि भी जोखिम के कारक हैं.