घर किसी भी समाज की सबसे बेसिक जरूरत होती है. करीब 5 लाख होमबायर्स ने अपने सपनों का घर हासिल करने के लिए पूरा या आंशिक भुगतान कर दिया है. ये लोग बर्षों से अपने फ्लैट्स की डिलीवरी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक इनका इंतजार खत्म नहीं हुआ है.
ये कहना गलत नहीं होगा कि कई लोगों के लिए ये एक ऐसा बुरे सपने के तौर पर तब्दील हो गया है जहां उनकी जीवनभर की कमाई फंस गई है. कई लोगों ने बैंकों और दूसरे वित्तीय संस्थानों से कर्ज लिए हैं और पैसे डिवेलपर्स को दिए हैं. लेकिन ये लोग किस्त भी भर रहे हैं और किराया भी दे रहे हैं. मगर, उन्हें उनके घर की डिलीवरी नहीं मिल सकी है.
बात सिर्फ इस पैसे की नहीं है जो अगर कहीं और लगाया जाता तो इतने वर्षों में वह काफी बढ़ चुका होता, बल्कि मामला लोगों के इमोशन का है. कइयों के लिए ये मानसिक तनाव की बड़ी वजह होगा.
बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों के फेल होने की खबरें गुजरे वक्त में खूब सुर्खियां बनी हैं. 2020 के अंत तक देश के सात बड़े शहरों में कम से कम 1,132 अधूरे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स थे. हालांकि, आम लोगों का पैसा लेकर उन्हें घर देने का वादा पूरा नहीं कर पाने वाले डिवलेपर्स और प्रोजेक्ट्स की तादाद कहीं ज्यादा होगी.
इस तरह के माहौल में सरकार को अपनी नींद से जागना होगा. गुजरे कुछ वर्षों में रेरा कानून लाया गया है और इसने इस लापरवाह सेक्टर में कुछ हद तक अनुशासन लाने की कोशिश की है, लेकिन अभी भी कई प्रोजेक्ट्स में बायर्स फंसे हुए हैं. रेरा बड़े रियल्टी प्रोजेक्ट्स के धराशायी होने पर कुछ भी नहीं कर सका है.
सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) और दूसरी अदालतें नए बैंकरप्सी कानूनों पर तुरंत फैसले दें. अगर कोई डिवेलपर ग्राहकों को उनके घर नहीं दे पाता है तो इसे दूसरों को ये काम सौंपना होगा ताकि लोगों को उनके घर मिल सकें.