International Funds: बीते कुछ समय में निवेशकों के बीच इंटरनेशनल फंड (International Funds) को लेकर काफी चर्चा हो रही है. इक्विटी इंटरनेशनल फंडों ने कोरोना संकट में भी निवेशकों को हाई रिटर्न दिया.
बीते 1 साल के दौरान इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड का औसत रिटर्न 47 फीसदी से ज्यादा रहा है. इस सेग्मेंट में लांग टर्म रिटर्न भी बेहद शानदार रहा है, लेकिन कई निवेशकों को अभी भी इन इंटरनेशनल फंडों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है.
आज हम आपको बताएंगे कि आखिर ये इंटरनेशनल फंड क्या होते हैं.
इंटरनेशनल फंड को ओवरसीज फंड भी कहते हैं. इन फंडों का निवेश इक्विटी या डेट में हो सकता है. ये अन्य एसेट क्लास जैसे कमोडिटीज, रियल एस्टेट आदि में भी निवेश करते हैं.
सेबी के नियमों के अनुसार जो म्यूचुअल फंड दूसरे देशों की इक्विटी या इक्विटी रिलेटेड इक्विपमेंट में 80 फीसदी से अधिक निवेश करते हैं, वह इंटरनेशनल फंड की कटेगिरी में आते हैं.
फॉरेन फंड्स में ज्यादा जोखिम और ज्यादा रिटर्न होता है. पोर्टफोलियो में इंटरनेशनल फंड को लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए रखते हैं.
यहां निवेश के लिए निवेशक के शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म गोल साफ होने चाहिए. इंटरनेशनल फंड में 15-20 फीसदी एलोकेशन सही होता है.
भारतीय निवेशकों के लिए इंटरनेशनल फंड के कई विकल्प मौजूद हैं. ये देश, क्षेत्र, थीम और टेक्नोलॉजी पर आधारित होते हैं.
कोई भारतीय निवेशक रुपये में इन इंटरनेशनल फंडों में निवेश कर सकता है. निवेशकों के पास ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में निवेश करने का भी विकल्प होता है.
इंटरनेशनल फंड में डायवर्सिफिकेशन और बेहतर रिटर्न का मौका मिलता है. इससे एक निवेशक को दुनियाभर की कंपनियों में पैसे लगाने का अवसर मिलता है. बड़ी कंपनियों के ग्रोथ का फायदा रिटर्न के रूप में मिलता है.
इंटरनेशनल फंड में काफी जोखिम होता है. अगर आपने किसी देश के इक्विटी बाजार में पैसा लगाया है, तो उस देश में किसी निगेटिव इश्यू के चलते आपके निवेश पर असर पड़ सकता है.
एक्सचेंज रेट में हर दिन उतार-चढ़ाव आता है. डॉलर के मुकाबले रुपया गिरा, तो नेट असेट वैल्यू (NAV) मजबूत होता है. रुपया गिरा तो आपका NAV भी नीचे आ जाता है.
ऐसे में एक निवेशक के तौर पर आपको करेंसी को भी मॉनिटर करना होता है. इंटरनेशनल फंड में आपको डबल मार्केट का रिस्क होता है.
अपने देश के मार्केट का उतार-चढ़ाव और दूसरे देश के मार्केट के उतार-चढ़ाव का असर पड़ता है. इस पर सेक्टोरल मार्केट में उथल-पुथल का भी असर होता है.
इन इंटरनेशनल फंड्स पर निवेशकों को उतना ही टैक्स देना होता है, जितना उन्हें डेट म्यूचुअल फंड्स पर देना होता है. तीन साल से कम समय तक के लिए निवेश पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना होता है.
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