मॉर्गन हाउसेल कहते हैं कि वेल्थ के बारे में सोचते समय वे इन नियमों पर चलते हैं- जितना कमाते हैं, उससे कम खर्च करना. एसेट खरीदना, लायबिलिटी नहीं. उन चीजों में निवेश न करना जिनकी समझ नहीं हो. शॉर्ट टर्म एड्रेनालाइन रश पर लॉन्ग टर्म माइंडसेट रखना. स्टेटस गेम खेलना छोड़ देना और सादा जीवन जीना.
ये पढ़कर जितना आसान लगता है, इसको फॉलो करना उतना ही मुश्किल होता है. जब हम चीजों को बदलने के बारे में सोचते हैं तो हमारे पूर्वाग्रह सामने आ जाते हैं और इसमें सबसे कॉमन है इग्नोरेंस. मान लें कि आप एक नया लैपटॉप खरीदने वाले हैं, तो आप अगले 3-4 दिन रिसर्च करेंगे, लोगों से सलाह लेंगे, उसके हर फीचर को समझने की कोशिश करेंगे, क्योंकि आप कम से कम अगले कुछ सालों तक इसको लेकर परेशान होना नहीं चाहते, इसलिए इसे खरीदने के पहले हर संभव जानकारी जुटाने की कोशिश करेंगे.
अब, जब बात निवेश की आती है, तो आप अक्सर किसी दोस्त को स्टॉक के बारे में बात करते हुए सुनते हैं. आप देखते हैं, हर कोई हर जगह एक ही स्टॉक के बारे में बात कर रहा है (सोशल मीडिया, न्यूज, आदि). आपको लगता है कि यह स्टॉक शायद बढ़िया है क्योंकि हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है, इसलिए आप उस स्टॉक को लोगों से इन्फ्लुएंस होकर खरीद लेते हैं.
क्यों?
क्योंकि हमारे मन में ख्याल आता है, “शायद ये लाइफ टाइम अपॉर्च्युनिटी है या यह व्यक्ति कुछ ऐसा जानता है जो मैं नहीं जानता.” ऐसे समय में, सबसे समझदारी की बात यह है कि एक साइलेंट ऑब्जर्वर बनें और हर चीज को आउटसाइड व्यू से देखें. वेल्थ क्रिएट करने वाले बहुत से लोग वास्तव में यही काम लगातार कर रहे हैं. लेकिन हम अक्सर अपने पूर्वाग्रहों के कारण हार मान लेते हैं.
(लेखक विंटवेल्थ के को-फाउंडर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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