आजकल डिजिटल गोल्ड खूब चर्चाओं में है. काफी लोग इसमें निवेश कर रहे हैं. डिजिटल गोल्ड की परिभाषा कुछ ऐसे समझें कि ये डिजिटल वॉलेट में पड़े पैसों के जैसा है जो आपके पास तो है लेकिन आपकी जेब में नहीं. केवल 1 रुपये से भी आप इसमें निवेश की शुरुआत कर सकते हैं. लेकिन इसमें निवेश कितना सेफ है और इस पर कितना टैक्स लगता है? चलिए 9 पॉइंट में समझें.
डिजिटल गोल्ड खरीदना अब इतना आसान हो गया है कि लोग मोबाइल ऐप के जरिए भी इसे खरीद रहे हैं. डिजिटल गोल्ड खरीदने में बजट की कोई बाध्यता नहीं है. इसलिए भी ये लोगों को आकर्षित कर रहा है.
जब हम सोना खरीदते हैं तो उसकी शुद्धता को लेकर चिंता करते हैं लेकिन डिजिटल गोल्ड के मामले में ऐसा नहीं है. साथ ही इसकी सुरक्षा भी नहीं करनी पड़ती. यानी पूरी निश्चिंतता.
डिजिटल गोल्ड जैसे ही आप बेचते हैं आपको पूरा पैसा तुरंत ही मिल जाता है. यानी आपको न तो किसी से तकादा करना है और ना ही पैसे को लेकर कोई चिंता करनी है.
आपको बता दें कि डिजिटल गोल्ड पर आपको 3 प्रतिशत जीएसटी देना होता है. मान लीजिए कि आपने एक हजार रुपये का डिजिटल सोना लिया तो आपके 30 रुपये जीएसटी में ही चले जाएंगे. वहीं आपको 970 रुपये का सोना मिलेगा.
डिजिटल गोल्ड खरीदते समय आपको एक वन टाइम चार्ज देना होता है. इस चार्ज में ट्रस्टी फीस और ट्रांजैक्शन कॉस्ट से लेकर मेंटेनेंस चार्ज, प्रोसेसिंज फीस, इंश्योरेंस और स्टोरेज चार्ज भी शामिल है. इसके अलावा डिजिटल गोल्ड की फिजिकल डिलीवरी लेने पर आपको डिलीवरी शुल्क भी देना पड़ सकता है.
डिजिटल गोल्ड की बिक्री के मामले में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर फिजिकल गोल्ड की तरह ही टैक्स देनदारी बनती है. मतलब 20 फीसदी टैक्स प्लस सेस और सरचार्ज. अगर डिजिटल गोल्ड 3 साल से कम अवधि तक ग्राहक के पास रहा तो इसकी बिक्री से रिटर्न पर सीधे तौर पर टैक्स नहीं लगता है.
एक बड़ी बात ये भी है कि आप डिजिटल गोल्ड को 5 साल से अधिक अपने पास नहीं रख सकते. अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको इसके लिए भी चार्ज देना होगा.
डिजिटल गोल्ड की देखरेख के लिए कोई नियामक नहीं है. सेबी औरआरबीआई जैसी सरकारी संस्थाएं भी फिलहाल इसको रेगुलेट नहीं कर रही हैं.
क्रिप्टोकरेंसी की तरह डिजिटल गोल्ड को लेकर भी निवेशकों से तमाम तरह के वादे किए जा रहे हैं. सरकार की इन सब पर नजर है और अब जल्द ही इस पर कोई फैसला लिया जा सकता है.