धन संचय की प्रक्रिया लंबी है. कहा जाता है कि निवेश मैराथन जैसी लंबी रेस है, 100, 200 मीटर का स्प्रिंट नहीं. यह बात सही भी है, आपका निवेश जितने लंबे समय का होगा उस पर शॉर्ट टर्म कट या बाजार में करेक्शन का असर उतना ही कम होगा. आप जितनी लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं चक्रवृद्धि ब्याज का आपको उतना ही ज्यादा लाभ मिलता है. हालांकि बीच-बीच में बाजार में सुधार और अप्रत्याशित घटनाएं आपके कुल रकम में सेंध लगा सकती हैं. इतिहास गवाह है कि जिन दिनों शेयर मार्केट बुरी दौर से गुजर रहा हो उन दिनों आपके पोर्टफोलियो का कुल मूल्य पीक से 60-70 फीसदी नीचे तक नीचे गिर सकता है. ऐसे वक्त ऐसी रणनीति की जरूरत पड़ती है जिससे निवेशक की कुल राशि पर मार्केट में गिरावट या उतार-चढ़ाव का कम से कम असर हो.
एसेट एलोकेशन ऐसी रणनीति है जिसने निविशकों की कुल राशि की रक्षा की है और लंबे वक्त में बड़ी राशि जमा करने में समय की कसौटी पर खरी उतरी है. एसेट एलोकेशन एक निवेश का तरीका है जिसमें हम अपना निवेश एक से अधिक असंबंधित वर्ग में करते हैं ताकि किसी एक वर्ग में बड़ी गिरावट होने पर भी दूसरे वर्ग पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़े. निवेश की इस शैली में निवेशक मौके की तलाश में रहता है और जिस वर्ग में उसे फायदा नजर आता है पुराना निवेश निकाल कर फायदे वाली जगह पर स्विच करता जाता है. निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता के हिसाब से कई प्रकार के एसेट एलोकेशन कॉम्बिनेशन इन दिनों उपलब्ध हैं, जैसे कि इक्विटी, डेट, गोल्ड, कोमोडिटी, करेंसी, रियल एस्टेट, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (आरईआईटीएस), इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (इनविट्स) इत्यादी.
एक कॉम्बिनेशन के तहत निवेशक इक्विटी, डेट और सोने में निवेश करता है. यहां इक्विटी में निवेश करने का उद्देश्य कुल कॉर्पस को बढ़ाना है; डेट में निवेश का मकसद मूल को नीचे गिरने से बचाने का है और सोने में निवेश का मकसद पैसे को एक सुरक्षित जगह पर लगाना है. एक और कॉम्बिनेशन है जिसमें नवेशक इक्विटी, डेट और आर्बिट्राज फण्ड में निवेश करते हैं. मूचुअल फंड्स आज कई तरह के एसेट एलोकेशन स्कीम का विकल्प देते हैं जिनमें अलग अलग एसेट क्लासेज का मिश्रण होता है. लंबे समय के निवेश में अलग अलग जगहों पर निवेश फायदेमेंद होता पाया गया है.
एसेट एलोकेशन एक मुश्किल काम है. इसमें अलग अलग एसेट क्लासज की अच्छी जानकारी होना चाहिए. कौन सा एसेट क्लास चुनना है, कितना एसेट एलोकेशन होना चाहिए, कब कौन सा एसेट क्लास लेना है और कब किस एसेट क्लास से निकल जाना है इसकी जानकारी जरूरी है.
सीमित जानकारी रखने वाले निवेशक जब खुद एसेट एलोकेशन की रणनीति अपनाने लगते हैं तो वो एसेट क्लास में आ रहे उतार-चढ़ाव ने अनभिज्ञ रहते हैं और उनका बड़ा नुकसान हो सकता है. ऐसे में फाइनेंशियल एडवाइजर की सलाह लेने या मूचुअल फंड के मल्टी एसेट एलोकेशन / डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड में निवेश करने की सलाह दी जाती है.
मूचुअल फंड का डायनामिक एसेट एलोकेशन फंड बेहतर विकल्प है खास कर तब जब वैल्यूएशन करवाना महंगा हो. डायनामिक एसेट एलोकेशन में मूचुअल फंड कंपनियों में एक एसेट मैनेजर बैठता है जो सुरक्षित निवेश वाले इंस्ट्रूमेंट में अपका पैसा खुद-ब-खुद निवेश करता जाता है.
कुछ फंड एक क्वांट यानी कवांटिटेटिव मॉडल पर चलते है जिसमें सॉफ्टवेयर खुद निर्णय लेता है कि किस फंड में कितना निवेश किया जाए. यह मॉडल बदलते हुए ट्रेंड को खुद पकड़ता है और यह तय करता है कि सही एलोकेशन स्तर कितना होगा. सही एसेट एलोकेशन का मुख्य उद्देश्य फण्ड की अस्थिरता को कम करना है. उदाहरण के लिए, जब बाजार महंगे वैल्यूएशन पर होते हैं, तो ये मॉडल इक्विटी में जोखिम को कम करने और डेट में ज़्यादा निवेश करने का सुझाव दे सकता है. इससे निवेश का किसी भी मार्किट करेक्शन (बाजार में गिरावट) से बचाव होता है. कम मूल्यांकन या बाजार सुधार की स्थिति में, मॉडल वापस इक्विटी में निवेश बढ़ाने का सुझाव दे सकता है.
एसेट एलोकेशन रणनीति के कई लाभ हैं. इसके लिए कई काम्प्लेक्स मॉडल और एसेट वर्गों की अच्छी समझ की ज़रूरत है. निवेशक म्यूचुअल फंड द्वारा पेश किए गए डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड / मल्टी एसेट एलोकेशन फंड में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं, जिन्हें प्रोफेशनल रूप से प्रशिक्षित फंड मैनेजरों द्वारा मैनेज किया जाता है.
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(लेखक एल.आई.सी म्यूच्यूअल फण्ड एसेट मैनेजमेंट लिमिटिड में सीनियर इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट और फण्ड मैनेजर (इक्विटी) हैं. प्रकाशित विचार उनके निजी हैं.)