फिक्स्ड इनकम साधनों में कितना है रिस्क? यहां जानिए पूरी बात

Fixed Income Investment: फिक्स्ड इनकम निवेश साधनों के साथ क्रेडिट, लिक्विडिटी, इंफ्लेशन और इंटरेस्ट रिस्क जुड़े हैं.

  • Team Money9
  • Updated Date - November 11, 2021, 11:43 IST
फिक्स्ड इनकम साधनों में कितना है रिस्क? यहां जानिए पूरी बात

Pixabay - फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट प्रॉडक्ट को शामिल करने से पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाय रखने में मदद मिलती हैं.

Pixabay - फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट प्रॉडक्ट को शामिल करने से पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाय रखने में मदद मिलती हैं.

Fixed Income Investment: ज्यादातर निवेशक इक्विटी, रियल एस्टेट, गोल्ड और म्यूचुअल फंड्स को ही अच्छा निवेश मानते हैं. वहीं, फिक्स्ड इनकम वाले विकल्पों में निवेश भी एक अच्छा विकल्प बन सकता हैं. फिक्स्ड इनकम वाले साधनों में निवेश करने से आपकी पूंजी को डाइवर्सिफाई करने में मदद मिलती है और साथ ही पोर्टफोलियो को भी स्थिरता प्रदान होती है. किसी भी निवेशक के लिए रिटर्न के साथ-साथ पोर्टफोलियो की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है. बाजार में कई तरह के इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट मिलते हैं, जिनका इस्तेमाल करके आप शानदार पोर्टफोलियो बना सकते हैं और सुरक्षा के साथ बेहतर रिटर्न भी कमा सकते हैं. ऐसे पोर्टफोलियो में फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट प्रोडक्ट का होना भी उतना ही जरूरी है क्योंकि ये प्रोडक्ट आपके पोर्टफोलियो के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं.

किसे कहते है फिक्स्ड इनकम निवेश?

जिस निवेश में आपको पहले से ही पता चल जाए कि मैच्योरिटी के वक्त आपके हाथ में कितना पैसा आएगा, तो ऐसे निवेश को फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट कहते हैं. इसमें इनकम तय रहती है.

कुछ प्रोडक्ट में तयशुदा ब्याज मिलता है. मार्केट में चाहे जितना उतार-चढ़ाव आए, इनके रेट में कोई फर्क नहीं पड़ता.

ये हैं फिक्स्ड इनकम वाले साधन

फिक्स्ड इनकम वाले साधनों में पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF), बैंक डिपॉजिट, एफडी, पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट, कंपनी डिपॉजिट्स, बॉन्ड (टैक्स-फ्री बॉन्ड और जीरो-कूपन बॉन्ड), डिबेंचर्स जैसे विकल्प शामिल है. म्यूचुअल फंड में शॉर्ट-टर्म, अल्ट्रा-शॉर्ट टर्म और हाइब्रिड फंड जैसे विकल्प हैं.

फिक्स्ड इनकम और जोखिम

किसी भी तरह का निवेश रिस्क-फ्री नहीं हैं. किसी निवेश में ज्यादा रिस्क होता हैं, लेकिन ज्यादा रिटर्न मिलता हैं. वहीं, कम रिटर्न वाले साधनों में जोखिम भी कम रहता हैं. फिक्स्ड इनकम निवेश साधनों के साथ भी विभिन्न तरह का जोखिम जुड़ा हुआ हैं, जैसेः

लिक्विडिटी रिस्क

आपने जो भी फिक्स्ड इनकम साधन में निवेश किया हो, उसे बेचने में दिक्कत का सामना करना पड़े तो उसे लिक्विडिटी रिस्क कहते हैं.

ऐसा भी हो सकता हैं आपको घाटा जेलकर अपने निवेश को बेचना पड़ सकता हैं. इसलिए अच्छी क्वॉलिटी वाले साधन में निवेश करना चाहिए, ताकि जरूरत के वक्त उसे आसानी से बेचा जा सके. लिक्विडिटी रिस्क से बचने के लिए आपको अपने निवेश को डाइवर्सिफाई रखना चाहिए, ताकि जरूरत के वक्त किसी एक विकल्प से लिक्विडिटी मिल जाए.

इंटरेस्ट रेट रिस्क

सभी तरह के फिक्स्ड इनकम साधनों में फिक्स्ड रिटर्न नहीं मिलता है. सरकारी या निजी बॉन्ड में आपको फिक्स्ड कूपन रेट के हिसाब से निर्धारित रिटर्न मिलता है.

वहीं, डेट म्यूचुअल फंड और स्ट्रक्चर्ड प्रोडक्ट्स में ऐसा फिक्स्ड रिटर्न संभव नहीं है. इसलिए बॉन्ड के मुकाबले ऐसे प्रोडक्ट्स रिटर्न के मामले में ज्यादा रिस्की हैं, लेकिन जब इंटरेस्ट रेट नीचे जा रहे हों तब इसमें ज्यादा रिटर्न भी कमाने का मौका मिलता है.

बॉन्ड प्राइस और इंटरेस्ट के बीच उलटा नाता है, यानी जब इंटरेस्ट रेट बढ़ते हैं तब बॉन्ड के भाव गिरते हैं. इसका मतलब है कि इंटरेस्ट बढ़ने पर आपके पोर्टफोलियो के फिक्स्ड इनकम इनवेस्टमेंट की वैल्यू कम होने का रिस्क है.

इंफ्लेशन रिस्क

मुद्रास्फीति जोखिम का तात्पर्य कीमतों में सामान्य वृद्धि और किसी व्यक्ति के परचेजिंग पावर पर उसके प्रभाव से है. फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट का एक फायदा फिक्स्ड रिटर्न का है.

वहीं, अगर फिक्स्ड ब्याज दर महंगाई के दर से कम हो तो आपका परचेजिंग पावर कम हो जाएगा. इसीलिए, ऐसे साधन में निवेश करें जहां महंगाई दर से अधिक रिटर्न मिले. बैंक एफडी में अभी महंगाई दर से भी कम रिटर्न मिल रहा हैं.

क्रेडिट रिस्क

ज्यादातर फिक्स्ड इनकम निवेश में आमतौर पर रिटर्न कम मिलता है, इसीलिए ज्यादा रिटर्न कमाने के लिए निवेशक ज्यादा जोखिम वाले और कम रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करते हैं.

जब ऐसे इश्यूअर डिफॉल्ट करते हैं तो निवेश की गई राशि वापस मिलने के आसार बहुत कम होते हैं और आपकी क्रेडिट पर रिस्क बढ़ जाता है. इससे बचने के लिए हमेशा उच्च रेटिंग वाले साधनों में पैसा लगाना चाहिए.

Published - November 11, 2021, 11:43 IST