Fixed Income: इंडिया इंफोलाइन के एनालिस्ट्स ने ताजा रिपोर्ट में लिखा है कि, आने वाले इंटरेस्ट रेट के माहौल में बेहतर रिटर्न कमाने के लिए अल्ट्रा–शॉर्ट टर्म, शॉर्ट–टर्म और कॉर्पोरेट बॉन्ड कैटेगरी का उपयोग करना चाहिए. यानी, इन्वेस्टर्स को फिक्स्ड इनकम इन्स्ट्रूमेंट्स में निवेश बढ़ाने की सलाह दी गई है. अब निवेशकों के मन में ये सवाल उठता है कि, फिक्स्ड इनकम साधनों में तो बहुत कम रिटर्न मिलता है तो फिर इक्विटी को छोड़ कर इसमें क्यों निवेश करना चाहिए?
निवेशकों की बात भी सही है क्योंकि, डेट के मुकाबले इक्विटी ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं. लेकिन, इनमें अस्थिरता ज्यादा होती है और जोखिम भी ज्यादा होता है. वहीं, फिक्स्ड इनकम के साथ जोखिम जरूर कम होता है, लेकिन रिटर्न स्थिर रहता है. इक्विटी के बारे में आपने कितना भी जान लिया हो और इससे चाहे जितना फायदा उठा चुके हों, लेकिन कुछ फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टमेंट जरूर करना चाहिए. अपनी जरूरत के अनुसार, इन दोनों विकल्पों में एक तय अनुपात में निवेश करना चाहिए.
सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर और छाजेड वैल्थ मेनेजमेंट सर्विसिज के स्थापक हेमांग छाजेड बताते हैं कि, “इक्विटी और डेट में एसेट एलोकेशन का बैलेंस जरूरी है. ये अलग–अलग तरह के प्रोडक्ट एक–दूसरे के पूरक हैं. इनसे निवेश की अलग–अलग जरूरतें पूरी होती हैं. दोनों ही एसेट क्लास की इसमें भिन्न भूमिका है. जहां एक ज्यादा रिटर्न देता है तो दूसरा सुरक्षा को बढ़ाने का काम करता है. समय गुजरने के साथ इक्विटी और फिक्स्ड इनकम अलग–अलग दरों से बढ़ते हैं. इन दोनों एसेट के बीच एलोकेशन को बढ़ाने–घटाने को रीबैलेंसिंग कहते हैं और आपको ये करते रहना है.”
वैल्थ क्रिएशन के सफर में कई बार इक्विटी में ज्यादा रिटर्न मिलेगा तो ऐसा वक्त भी आएगा जब इक्विटी के रिटर्न की रफ्तार डेट से भी कम हो जाएगी. इस अस्थिरता से बचने के लिए पहले से ही तय कर लें कि इक्विटी और डेट में किस अनुपात में निवेश किया जाएगा. फिर इस एलोकेशन के साथ बने रहें. इसके लिए समय–समय पर पैसा शिफ्ट करते रहें.
इसकी जरूरत तब पड़ती है जब पोर्टफोलियो में किसी एक एसेट क्लास का निवेश ज्यादा बढ़ जाता है और दूसरे का घट जाता है. जिन निवेशकों को एलोकेशन का गणित पल्ले नहीं पड़ता, वे हाइब्रिड म्यूचुअल फंड के जरिये यह काम कर सकते हैं. इन फंड्स में एसेट बैलेंसिंग और एलोकेशन का काम पारदर्शी तरीके से होता है.
फिक्स्ड इनकम साधनों में पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), बैंक डिपॉजिट, पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट, कंपनी डिपॉजिट्स, बॉन्ड (टैक्स–फ्री बॉन्ड और जीरो-कूपन बॉन्ड), डिबेंचर्स जैसे विकल्प शामिल हैं. म्यूचुअल फंड में शॉर्ट-टर्म, अल्ट्रा-शॉर्ट टर्म और हाइब्रिड फंड विकल्प हैं.
एक सामान्य निवेश के तौर पर अधिकतर निवेशक इक्विटी, रियल एस्टेट, गोल्ड और म्यूचुअल फंड्स को ही अच्छा निवेश मानते हैं लेकिन फिक्स्ड इनकम इन्स्ट्रूमेंट्स में निवेश करना भी एक बेहतरीन विकल्प है.
इससे आपकी पूंजी को डाइवर्सिफाई करने में मदद मिलती है और साथ ही पोर्टफोलियो को भी स्थिरता मिलती है.
कई बॉन्ड ब्याज के रूप में नियमित आय देते हैं, और इसमें निवेश से आपकी राशि और उससे होने वाली ब्याज के रूप में नियमित आय दोनों को सुरक्षित रहते है. पारंपरिक विकल्प PPF भी बुरा नहीं है. कारण है कि यह टैक्स बचत के साथ टैक्स फ्री रिटर्न भी देता है.