कारोबारी साल 2020-21 (असेसमेंट ईयर 2021-22) के लिए इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने की बढ़ाई गई तारीख नजदीक आ रही है. अगर आप वेतनभोगी हैं या आपके बही खातों का ऑडिट नहीं होता तो आपके लिए आखिरी तारीख 30 सितम्बर है. वहीं जिनका बही खाता ऑडिट होता है या कंपनियों के लिए यह तारीख 30 नवम्बर है. नए इनकम टैक्स पोर्टल (www.incometax.gov.in) के मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि तय तारीख तक रिटर्न दाखिल हो पाएगा या नहीं. हालांकि इस मुद्दे पर वित्त मंत्रालय, वेबसाइट बनाने वाली कंपनी इंफोसिस को सार्वजनिक तौर पर काफी कुछ कह चुकी है. फिलहाल कंपनी के पास 15 सितंबर तक वेबसाइट को ठीक करने का समय है.
यह दूसरा मौका है जब कंपनी को वेबसाइट सुधारने के लिए कहा गया है. इससे पहले जून में भी यह बात कही गई थी. इंफोसिस ने इस काम के लिए बकायदा 4000 करोड़ रुपये से ज्यादा लिए है. जिसमें जून तक 164.5 करोड़ रुपये का भुगतान कंपनी को किया जा चुका है.
इनकम टैक्स पेयर पर दोहरी मार पड़ने वाली है. पहली मार है देरी से रिटर्न दाखिल करने की सूरत में बकाया पर ब्याज के भुगतान की. इसको समझने के लिए आपको इनकम टैक्स कानून की धारा 234 ए, 234 बी और 234 सी को समझना होगा. 234 ए बकाया टैक्स पर ब्याज लगाने का प्रावधान करता है. ब्याज की दर एक फीसदी प्रति महीने है इसका आकलन करने के लिए देखा जाएगा कि क्या कुल टैक्स देनदारी से टीडीएस (Tax Deducted on Source), टीसीएस (Tax Collected on Source) या एडवांस टैक्स के जरिए कर चुकाने के बावजूद भी 1 लाख रुपये या उससे ज्यादा का बकाया बनता है क्या.
धारा 234 बी के तहत अगर किसी व्यक्ति को एडवांस टैक्स देना है और वो ऐसा नहीं करता या फिर जितनी रकम जमा कराई है, वो कुल कर देनदारी के 90 फीसदी से कम है तो बकाया रकम पर 1 फीसदी की दर से ब्याज लगेगा. धारा 234 सी के तहत एडवांस टैक्स चुकाने में हुई देरी पर ब्याज लगता है. नियम कहता है कि 15 जून तक कुल देनदारी का 15 फीसदी, 15 सितंबर तक 45 फीसदी, 15 दिसंबर तक 75 फीसदी और बाकी 15 मार्च तक चुकाना होता है. इसमें जितनी कमी होगी, उस पर 1 फीसदी की दर से ब्याज देना होगा.
परेशानी यह है कि बकाया पर ब्याज, रिटर्न दाखिल करने की वास्तविक तय तारीख जैसे वेतनभोगियों के लिए 31 जुलाई से चालू हो जाता है. कारोबारी साल 2020-21 के लिए यह तारीख पहली अगस्त होगी. अब रिटर्न भरने में जितनी देरी होगी, उतना ज्यादा ब्याज लगता जाएगा, जो सीमित संख्या में इनकम टैक्स पेयर के ऊपर अतिरिक्त बोझ है. आयकर कानून में कहीं भी इस बात का प्रावधान नहीं है कि अगर पोर्टल की तकनीकी दिक्कतों की वजह से आप रिटर्न नहीं दाखिल कर पाए तो वहां आपको ब्याज ना चुकाने के लिए रियायत दी जाएगी.
वहीं टैक्स रिटर्न दाखिल करने वालों पर दूसरी मार पड़ेगी रिफंड पर ब्याज की. इनकम टैक्स कानून की धारा 244 ए के तहत रिफंड पर ब्याज का प्रावधान है. यहां ब्याज की दर आधे फीसदी की है. ब्याज का आकलन रिटर्न दाखिल करने की तारीख से रिफंड अदा करने की तारीख के आधार पर होता है. उदाहरण के लिए एक तरफ टैक्स पोर्टल की दिक्कतों की वजह से सरकार की देनदारी पर आपको ज्यादा ब्याज देना पड़ा, लेकिन जब बात आपके देनदारी की आई तो वहां रकम कम हो गई.
कुछ समय पहले टैक्स चार्टर का ऐलान किया गया था. इसमें करदाताओं के अधिकारों और दायित्व की बात कही गई थी, लेकिन इसका जिक्र कहीं नहीं है कि दिक्कत किसी थर्ड पार्टी की वजह से हुई है तो उससे कोई जुर्माना वसूला जाएगा या फिर भी करदाता को किसी और तरीके से राहत दी जाएगी.
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उम्मीद करता है कि लोग समय पर टैक्स चुकाए और रिटर्न दाखिल करें तो यहां उसकी जिम्मेदारी भी बनती है कि एक मुक्कमल व्यवस्था बनाई जाए. फिलहाल ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है. अब यहां पर एक विकल्प सुझाया जा रहा है कि रिटर्न जमा करने की तारीख और बढ़ा दी जाए. लेकिन इससे करदाता की सिरदर्दी तभी खत्म होगी जब वहां पर बकाये कर पर ब्याज की व्यवस्था से जुड़े प्रावधान में भी बदलाव किया जाए.