सही तरीके से एसेट एलोकेशन (Asset Allocation) करना बेहद जरुरी है क्योंकि हर निवेश के साथ एक अलग तरह का जोखिम आता है और ये जोखिम, निवेश के मैच्योर होने की समय सीमा के साथ जुड़ा होती है. जितना कम समय उतना ज्यादा जोखिम. 2020 में निवेशकों ने देखा कि कैसे महामारी के इस दौर में हर तरफ अस्थिरता बढ़ने से उनके पोर्टफोलियो (portfolio) के कुल फायदे नुकसान में फेर बदल हुआ. अक्सर, ऐसे समय में निवेशकों के मन में डर और लालच जैसी भावनाएं घर कर लेती हैं और ये लोग जल्दबाजी में अपने अच्छे खासे पोर्टफोलियो (portfolio) में बदलाव करने का फैसला ले लेते हैं जो इन्हें इनके लॉंग टर्म गोल से भटका देता है.
ऐसे इंवेस्टमेंट प्लान जो जोखिम(risk) को समझते हुए आपके गोल्स ( return objectives), लिक्विडिटी की जरुरतों (liquidity requirements), समय सीमा (time horizon), टैक्स (tax ) और कानूनी बातों (legal implications) को मद्देजर रखते हुए एसेट एलोकेशन का प्लान तैयार करने में निवेशक की मदद कर सकतें हैं.
– पोर्टफोलियो में अगर-अलग तरह के एसेट क्लास में अपना पैसा निवेश करने की रणनीति, निवेशकों को एक लंबे समय में बेहतरीन रिटर्न (long-term wealth building) पाने में मदद करती है. बाजार के माहौल के मुताबिक अलग अलग तरीके से किया गया निवेश परफॉर्मेंस भी अलग देता है. हालांकि, बड़ा पैसा बनाने में वक्त लगता है और इसलिए बाजार में बहुत थोड़े समय की उठा पटक से परेशान नहीं होना चाहिए.
– जो निवेशक बड़ा पैसा बनाने के लिए एक लंबा समय लेकर चल रहे हैं उन्हें फाइनेंशियल प्लैनिंग (financial planning ) की मूलभूत बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए. लक्ष्य-आधारित निवेश (goal-based investing), परिसंपत्ति आवंटन (asset allocation), विविधीकरण (diversification), नियमित निवेश समीक्षा (regular investment review), और इस पूरी प्रक्रिया में सबसे जरुरी संयम और अनुशासन शामिल है।
– सबसे पहले एक फाइनेंशियल प्लान (financial plan) तैयार करें जिसमें अपनी अलग अलग वित्तीय जरुरतों और उसके लिए कितने पैसे की जरूरत है,उसे तय करना बेहद अहम. अब इसके अलावा निवेश की समय सीमा (Investment horizon) और जोखिम (risk), फाइनेंशियल प्लानिंग का ही एक हिस्सा हैं जो एक दूसरे से जुड़े हैं.
– इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए समय निर्धारित करने के साथ-साथ, निवेशकों को ये भी समझना जरूरी है कि वो कितना जोखिम उठा सकते हैं. आपका चुना हुआ फंड जोखिम के मुताबिक बदल सकता है.
– पोर्टफोलियो में फायदे और नुकसान का एक सही अनुपात बनाए रखने के लिए, निवेशकों को दो रणनीतियों को चुनना चाहिए: परिसंपत्ति आवंटन (asset allocation) और विविधीकरण (diversification). सही ढंग से एसेट एलोकेशन करना बेहद जरुरी है क्योंकि हर तरह के निवेश के साथ एक अलग तरह का जोखिम जुड़ा होता और साथ ही हर निवेश के मैच्योर होने की समय सीमा होती है. यहां ये समझना जरुरी है कि जितना ज्यादा रिस्क उतना ज्यादा फायदे का सौदा.
– जैसे इक्विटी लंबे समय (long term) के लिए सही मानी जाती हैं क्योंकि वो लंबे समय में बेहतर रिटर्न देती हैं. वहीं कम समय के लिए इनमें निवेश करना बेहद अस्थिर हो सकता है। दूसरी ओर डेट फंड्स (debt funds ) शॉर्ट टर्म गोल्स (short-term goals ) के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं क्योंकि निकट भविष्य में उनकी अस्थिरता कम होती है. ये एक बढ़िया रिटर्न के साथ आपके पैसे की सुरक्षा भी सुनिश्चित करते हैं. इसके अलावा निवेशक एसेट क्लास के अंदर अलग रणनीतियों वाले फंड्स में डाइवर्सिफाई (diversify) कर सकते हैं. इनमें लार्ज कैप (large cap), मल्टी-कैप (multi-cap), क्रेडिट जोखिम (credit risk) और समय सीमा (duration) शामिल है.
– महज निवेश करना पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा निवेशकों को नियमित तौर से अपने निवेश को बढ़ते घटते देखना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वो सही समय पर अपने वित्तीय लक्ष्यों तक पहुंच सकें.
– इसलिए निवेशकों को फंड की परफॉर्मेंस और उसके भविष्य की संभावना की समय-समय पर समीक्षा कर लेनी चाहिए. हालांकि, छोटी उठा पटक बाजार का स्वभाव है और निवेशकों को केवल इन्हें देख कर अपनी रणनीति बदलने की जरुरत नहीं है.
– और आखिर में निवेशकों को धैर्य रखने की बहुत जरुरत है. अपने पोर्टफोलियो में छोटे मोटे जोखिमों और बदलावों को समझना – परखना ही समझदारी है. ज्यादातर देखा गया है कि असामान्य परिस्थितियां, एसेट क्लास को बेवजह बदलाव के लिए प्रेरित करती हैं और यही चूक हो जाती है.
अब ऐसी समय में, निवेशकों को यह समझना जरुरी है कि बाजार में फैला डर या फिर उत्साह जल्दी ही खत्म हो जाएगा। बाजार में चल रही छोटी मोटी उठा पटक की वजह से अपने निवेश की रणनीतियों में बदलाव, आपके पोर्टफोलियो के लॉंग टर्म गोल्स को भारी नुकसान पहुंचा सकता है.