अचल संपत्ति के अनियंत्रित विकास की दुनिया में, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 एक जरूरी राहत बनकर आया है. जो बिल्डर्स खरीदारों को धोखा देते थे, उन्हें इस अधिनियम के तहत लाया गया है. यह डेवलपर्स को अनुशासित करने, ग्राहकों को दी जाने वाली सही जानकारी को सुनिश्चत करने के साथ ही उनके हितों की रक्षा करता है. पिछले 5 साल से कुछ परेशानियां बनी हुई है. इनमें से सबसे बड़ी शिकायत रिफंड के मुद्दे की है. नियामक प्राधिकरण से रिफंड सर्टिफकेट होने के बाद भी अधिकांश डेवलपर इसका पालन नहीं करते हैं.
चूंकि घर खरीदने का फैसला खरीदार का होता है. ऐसे में वह अपीलीय निकाय से संपर्क नहीं कर सकता. कानून के अनुसार अगर उसे रिफंड नहीं मिलता है तो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) डेवलपर को संपत्ति होल्ड कर, उसे बेचकर खरीदार को रिफंड करना होगा।
डीएम ऑफिस से सपोर्ट होने के बाद भी एक संपत्ति को होल्ड करने और बेचने की प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं क्योंकि पावरफुल बैंकों को उनकी लागत के बारे में पता चल जाता है. जो खरीदार, पहले ही अपनी कमाई दे चुका है, उसे रेरा, डीएम ऑफिस और वकील के पास भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है. पहले से ही निराश खरीदार बड़ी संख्या में कोर्ट का रुख कर रिफंड की मांग कर रहे हैं।
एक और मुद्दा है जो खारीदारों को निराश कर रहा है और वह है डेवलपर्स को विस्तार के लिए अनुदान देना. जबकि अधिनियम केवल अप्रत्याशित परिस्थितियों के मामले में एक साल के लिए परियोजनाओं के विस्तार की अनुमति देता है.
अब रेरा को भी पूरे देश में लागू करने की जरूरत है। पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जिसने आवास क्षेत्र को असंवैधानिक रूप में विनियमित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य अधिनियम को रद्द करने के बाद भी इसे लागू किया है.