DE Risking: फाइनेंशियल प्लानिंग के सफर में आपकी जमा राशि को सुरक्षित रखना महत्त्वपूर्ण है. आप एक इंवेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार करने में जितना ध्यान रखते हैं, उतना ही ध्यान आपको निवेश करने के लिए रखना चाहिए.
आप अच्छा रिटर्न पाने के लिए जितने रिस्क के साथ जुड़ते हैं, उन सारे रिस्क को धीरे-धीरे दूर करना भी जरूरी है.
पॉर्टफोलियो मैनेजमेंट की थ्योरी के मुताबिक, लक्ष्य पूरा होने का वक्त नजदीक हो, तब आपको डि-रिस्किंग (DE Risking) प्रोसेज का पालन करना जरूरी होता है.
रिस्क और रिटर्न के बीच गहरा नाता है. जितना ज्यादा रिस्क उतना ज्यादा रिटर्न.
फाइनेंशियल प्लानिंग में रिस्क-मैनेज करना पड़ता है और जब टार्गेट पूरा हो जाए, तब अपने निवेश को रिस्क से दूर रखने के लिए जो स्ट्रैटेजी अपनाई जाती है, उसे डि-रिस्किंग स्ट्रैटेजी कहते हैं.
डि-रिस्किंग बहुत ही नाजुक पहलू है. यदि डि-रिस्किंग की सही स्ट्रैटेजी नहीं होगी, तो मार्केट के उतार-चढाव की वजह से आपने किसी लक्ष्य के लिए जमा की हुई राशि में घाटा हो सकता है.
मान लीजिए, आपने रिटायरमेंट सेविंग के लिए 20 साल पहले निवेश की शुरुआत की थी और 20 साल पूरे होने में अब एक साल बाकी है, तो आपको बचत की अमाउंट डेट विभिन्न निवेश साधनों में ट्रांसफर करनी चाहिए. इस तरह से आप फंड को बैलेंस कर सकते हैं.
सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर विशाल शाह बताते हैं कि, “डि-रिस्किंग प्रोसेज काफी महत्वपूर्ण है और उसके लिए सही स्ट्रैटेजी फॉलो नहीं करेंगे, तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.
यदि आपका टार्गेट पूरा होने में दो साल बाकी है, तो जमा हुई राशि को निकाल कर बैंक FD जैसे रिस्क-फ्री साधन में ट्रांसफर करनी चाहिए.
ऐसा करने से शायद महंगाई दर के मुकाबले कम रिटर्न मिलेगा, लेकिन आपकी जमा राशि सुरक्षित रहेगी.”
डि-रिस्किंग से आपको जमा की गई राशि सुरक्षित रखने में मदद मिलती है. आप जमा राशि को उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रख सकते हैं.
जब आपका लक्ष्य नजदीक हो और इक्विटी मार्केट में गिरावट होने लगे तो आपकी जमा राशि कम हो जाएगी. ऐसे हालात में, यदि आप इक्विटी में से पैसा निकाल लेंगे तो उतना पैसा सुरक्षित हो जाएगा.
My Wealth Manager के डायरेक्टर CFA मनीष शाह बताते हैं आपने जितने लक्ष्य़ हासिल करने के लिए जितने पॉर्टफोलियो बनाए हैं, उनके लिए अलग-अलग डि-रिस्किंग स्ट्रैटेजी का उपयोग करें.
धन इकट्ठा करने का सफर काफी रोमांच से भरपूर हो सकता है. उसमें काफी उतार-चढ़ाव आ सकते हैं, लेकिन सफर का अंत सुरक्षित होना भी जरूरी है. लैंडिंग जितनी सेफ औऱ स्मूद होगी उतना ही ज्यादा फायदा होगा.
डि-रिस्किंग की शुरुआत तब करनी चाहिए, जब आपका लक्ष्य कम से कम दो साल दूर हो. आदर्श रूप में तीन साल सही है.
यदि आपने आक्रामक निवेश (स्मॉल कैप फंड्स) किया है, तो ये शुरुआत तीन साल पहले से ही होनी चाहिए.
आपका इरादा केवल पोर्टफोलिय़ो के उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए होना चाहिए. पोर्टफोलियो का जो भाग लड़खड़ा रहा है, उसे कंधा देने का काम करें.
आपके पोर्टफोलियो में से इक्विटी म्यूचुअल फंड को लिक्विड फंड्स या शार्ट-टर्म डेट फंड्स जैसे कम जोखिम भरे एसेट्स में ट्रांसफर करें.