बीमा जरूरी है लेकिन इसे समझना इतना मुश्किल है कि लोग बीमा खरीदने से ही भाग रहे हैं. देश में 43 फीसद लोग ऐसे हैं जिनके पास ये बीमा नहीं है. महंगाई की वजह से हेल्थ बीमा न खरीदने की बात तो समझ आती है लेकिन कुछ ऐसे भी कारण हैं जो चौंकाने वाले हैं. फिनटेक कंपनी पॉलिसी बाजार का सर्वे बताता है कि देश में 19 फीसद लोगों ने इस वजह से बीमा नहीं लिया क्योंकि यह उन्हें जटिल लगता है. इस बीमा से जुड़े टर्म उन्हें समझ नहीं आते. अगर आपने भी इस वजह से अभी तक हेल्थ बीमा नहीं लिया है तो आगे चलकर इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
क्या हैं उलझनें? दरअसल, हेल्थ बीमा के बाजार में आए दिन नई-नई पॉलिसी लॉन्च हो रही हैं. इनमें से कौन सी पॉलिसी किसके लिए सही रहेगी, आम लोगों के लिए ये लगा पाना मुश्किल है. इस बीमा में सबसे पहले लोग ओपीडी कवर की सुविधा देखते हैं. एक-दो लाख रुपए के कवर वाली पॉलिसी में ओपीडी और अस्पताल में चेकअप के खर्च को शामिल नहीं किया जाता. ऐसे में लोग सोचते हैं ओपीडी का खर्च कवर ही नहीं हो रहा है तो इस बीमा को क्यों खरीदें? इसके अलावा भी ऐसी कई उलझनें हैं जिनकी वजह से लोगों को हेल्थ बीमा खरीदने में दिक्कतें आती हैं.
रूम रेंट की कैपिंग अस्पताल में भर्ती होेने पर रूम रेंट का बड़ा खर्च होता है. बेसिक हेल्थ पॉलिसी में रूम रेंट समइंश्योर्ड का एक फीसद होता है. अगर तीन लाख रुपए के कवर की पॉलिसी है तो रूम रेंट 3000 रुपए रोजाना के हिसाब से ही मिलेगा. अगर वास्तविक रूम रेंट 6000 रुपए है तो 3000 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अपनी जेब से चुकाने होंगे. बीमा पॉलिसी की रूम रेंट से जुड़ीं शर्तें आम लोगों के मन में उलझन पैदा करती हैं जिससे लोग पॉलिसी खरीदने से पीछे हट जाते हैं.
डे केयर ट्रीटमेंट अधिकतर हेल्थ बीमा पॉलिसियों में अस्पताल में 24 घंटे भर्ती होने के बाद ही क्लेम मिलता है. मोतिया बिंद, सिस्ट आदि के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में दो-चार घंटे के लिए ही भर्ती होने जरूरत होती है. कुछ पॉलिसियों में इस तरह के ऑपरेशन का क्लेम नहीं मिलता है. इसी तरह बुखार आदि के लिए भी भर्ती होने की जरूरत नहीं होती. कई बीमा पॉलिसियां ऐसी इलाज को कवर नहीं करतीं… ज्यादातर लोगों का इसी तरह के मामलों में इलाज पर ज्यादा खर्च होता है. को-पेमेंट
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां प्रीमियम कम करने के लिए पॉलिसी में को-पेमेंट का क्लॉज जोड़ देती हैं. इसके तहत पॉलिसीधारक को इलाज के बाद बिल का एक हिस्सा खुद देना होता है. उदाहरण के तौर पर अगर आपकी पॉलिसी में 10 फीसद का को-पेमेंट क्लॉज लगा है और अस्पताल में भर्ती होने पर 3 लाख रुपए का बिल आया है… ऐसे में 30 हजार रुपए का पेमेंट अपनी जेब से देना होगा. क्लेम के दौरान पॉलिसीधारक को को-पेमेंट का क्लॉज काफी अखरता है.
रिस्टोरेशन की सुविधा अगर हेल्थ बीमा कवर 5 लाख रुपए है और इलाज के दौरान 6 लाख रुपए खर्च आ जाए तो ऐसे हालात में बीमा कंपनियां रिस्टोरेशन की सुविधा देती हैं. इसके तहत अगर इलाज में पांच लाख रुपए का कवर पूरा खर्च हो जाता है तो बीमा कंपनी 5 लाख रुपए का कवर और दे देगी. इसी सुविधा को कहते हैं रिस्टोर करना. ज्यादातर कंपनियां एक साल में समइंश्योर्ड राशि के बराबर 3 बार तक रिस्टोर की सुविधा देती हैं… मामूली प्रीमियम देकर बीमा कवर को तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं. लेकिन रिस्टोर की सुविधा कब मिलेगी, कब नहीं, यह एक बड़ी पहेली है.
मनी9 की सलाह सेहत की सुरक्षा के लिए हेल्थ बीमा बहुत जरूरी है. बीमा की पहुंच बढ़ाने के लिए कंपनियों को अपने प्रोडक्ट आसान बनाने की जरूरत है. हेल्थ बीमा खरीदने से पहले इस चेकलिस्ट को याद रखें- ओपीडी (OPD) कवर जरूरी है. अगर डॉक्टर कंसल्टेशन कवर करना है तो इस फीचर को शामिल करें, रूम रेंट में कैपिंग न हो, डे केयर ट्रीटमेंट लेंगे तो बिना 24 घंटे के हॉस्पिटालाइजेशन वाले ट्रीटमेंट कवर होंगे, प्रीमियम सस्ता करने के लिए को-पेमेंट न लें. अपनी पॉलिसी में रिस्टोरेशन की सुविधा जरूर लें.
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