बैंकों की तरह अब बीमा कंपनियां भी अपने ग्राहकों के भूले हुए पैसों यानी बिना दावे वाली करक को लौटाएंगी. बढ़ती हुई इस Unclaimed राशि को लेकर रेगुलेटर और सरकार चिंता में है. इंश्योरेंस रेगुलेटर इरडा ने बिना दावे वाली बीमा राशि से जुड़ा एक सर्कुलर जारी किया है. इरडा ने बीमा कंपनियों से कहा है कि वो अनक्लेम्ड राशि पॉलिसीधारकों को लौटाएं और बकाया राशि के वैध दावेदारों को खोजने के लिए अपने प्रयास बढ़ाएं. इस मामले में बीमा एजेंटों की मदद लें.
बीमा कंपनियों के पास है 25,000 करोड़ रुपए की अनक्लेम्ड राशि
एक रिपोर्ट के अनुसार जीवन बीमा कंपनियों के पास 25,000 करोड़ रुपए की Unclaimed रकम जमा है. इसमें सबसे अधिक 84 फीसद यानी करीब 21,000 करोड़ रुपए सरकारी बीमा कंपनी LIC के पास है. इस रकम में मैच्योरिटी, death और survival benefit आदि से जुड़ी रकम शामिल है. नियमों के अनुसार अगर सेटलमेंट की तारीख से छह महीने तक दावा नहीं किया गया तो वो राशि Unclaimed मानी जाएगी. इरडा ने बीमा कंपनियों से पॉलिसीधारकों की 1000 रुपए या इससे अधिक की Unclaimed राशि का ब्योरा अपनी वेबसाइट पर देने को कहा है.
इरडा ने सर्कुलर में किया संशोधन
हाल ही में जारी सर्कुलर में इरडा ने बिना दावे की राशि की परिभाषा में भी संशोधन किया है. अब ऐसी पॉलिसी जो मुकदमेबाजी में हैं, क्लेम पर किसी तरह की आपत्ति है या फिर सरकारी एजेंसियों ने उन्हें फ्रीज कर दिया है. इस तरह रोकी गई राशि को Unclaimed नहीं माना जाएगा. रेगुलेटर ने साफ कहा है कि जिन पॉलिसियों के ग्राहक या लाभार्थी से संपर्क नहीं हो पा रहा है, उन्हें Unclaimed पॉलिसी की कैटेगिरी में रखें. साथ ही सभी मौजूदा और नए ग्राहकों के मोबाइल नंबर और ईमेल ID को verify करने के लिए कारगर व्यवस्था बनाएं.
रेगुलेटर ने बीमा कंपनियों को पांच अहम निर्देश दिए हैं-
1. पॉलिसी के रिन्युअल के समय ग्राहक का मोबाइल नंबर, ईमेल एड्रेस और नॉमिनी अपडेट करें 2. बीमाधारकों को कॉन्टैक्ट नंबर और बैंक डिटेल ऑनलाइन अपडेट करने की सुविधा दें 3. Unclaimed पॉलिसी के ग्राहकों तक पहुंचने के लिए विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करें 4. पॉलिसीधारकों को उनकी पॉलिसी मैच्योरिटी की कम से कम 6 महीने पहले सूचना दें 5. अगर बीमाधारक की KYC अधूरी है तो उसे पूरा करें, नाबालिगों की दोबारा KYC करें
बीमा क्षेत्र में क्यों बढ़ रही है Unclaimed राशि ?
सेबी रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार जितेन्द्र सोलंकी कहते हैं कि बीमा एजेंट कई बार पॉलिसी बेचते समय ग्राहकों का पूरा और सही ब्योरा दर्ज नहीं करते. बड़ी संख्या में लोग अपना निवास स्थान और मोबाइल नंबर बदल देते हैं. कुछ लोग बीमा पॉलिसी तो खरीद लेते हैं, लेकिन उसके डॉक्यूमेंट अपने परिजनों के साथ साझा नहीं करते. ऐसे पॉलिसीधारकों के इस दुनिया में न रहने पर उनके परिजन बीमा का क्लेम नहीं कर पाते. ऐसी पॉलिसी के बारे में नॉमिनी को पता ही नहीं होता या फिर पॉलिसी डॉक्यूमेंट नहीं मिलते हैं. बीमा की Unclaimed राशि बढ़ने की ये एक बड़ी वजह है.
Unclaimed राशि का नियम क्या है?
अगर बीमा कंपनी के पास किसी पॉलिसी के लिए 10 साल तक कोई क्लेम नहीं आता है तो उस पैसे को सीनियर सिटीजन वेलफेयर फंड यानी SCWF में ट्रांसफर कर दिया जाता है. इस फंड का उपयोग सीनियर सिटीजन के कल्याण से जुड़ी योजनाओं में किया जाता है. कोई भी बीमाधारक या आश्रित सीनियर सिटीजन वेलफेयर फंड में पैसा ट्रांसफर होने के 25 साल तक उसे क्लेम कर सकता है. अगर ये राशि 25 साल तक क्लेम नहीं की जाती है तो वो केंद्र सरकार को ट्रांसफर कर दी जाती है.
बिना दावे वाली रकम का पता कैसे करें?
Unclaimed राशि के बारे में पता करने के लिए इरडा ने बीमा कंपनियों को अपनी वेबसाइट पर सर्च करने की सुविधा मुहैया कराने को कहा है. इसकी मदद से पॉलिसीधारक या आश्रित इस बात का पता लगा सकते हैं कि उनकी इन कंपनियों के पास कोई बिना दावे वाली रकम तो नहीं है. Unclaimed राशि का पता लगाने के लिए आपको पॉलिसीधारक का नाम, पैन, पॉलिसी नंबर और जन्म तिथि दर्ज करनी होगी. बीमा कंपनियों के लिए जरूरी है कि वो अपनी वेबसाइट पर बिना दावे वाली रकम का खुलासा करें. ये जानकारी उन्हें हर 6 महीने में अपडेट करनी होगी.
अगर आप कोई बीमा पॉलिसी खरीद रहे हैं तो उसमें एड्रेस, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का पूरा ब्योरा दर्ज करें. इस जानकारी में कोई बदलाव होता है तो उसे पॉलिसी में अपडेट कराएं. अपने पूरे निवेश का ब्योरा ऑनलाइन या डायरी में रखें. इस जानकारी को अपने परिजनों के साथ साझा करें. इस मामले में जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है.
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