हेल्थ प्लांस में आमतौर पर एक साल का कॉन्ट्रैक्ट होता है और इसको हर साल रिन्यू कराना होता है. कुछ इंश्योरेंस कंपनियां (Insurance policy) इंश्योर्ड को उसकी पॉलिसी की एक्सपायरी के बारे में रिन्यूअल नोटिस भेजती हैं, लेकिन पॉलिसी रिन्यू कराने की जिम्मेदारी इंश्योर्ड पक्ष की होती है. समय पर पॉलिसी रिन्यू नहीं कराने पर इनसे हाथ धोना पड़ता है और पॉलिसी होल्डर्स कंटिन्यूटी बेनेफिट पाने (Benefits of Insurance Policy) के हकदार नहीं रहते हैं. आइये जानते हैं कौन से वो 9 फायदे हैं, जो आप समय रहते इंश्योरेंस पॉलिसी रिन्यू नहीं कराने पर खो सकते हैं.
1) क्लेम सेटलमेंट: इंश्योरेंस कंपनी आमतौर पर प्रीमियम भुगतान के लिए 15-30 दिन का ग्रेस पीरियड देती हैं. इससे पॉलिसी बेनेफिट्स लगातार मिलते रहते हैं. हालांकि, ग्रेस पीरियड के दौरान क्लेम फाइल करने पर कंपनी सेटलमेंट पूरा नहीं करती है.
2) नो क्लेम बोनस: हर क्लेम फ्री ईयर में इंश्योरेंस कंपनी बीमा राशि पर नो क्लेम बोनस देती है. क्लेम फ्री ईयर यानि पॉलिसी के साल में अगर कोई क्लेम नहीं लिया गया तो कंपनी सम इंश्योर्ड (बीमा राशि) को अधिकतम 50 फीसदी तक 5 फीसदी बढ़ा देती है. ऐसे में अगर पॉलिसी लैप्स होती है तो पॉलिसी होल्डर को कोई नो-क्लेम बोनस नहीं मिलेगा.
3) मौजूदा बीमारी की शर्त: आपकी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लगातार कवरेज की स्थिति में 24-48 महीनों तक पुरानी या मौजूदा बीमारी को कवर नहीं करती है.
4) जिंदगीभर का कवर: बेसिक कॉम्प्रिहेंसिव पॉलिसी पूरी ताउम्र कवरेज देती हैं. इन्हें आप कभी भी रिन्यू करा सकते हैं. लेकिन, अगर आप सीनियर सिटिजन हैं तो नई सीनियर सिटीजन पॉलिसी सिर्फ 75-80 साल तक का ही कवर देती हैं.
5) निर्धारित अवधि का रखें ध्यान: डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसे कुछ बीमारियों में आमतौर पर वेटिंग पीरियड दो साल का होता है. लेकिन, अगर आपने रिन्युअल डेट (पॉलिसी लैप्स होने की तारीख) मिस कर दी तो दोबारा वेटिंग पीरियड (2 साल) को पूरा करना होगा.
6) पोर्टेबिलिटी: आप एक्सपायर्ड/लैप्स पॉलिसी को पोर्ट नहीं कर सकते. पोर्टेबिलिटी के लिए आपको पॉलिसी एक्सपायरी की आखिरी तारीख से 45 दिन पहले अप्लाई करना होगा.
7) वेटिंग पीरियड: आमतौर पर ज्यादातर बेनिफिट्स (फायदे) को पॉलिसी लेने के 30 दिन बाद से क्लेम किया जा सकता है. ज्यादातर पॉलिसी का वेटिंग पीरियड 30 दिन का होता है. लेकिन, अगर पॉलिसी लैप्स हो जाती है तो वेटिंग पीरियड भी बढ़ सकता है.
8) उम्र प्रतिबंध: ज्यादातर इंश्योरेंस कंपनियां वरिष्ठ नागरिकों (senior citizens) को कवर देने से बचती हैं. अगर देती भी हैं तो मौजूदा बीमारियों के आधार पर प्रीमियम की राशि को ज्यादा रखती हैं. मतलब आम पॉलिसी से काफी महंगा हो सकता है.
9) मेडिकल टेस्ट: नई पॉलिसी खरीदने के लिए एक मेडिकल टेस्ट जरूरी होता है. हालांकि, अगर समय पर प्रीमियम का भुगतान किया जाए तो इससे बचा जा सकता है.
हेल्थ इंश्योरेंस की पेमेंट डेट से चूकना महंगा पड़ सकता है. इसलिए याद रखने के लिए अपने कैलेंडर में ड्यू डेट को मार्क कर लें. प्रीमियम का भुगतान समय से करें.
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