स्वास्थ्य बीमा फाइनेंशियल प्लानिंग का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद. जब अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ गई हो और लोगों की आर्थिक स्थिति प्रभावित है, उस समय स्वास्थ्य बीमा को जीएसटी के 18% स्लैब में रखने से लोगों के लिए बीमा कवर महंगा हो गया है. यह एक स्वागत योग्य कदम होगा, यदि जीएसटी परिषद कर की दर को कम करने पर विचार कर सकती है. इससे उपभोक्ताओं के लिए प्रीमियम कम हो सकता है. जीएसटी दर में यह कटौती मौजूदा समय में लोगों को एक बहुत जरूरी राहत दे सकती है.
कोविड-19 ने स्वास्थ्य बीमा के बारे में जागरूकता बढ़ाई है, लेकिन कई लोग इसे एक गैर-जरूरी कर्च के रूप में देखते हैं. बीमा पॉलिसी के किफायती बनने से अधिक से अधिक लोग स्वास्थ्य बीमा खरीदने के लिए राजी हो सकते हैं. इसके अलावा, जैसे-जैसे कोविड -19 की गंभीरता कम हो गई है, गैर-कोविड क्लेम्स की लागत में वृद्धि हुई है, क्योंकि अस्पतालों ने अपने समग्र शुल्क में वृद्धि की है. इस प्रकार यह आम जनता के लिए दोहरी मार है, क्योंकि बढ़ती लागत से अंततः प्रीमियम दरों में वृद्धि होगी.
चिकित्सा बीमा एक बुनियादी आवश्यकता बन गया है और इसलिए सरकार दर को कम करने पर विचार कर सकती है. महामारी ने हजारों लोगों को आर्थिक और भावनात्मक रूप से बुरी तरह प्रभावित किया है. इस कठिन समय में व्यक्तियों और परिवारों को ऐसी आवश्यक सेवा पर उच्च कर के बोझ से मुक्त किया जाना चाहिए. दरों में कमी से अधिकाधिक लोग स्वास्थ्य बीमा लेने को तैयार होंगे.
यदि दरों को कम किया जाता है, तो सरकार अंततः इस स्रोत से अधिक राजस्व एकत्र कर सकती है, क्योंकि प्रीमियम में कमी अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा खरीदने के लिए प्रेरित कर सकती है. सरकार को प्रत्यक्ष कर संग्रह में बढ़त देखने को मिल रही है और पिछले कई महीनों में जीएसटी संग्रह भी लगभग हर महीने 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो रहा है. इन सभी पहलुओं को देखते हुए प्रीमियम पर जीएसटी दरों को कम किया जाना चाहिए. इस साल की शुरुआत में परिषद ने कोविड दवाओं और उपकरणों पर जीएसटी दरों में कमी की थी. इस कदम से बाद के महीनों में जीएसटी संग्रह प्रभावित नहीं हुआ है.
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