कोविड-19 (Corona) संकट की वजह से कई लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. इस दौरान बीमा कंपनियों में बीमा की राशि के लिए क्लेम करने वालों की संख्या सामान्य से बहुत ज्यादा हो गई. इसके साथ ही क्लेम को खारिज करने और आंशिक भुगतान करने के भी कई मामले सामने आए. बाला चंदर नाम के एक व्यक्ति ने Money9 Helpline से ऐसा ही एक सवाल किया है. हमने इस सवाल के बारे में विशेषज्ञ सलाह के लिए इंश्योरेंस समाधान के बीमा प्रमुख और सह-संस्थापक शैलेश कुमार से संपर्क किया.
सवाल – मेरी पत्नी कोविड-19 से संक्रमित थी. मैंने उसे अस्पताल में भर्ती कराया. जब मैंने बीमा की राशि के लिए क्लेम किया तो कंपनी ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह एक माइल्ड कोविड-19 केस (हल्के लक्षणों वाला) है और इसका इलाज होम क्वारंटाइन में हो सकता है. मेरी पत्नी दो महीने की गर्भवती भी थी. हम किसी तरह का जोखिम नहीं उठा सकते थे. समस्या यह है कि डॉक्टरों ने रिपोर्ट में इस बात उल्लेख नहीं किया कि वह गर्भवती थी. मैंने इस संबंध में किसी तरह डॉक्टर से एक पत्र प्राप्त किया और इसे सबमिट कर दिया.
मैंने पहले शिकायत टीम में आवेदन किया, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. इसलिए, मैंने अपने सभी दस्तावेजों के साथ बीमा लोकपाल कार्यालय में आवेदन किया. फिर अचानक एक दिन बिना किसी सूचना के कंपनी ने मेरे खाते में दावा राशि का 40% डिपॉजिट कर दिया. अब मुझे क्या करना चाहिए? क्या पूरा क्लेम मिलने की उम्मीद है?
– बाला चंदर, चेन्नई
कोविड -19 संकट के दौरान अस्पष्ट स्थितियों के कारण ऐसे ही कई मामले सामने आए. स्वास्थ्य बीमा कंपनियों और TPA ने क्लेम के निपटारे की प्रक्रियाओं को पूरा करने में समय लिया. इस दौरान ग्राहकों के लिए संवेदनशील व्यवस्था विकसित करने में समय लगा. हालांकि बीमा नियामक Irdai और सरकार ने निर्देश जारी किए लेकिन इसका ठीक से पालन नहीं हो सका क्योंकि बीमा कंपनियों के भीतर की प्रक्रियाएं काफी मुश्किल थी.
इस भ्रम का नतीजा यह हुआ कि पीड़ित पॉलिसीधारक परेशान हुए और उन्होंने शिकायतें की.
1. जरूरत नहीं होने बावजूद अस्पताल में हो गए भर्ती
कुछ पॉलिसीधारक अस्पतालों में सिर्फ इसलिए भर्ती हो गए क्योंकि उनका बीमा था, हालांकि इसकी जरूरत नहीं थी. यह बीमा के सिद्धांत के खिलाफ है. किसी को भी व्यवस्था का लाभ नहीं लेना चाहिए. इस तरह की घटनाओं की वजह से उन लोगों के लिए समस्या पैदा हो गई, जो वास्तव में जरूरतमंद थे.
2. एक स्टैंडर्ड इलाज का अभाव
कई अस्पतालों ने महंगा इलाज करते हुए बिल बढ़ा दिया. इसके चलते राज्य सरकारों ने इलाज के लिए दरें तय की. बीमा कंपनियां स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के अनुसार भुगतान करेंगी ना कि अस्पताल के मनमाने बिल या ग्राहकों की मांग के अनुसार. सभी इलाजों के लिए मेडिकल जस्टिफिकेशन की जरूरत होती है. हालांकि, इसके लिए ग्राहकों को दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वे तनाव में थे और उन्हें डॉक्टरों की सलाह को माननी पड़ी.
3. घरेलू उपचार पर भ्रमित करने वाले नियम
यह पॉलिसीधारकों के बीच असंतोष की मुख्य वजह थी. नियम और शर्तों के अनुसार अस्पताल की देखरेख में घरेलू उपचार का जस्टिफिकेशन किया जाना चाहिए. सभी अस्पतालों ने घर पर इलाज के लिए फीस निर्धारित की लेकिन ज्यादातर पॉलिसीधारकों ने टेलीमेडिसिन को चुना.
आपका (बाला चंदर का) मामला सही लगता है और आपको कम से कम 70% भुगतान होना चाहिए. सामान्य तौर पर होने वाली 30% की कटौती हो सकती है. किसी भी विशेषज्ञ को आपके क्लेम के सटीक मूल्यांकन के लिए आपकी बीमा पॉलिसी के साथ इलाज के कागजात देखने की जरूरत होगी. अगर यह एक राष्ट्रीयकृत बीमा कंपनी है, तो आपके खर्चों में कमरे के किराए को जोड़ा जा सकता है.
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