LIC: भारतीय जीवन बीमा निगम लोगों की जरूरतों के हिसाब से समय-समय पर बीमा प्लान लॉन्च करती रहती है. LIC की एक स्कीम है, जहां कम निवेश कर आप अच्छा लाभ कमा सकते हैं.
एलआईसी निवेश प्लस (LIC Nivesh Plus Plan) सिंगल प्रीमियम, नॉन पार्टिसिपेटिंग, यूनिट-लिंक्ड और व्यक्तिगत जीवन बीमा है, जो पॉलिसी की अवधि के दौरान बीमा के साथ निवेश का भी विकल्प देता है.
LIC की सबसे खास बात यह है कि इसमें लगाया गया पैसा कभी डूब नहीं सकता, क्योंकि सरकार यहां जमा राशि पर सॉवरेन गारंटी (Sovereign Guarantee) देती है.
इस प्लान में 4 तरह के फंड उपलब्ध हैं. ये हैं बॉन्ड फंड, सिक्योर्ड फंड, बैलेंस्ड फंड और ग्रोथ फंड. इनमें से किसी में आप अपनी इच्छा के मुताबिक निवेश कर सकते हैं.
इस प्लान को आप ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन भी खरीदा जा सकता है. पॉलिसी लेने वाले को बेसिक सम एश्योर्ड चुनने की भी सुविधा मिलती है.
सम एश्योर्ड सिंगल प्रीमियम का 10 गुना हैं. मान लीजिए कि अगर आप इस प्लान में 1 लाख रुपये निवेश करते हैं, तो तय समय के बाद आपको 10 लाख रुपये मिलेंगे.
इस प्लान में कम से कम 1 लाख रुपये निवेश करना होता है, जबकि निवेश की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है. इस पॉलिसी को 10 से 35 साल तक लिया जा सकता है.
90 दिन से 65 साल तक का शख्स इस प्लान को ले सकता है. प्लान की अधिकतम मैच्योरिटी उम्र 85 साल है. यदि पॉलिसीहोल्डर पॉलिसी टर्म तक जिंदा रहता है, तो उसे मैच्योरिटी बेनिफिट प्राप्त होता है.
जो यूनिट फंड मूल्य के बराबर होता है. यह पॉलिसी अवधि समाप्त होने के बाद मिलता है.
कंपनी फ्री-लुक पीरियड अपने ग्राहक को देती है. इस दौरान ग्राहक पॉलिसी को वापस कर सकते हैं. यदि कंपनी से पॉलिसी सीधे खरीदी जाती है, तो 15 दिन और ऑनलाइन खरीदी जाती है तो 30 दिन की फ्री-लुक पीरियड लागू होती है.
यदि पॉलिसी अवधि के दौरान बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है, तो नॉमिनी डेथ बेनिफिट प्राप्त करने का हकदार है. यदि पॉलिसीधारक जोखिम शुरू होने की तारीख से पहले मर जाता है तो यूनिट फंड वैल्यू के बराबर राशि देय होती है.
यदि पॉलिसी अवधि के दौरान बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है, तो नॉमिनी डेथ बेनिफिट प्राप्त करने का हकदार है. यदि पॉलिसीधारक की मृत्यु जोखिम शुरू होने की तारीख से पहले ही हो जाती है, तो यूनिट फंड वैल्यू के बराबर राशि नॉमिनी को मिलती है.
निवेश प्लस प्लान में कंपनी ग्राहकों को 6वीं पॉलिसी वर्ष के बाद आंशिक निकासी करने की भी इजाजत देता है. जिसका मतलब ये हुआ कि पॉलिसी में 5 साल का लॉक इन पीरियड है.
इसके अलावा नाबालिगों के मामले में 18 वर्ष की आयु के बाद आंशिक निकासी की जा सकती है.
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