कोविड -19 महामारी और इकोनॉमिक क्राइसिस के चलते, जॉब स्टेबिलिटी को लेकर लोगों में डर है. ज्यादातर नौकरीपेशा लोग नौकरी छूट जाने और सैलरी में कटौती को लेकर डरे हुए हैं. ऐसे अनिश्चितता के दौर में, जॉब लॉस इंश्योरेंस (Job Loss Insurance) अपने और अपने परिवार को सुरक्षित करने के बेहतरीन तरीकों में से एक है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा पब्लिश किए लेटेस्ट डेटा के मुताबिक, 8 अगस्त को खत्म हुए हफ्ते में देश की बेरोजगारी दर बढ़कर 7.24% हो गई.
जॉब इंश्योरेंस पॉलिसियों (Job Loss Insurance) में एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया होता है. बुनियादी मानदंडों में से एक है कि इच्छुक व्यक्ति एक रजिस्टर्ड कंपनी का एम्प्लॉई होना चाहिए.
जॉब इंश्योरेंस (Job Loss Insurance) पॉलिसी होल्डर और उसकी फैमिली को नौकरी खोने की स्थिति में फाइनेंशियल सिक्योरिटी ऑफर करती है. नौकरी छूटने के बाद पॉलिसी होल्डर एक निश्चित अवधि के लिए मुआवजा पाने का हकदार होता है.
भारत में, जॉब लॉस इंश्योरेंस स्टैंड-अलोन इंश्योरेंस पॉलिसी के रूप में प्रोवाइड नहीं किया जाता है. इसका फायदा राइडर बेनिफिट के रूप में उठाया जा सकता है. आम तौर पर, जॉब लॉस इंश्योरेंस हेल्थ इंश्योरेंस या होम इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ आता है.
आमतौर पर, जॉब इंश्योरेंस के लिए प्रीमियम कुल कवरेज का 3% से 5% तक होता है.
जॉब इंश्योरेंस बहुत लिमिटेड कवर प्रोवाइड करता है. ज्यादातर कंपनियां नेट इनकम का 50% ऑफर करती हैं. जिन मामलों में जॉब इंश्योरेंस कोई कवरेज नहीं देता वो नीचे दिए गए हैं:
– सेल्फ-एम्प्लॉयड या अनइंप्लॉयड इंडिविजुअल (स्वरोजगार या बेरोजगार व्यक्ति)
– प्रोबेशन पीरियड के दौरान बेरोजगारी
– अर्ली रिटायरमेंट या वॉलंटरी रेजिग्नेशन (प्रारंभिक सेवानिवृत्ति या स्वैच्छिक इस्तीफा)
– मौजूदा बीमारी के कारण नौकरी छूटना
– खराब प्रदर्शन या फ्रॉड की वजह से सस्पेंशन, रिट्रेंचमेंट, टर्मिनेशन
चूंकि जॉब लॉस इंश्योरेंस राइडर बेनिफिट के रूप में अवेलेबल है, इसलिए पॉलिसी को रिन्यू करने के लिए कोई अलग प्रोसेस नहीं है. एक बार जब आप मेन पॉलिसी को रिन्यू कर देते हैं, तो ये ऑटोमेटिकली रिन्यू हो जाता है.
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