Insurance: लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी प्राथमिक तौर पर बीमा कंपनी और पॉलिसीधारक के बीच एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट होता है, जो पॉलिसीधारक की मौत होने पर आश्रितों की आर्थिक मदद करता है. इस गारंटी के बदले, ग्राहकों को प्रीमियम चुकाना पड़ता है, जो एक बार में या निश्चित समय अंतराल में देना पड़ता है. इस प्रीमियम के भुगतान का तरीका पॉलिसीधारक की फाइनेंशिल फ्लेक्सिबिलिटी के आधार पर तय किया जाता है. अब, इंश्योरेंस (Insurance) कंपनियां चार तरीकों से प्रीमियम का कैलकुलेशन करती हैं. इसलिए, एक समान बीमा राशि के लिए किन्हीं दो व्यक्ति को अलग-अलग प्रीमियम चुकाने पड़ सकते हैं, जिनके पीछे के प्रमुख कारण ये हैं.
ज्यादातर इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स में कुछ हामीदारी (अंडरराइटिंग) की जरूरत पड़ती है. “अंडरराइटिंग” टर्म लाइफ इंश्योरेंस एप्लीकेशन परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो पॉलिसीधारक के रिस्क प्रोफाइल के आधार पर यह तय करता है कि पॉलिसी जारी की जानी चाहिए या नहीं.
यहां टर्म ‘रिस्क’ का मतलब ये है कि बीमा कंपनी पॉलिसीहोल्डर्स को किसी भी दुर्घटना के मामले में आर्थिक मदद दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है.
अब, किसी खास एप्लिकेशन से जुड़े जोखिमों को हर बीमा कंपनी अलग-अलग तरीके से देखती और कैटेगरी के रूप में देखती है.
अंडरराइटिंग टूल में कई फैक्टर काम करते हैं जैसे आपकी उम्र, लिंग, नौकरी (आपका पेशा कितना खतरनाक), जीवनशैली का अंदाज (धुम्रपान करते हैं या नहीं) पॉलिसी टेन्योर, अन्य वंशानुगत बीमारियां (डायबिटीज, कैंसर आदि) जो परिवार में पहले से मौजूद हों.
लाइफ इंश्योरेंस को लेकर सबसे आम सलाह ये दी जाती है कि इसे कम उम्र में ले लेना चाहिए. ऐसा इसलिए कि कम उम्र में इंश्योरेंस का प्रीमियम रेट काफी कम होता है, इसलिए कहा जाता है कि 42 साल की उम्र की जगह 22 साल में इंश्योरेंस कराना चाहिए.
इसके पीछे का साधारण सा जवाब है कि उम्र के साथ साथ जीवन में शारीरिक समस्याएं और दूसरे खतरे बढ़ते हैं. कई बीमारियों को होने का भी खतरा बढ़ जाता है.
उम्र के साथ साथ आपका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और वो रोग से जल्दी लड़ने की क्षमता को खो देता है.
इसके अलावा, जब आप 42 साल की उम्र में लाइफ इंश्योरेंस खरीदते हैं तो आपको पहले से भी बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है. इसके चलते बीमा कंपनियों को रिस्क ज्यादा रहता है और वो इसकी भरपाई के लिए ज्यादा प्रीमियम वसूलते हैं.
बीमा पॉलिसी पर प्रीमियम केवल पॉलिसीधारकों पर निर्भर नहीं होता है, जबकि कुछ बीमा कंपनियों पर आधारित होती हैं. बीमा कंपनियों के पास पॉलिसी लिखने, जोखिम के आंकलन, ऑपरेशनल कॉस्ट और इनवेस्टमेंट रिटर्न के लिए एक कॉस्ट स्ट्रक्चर होता है.
यहां तक कि पॉलिसी डॉक्यूमेंट की लागत, बीमा एजेंट का कमीशन और अन्य दूसरे खर्चे भी कंपनियां जोड़ती हैं. इसके जरिए कंपनियां जो बीमा से लाभ कमाना चाहती हैं, उसे हासिल कर लेती है. और ये आपके बीमा के प्रीमियम की कीमत पर शामिल होता है.
हर इंश्योरेंस कंपनी के अपने प्रॉफिट मार्जिन होते हैं, जिन्हें उन्हें हासिल करना होता है. अब आराम से इस बात को समझा जा सकता है कि एक ही समान राशि को लेकर कंपनियां अलग अलग प्रीमियम क्यों चार्ज करती हैं.
लाइफ इंश्योरेंस के प्रीमियम में एक छोटी सी हिस्सेदारी आकस्मिकता फीस की भी होती है. हालांकि इस फीस का छोटा सा ही हिस्सा पॉलिसीहोल्डर को उठाना पड़ता है, लेकिन कंपनियों के फाइनेंस मेनमेंट करने के लिए ये बड़ी भूमिका अदा करती है.
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