अगर किसी ने जीवन बीमा ले रखा है और पॉलिसी अवधि में पॉलिसीधार की मृत्यु हो जाती है तो परिवार के सदस्यों को क्लेम मिलता है. इसके लिए उन्हें पॉलिसीधारक की मृत्यु के दस्तावेज उपलब्ध कराने होते हैं. अगर बीमा लेने वाला व्यक्ति पॉलिसी की अवधि के दौरान गुम या गायब हो जाए तो परिवार को कैसे क्लेम मिलेगा ये एक पेचीदा सवाल है. इस सिलसिले में कुछ नियमों के बारे में जानकारी होना जरूरी है.
क्या है नियम?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 108 के अनुसार अगर पॉलिसीधारक लापता हो जाता है तो उस व्यक्ति की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करानी होती है. अगर लापता होने के सात साल तक व्यक्ति नहीं लौटता है तो उसे मृत समझा जाता है. हालांकि लापता व्यक्ति के परिवार को खासतौर पर टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी में प्रीमियम का भुगतान जारी रखना होगा. तभी वह सात साल बाद क्लेम के लिए आवेदन कर सकेंगे.
दर्ज कराएं एफआईआर
अगर पॉलिसीधारक का अपहरण कर लिया गया हो अथवा गुम हो गया हो, या उसकी मृत्यु हो गई हो और लाश अभी तक नहीं मिली हो तो उसका पता नहीं चल पाता है. ऐसे में दावे के लिए एफआईआर दर्ज कराएं. पुलिस को बताएं कि व्यक्ति से कोई संपर्क नहीं हो रहा है.
अदालत से कराएं वेरिफाई
अगर पॉलिसीधारक के लापता होने की सूचना दिए जाने के सात साल बाद भी वह व्यक्ति न मिले और पुलिस भी उसका पता लगाने में नाकाम रहे तो परिवार को अदालत का सहारा लेना चाहिए. अदालत को रिपोर्ट के बारे में सूचित किया जाता है. अगर अदालत की ओर से ये मान लिया जाए कि लापता व्यक्ति की मौत हो गई है तब दावेदार क्लेम के लिए आवेदन कर सकेंगे.
बीमा कंपनी से करें संपर्क
अदालत से हुए सत्यापन के बाद दावेदार क्लेम के लिए बीमा कंपनी से संपर्क कर सकते हैं. उन्हें पुलिस की ओर से नॉन ट्रेसेबल रिपोर्ट और अदालत के आदेश की कॉपी लगानी होगी, जिससे ये मान लिया जाएगा कि लापता पॉलिसीधारक की मौत हो चुकी है. ऐसे में परिजनों व नॉमिनी को बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा.