क्या आपने कभी सोचा है कि मोटर इंश्योरेंस (motor insurance) का प्रीमियम (premium) कैसे तय किया जाता है? इसके लिए कंपनियां बहुत सी चीजों पर ध्यान देती हैं. इनमें वाहन की आयु से लेकर फ्यूल टाइप वगैरह शामिल हैं.
मोटर इंश्योरेंस प्रीमियम का आंकलन करते समय इन सामान्य बातों पर ध्यान दिया जाता है:
जिन वाहनों की इंजन क्षमता अधिक होती है, उनपर कम इंजन क्षमता वाले वाहन की तुलना में अधिक प्रीमियम देना होता है. इसी तरह, विंटेज कारों पर रेगुलर मॉडलों की तुलना में अधिक प्रीमियम लगता है. जब आप बीमा का फॉर्म भर रहे होते हैं, तो आपको वाहन की पूरी जानकारी देनी होती है. इनके आधार पर प्रीमियम का निर्धारण होता है.
मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी में कई राइडर भी मिलते हैं. इनमें जीरो डेप्रिशियएशन कवर, इंजन प्रोटेक्शन और रोडसाइड असिसटेंट कवर वगैरह शामिल हैं. यदि आप ऐसे किसी राइडर को चुनते हैं तो आपका प्रीमियम बढ़ जाता है. राइडर तभी लेना चाहिए, जब वह आपकी जरूरतों के मुताबिक हो.
थर्ड पार्टी कवर लेना कानूनी तौर पर अनिवार्य है. यदि आप केवल इसी को चुनते हैं, तो आपको पॉलिसी ज्यादा महंगी नहीं पड़ेगी. अगर आप विस्तृत प्लान लेते हैं, तो आपको स्वयं द्वारा किए गए डैमेज और थर्ड पार्टी इंश्योरेंस, दोनों का फायदा होगा. लेकिन इस स्थिति में आपको अधिक प्रीमियम देना होगा. ज्यादा कवरेज प्राप्त करने के लिए विस्तृत प्लान लेना चाहिए.
ये वह वैल्यू होती है, जिसे चोरी या पूरे नुकसान की स्थिति में भुगतान किया जाता है. इस वैल्यू को आप जितनी अधिक रखेंगे, आपको उतना ही ज्यादा प्रीमियम देना होगा.
क्लेम करते वक्त आपको जिस राशि का भुगतान करना होता है, उसे डिडक्टेबल कहा जाता है. इस स्थिति में आपको रिपेयर लागत का एक निश्चित हिस्सा खुद ही चुकाना होता है, क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी पूरी क्लेम राशि का भुगतान नहीं करती.
प्रत्येक क्लेमलेस वर्ष के लिए इंश्योरेंस कंपनी आपको प्रीमियम पर छूट प्रदान करती है. इसे नो क्लेम बोनस कहते हैं. आपकी पॉलिसी के खत्म होने के छठे साल तक आप 20 से 50 फीसदी तक का डिस्काउंट प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए छोटा मोटा रिपेयर खुद ही करा लेना चाहिए, अन्यथा इस बोनस पर नुकसान झेलना पड़ सकता है.
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