कोरोना काल के दौरान लोग अब ज्यादा से ज्यादा हेल्थ इंश्योरेंस(Health Insurance) करा रहे हैं. ताकि स्वास्थ्य संबंधी किसी भी मुसीबत के वक्त आसानी से इलाज हो सके. हेल्थ इंश्योरेंस में आमतौर पर हॉस्पिटल में भर्ती से पहले और बाद का खर्च, रूम रेंट, एम्बुलेंस फैसिलिटी, डॉक्टर्स की फीस और दवाई का खर्च कवर होता है. लेकिन हर परिस्थिति में बीमा कंपनी आपके इलाज का खर्च उठाए ऐसा जरुरी नहीं है. हर कोई पॉलिसी से जुड़े ‘नियम एवं शर्तों’ को नहीं समझ पाता है. ऐसे में हेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले यह समझना जरूरी है कि कौन-सी पॉलिसी आपकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है.
वेटिंग पीरियड में नहीं कर सकते क्लेम
आपको हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय वेटिंग पीरिएड से जुड़े नियमों को अनिवार्य तौर पर समझना चाहिए. पॉलिसी खरीदने का मतलब यह नहीं होता कि पॉलिसी खरीदने के पहले दिन से ही इंश्योरेंस कंपनी आपको कवर करने लगेगी. बल्कि, आपको क्लेम करने के लिए थोड़े दिन रुकना पड़ेगा. पॉलिसी खरीदने के बाद से लेकर जब तक आप बीमा कंपनी से कोई लाभ का क्लेम नहीं कर सकते, उस अवधि को एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का वेटिंग पीरियड कहा जाता है. ये अवधि 15 से 90 दिनों तक की हो सकती है. जिस दौरान आप अपने हेल्थ पॉलिसी का क्लेम फाइल नहीं कर सकते हैं.
पहले से कोई बीमारी हो, तो ये हैं नियम
IRDAI के मुताबिक इंश्योरेंस कराने के वक्त से 48 महीने पहले अगर किसी व्यक्ति को किसी तरह की बीमारी या दुर्घटना का शिकार होना पड़ा है जिसमें उसने डॉक्टर से इलाज कराया या उसका इलाज चल रहा है या डॉक्टर की सलाह की दरकार है तो ऐसी स्थिति को pre-existing diseases मानी जाएगी. आमतौर पर ऐसी बीमारी तभी कवर हो सकती है जब चार साल तक इसके लिए वेट किया जाए. कुछ कंपनिया इसके लिए 36 महीनों का वेटिंग पीरियड रखती हैं. ऐसे में अगर बीच में आपके स्वास्थ्य में गिरावट आती है तो अस्पताल का खर्चा आपको खुद ही उठाना पड़ेगा. प्रत्येक पॉलिसी में अलग-अलग नियम शर्तं होती हैं.
24 घंटे एडमिट रहने का नियम
अगर आप हेल्थ इंश्योरेंस के तहत क्लेम करना चाहते हैं तो इसके लिए जरुरी है कि आप अस्पताल में कम से कम 24 घंटे एडमिट रहे हो. यानि तबीयत खराब होने पर अस्पताल में 1 दिन तो जरुर एडमिट रहना होगा. इसके दस्तावेज़ सब्मिट करने के बाद ही आप बीमा कंपनी से राशि क्लेम कर सकते हैं. लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी हैं जिनका इलाज बहुत कम समय में हो सकता है. इसके बाद मरीज उसी दिन घर जा सकता है. कैटेरेक्ट सर्जरी, लिथोग्राफी, डायलिसिस और कीमो आदि में कम समय लगता है.
को पेमेंट का विकल्प
कई तरह की पॉलिसीज को-पेमेंट क्लॉज के साथ आती हैं. इसका मतलब है कि अगर आप क्लेम फाइल करते हैं तो इसके एक हिस्से का भुगतान आपको खुद करना होगा. मान लीजिए अस्पताल में कुल खर्च का 90 फीसदी हिस्सा बीमा कंपनी देगी तो वहीं 10 फीसदी हिस्सा पॉलिसी खरीदने वाले को देना होता है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए बाजार में उपलब्ध लगभग सभी योजनाएं को-पेमेंट की शर्त के साथ आती हैं. इसलिए आप वहीं पॉलिसी चुनें जो आपको अन्य क्लेम पर कम भुगतान करने का ऑफर देती है. आप चाहें तो एक्सट्रा प्रीमियम देकर को-पेमेंट को माफ करने का विकल्प भी चुन सकते हैं. हालांकि, कुछ इंश्योरर को-पेमेंट की राशि फिक्स्ड रखते हैं. जबकि कुछ एक रेंज निर्धारित कर देते हैं.
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