Health Insurance: समीर के पेट के ट्यूमर का मामला जब गड़बड़ाया तो घर वाले सर्जरी के लिए हिसार से दिल्ली ले आए. समीर के पास पांच लाख रुपए का हेल्थ बीमा कवर था. इलाज का चार लाख रुपए का खर्च आया. लेकिन बीमा कंपनी ने क्लेम में 20% कटौती कर ली. समीर के करीब 80 हजार रुपए अपनी जेब से भरने पड़े. आइए, समझते हैं कि आखिर समीर के साथ ऐसा क्यों हुआ?
समीर को पूरा क्लेम न मिलने की वजह बीमा कंपनी नहीं बल्कि हेल्थ बीमा से जुड़ा वह नियम है जिसकी लोग अनदेखी कर देते हैं. दरअसल, बीमा प्रीमियम की कॉस्ट कई फैक्टर के आधार पर तय होती है. जैसे बीमाधारक की आयु, मेडिकल हिस्ट्री, व्यवसाय और यहां तक की वो किस शहर में रहता है. हेल्थ बीमा कंपनियों ने प्रीमियम की कॉस्ट को शहर के मुताबिक जोन-ए, जोन-बी और जोन-सी यानी तीन कैटेगरी में बांटा हुआ है.
देश के मेट्रो सिटी जोन-ए, बेंगलुरू, अहमदाबाद, सूरत और जयपुर जैसे शेयर जोन-बी और बाकी के इलाके जोन-सी में शामिल हैं. हालांकि, बीमा कंपनियों ने जोन की कैटेगरी अपने हिसाब से बनाई हुई हैं. इसलिए हर कंपनियों के प्लान में जोन की कैटगरी अलग-अलग मिलेगी. गांव या छोटे शहर में रहने वालों को हेल्थ इंश्योरेंस बड़े शहरों की तुलना में सस्ता मिलता है. लेकिन जब इस बीमा का इस्तेमाल वह बड़े शहर में करते हैं तो कंपनी पॉलिसी की शर्तों के आधार पर क्लेम की रकम में कटौती करती है.
उदाहरण के लिए समीर 30 साल के हैं. परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं… अगर वो दिल्ली के पते पर यानी जोन-ए में बजाज आलियांज का 5 लाख रुपए का हेल्थ गार्ड फैमिली फ्लोटर प्लान लेते हैं तो उन्हें 20,945 रुपए का प्रीमियम देना होगा. जोन-बी में इसके लिए 16,756 रुपए चुकाने होंगे. जोन-सी में 5 लाख रुपए के कवर के लिए 14,662 रुपए देने होंगे. इस तरह समीर को जोन-बी के पते पर बीमा प्लान 20 फीसद जोन-सी के पते पर खरीदने पर 30 फीसद सस्ता पड़ेगा.
अगर बजाज आलियांज की बात करें तो जोन-सी वाला बीमाधारक जोन-ए के हॉस्पिटल में इलाज कराता है तो उसे 20 फीसद को-पेमेंट यानी अपनी जेब से भुगतान करना होगा. इसी तरह जोन-बी के बीमाधारक को जोन-ए में इलाज कराने पर 15 फीसद खर्च अपनी जेब से देना होगा. जोन-सी से जोन-बी में इलाज कराने पर 5% कम क्लेम मिलेगा.
समीर के साथ भी यही हुआ. उन्होंने हिसार यानी जोन-सी के प्रीमियम के आधार पार बीमा कवर लिया था और जोन-ए में इलाज कराया. इस वजह से उन्हें पूरा क्लेम नहीं मिला. अगर आप किसी छोटे शहर जोन-सी में रहते हैं तो वहां भी आप जोन-ए का प्रीमियम ऑप्शन चुन सकते हैं.
अगर आप छोटे शहर में रहते हैं तो दो तरह के हेल्थ प्लान का विकल्प रहता है. जोन वाइज प्रीमियम के तहत कम प्रीमियम वाला प्लान ले सकते हैं या फिर ज्यादा प्रीमियम चुकाकर रेगुलर हेल्थ प्लान. कई बार सस्ते प्रीमियम के चक्कर में लोग बिना को-पेमेंट के नियम को समझे जोन के आधार पर बीमा ले लेते हैं. आगे जाकर अगर बड़े शहर में इलाज करवाने की जरूरत पड़ती है तो क्लेम पेमेंट में को-पेमेंट की बात पर समीर की तरह ठगा हुआ महसूस करते हैं.
Midas Finserve के डायरेक्टर पंकज रस्तोगी कहते हैं कि महानगरों की तुलना में छोटे शहरों के अस्पतालों में भर्ती होने का खर्च कम होता है. बीमा कंपनियां यह भी मानकर चलती हैं कि महानगरों में रहने वाले लोगों को जीवनशैली संबंधी बीमारियों का खतरा अधिक हो सकता है इसलिए जोन-ए का प्रीमियम ज्यादा होता है. कुछ बीमा कंपनियां गांवों और छोटे शहरों के लोगों को कम लागत का लाभ देने का प्रयास करती हैं. लेकिन आपको प्रीमियम में 2-4 हजार रुपए का फायदा नहीं देखना चाहिए. अगर भविष्य में बड़े शहर में इलाज कराना पड़ा तो एक बार में ही बचत की तुलना में कई गुना रकम चुकानी पड़ सकती है.
समीर जैसी घटना से बचने के लिए थोड़ा ज्यादा प्रीमियम चुका कर देश में कहीं भी पूरे कैशलेस कवर की सुविधा लेनी चाहिए. अगर आप एक जोन से दूसरे जोन में जाकर शिफ्ट हो रहे हैं तो अपनी बीमा कंपनी को सूचित करें ताकि अगली बार पॉलिसी रिन्यू कराते समय प्रीमियम एडजस्ट हो जाए और क्लेम लेने के दौरान समीर जैसी समस्या न उठानी पड़े. सेहत की सुरक्षा के मुद्दे पर 2-4 हजार रुपए बचाने में कोई समझदारी नहीं है.
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