Health Insurance Policy: अल्जाइमर की वजह से स्मरण शक्ति कमजोर होती है और सोचने की क्षमता भी कम होती है जिसकी वजह से दैनिक जीवन प्रभावित होने लगता है जो काफी गंभीर स्थिती हैं. हालांकि शुरुआती स्टेज में इसका पता चलने पर मेडिकल ट्रीटमेंट के जरिए इस डिस्ऑर्डर के बढ़ने की गति को कम किया जा सकता है, एक्सपर्ट्स का कहना है कि अभी भी 90% डिमेंशिया वाले लोगों को डायग्नोस या उनका ट्रीटमेंट नहीं किया जाता है. बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के रिटेल अंडरराइटिंग हेड गुरदीप सिंह बत्रा ने कहा, “ये बीमारी 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में अधिक देखी जाती है. अल्जाइमर और पार्किंसन डिजीज की दर हमारे देश में अपेक्षाकृत कम है. हालांकि, आज अवेयरनेस और एडवांस डायग्नोस्टिक टेक्निक के साथ, अल्जाइमर और पार्किंसन सहित मेंटल डिजीज की दर हाल के दिनों में बढ़ी है ”
बीमारी की गंभीरता को देखते हुए इन बीमारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज जरूरी हो गया है. हेल्थ पॉलिसियों का दायरा हाल ही में उन लाखों लोगों की मदद करने के लिए बढ़ाया किया गया है जो पैसे की कमी के कारण चुपचाप बीमारी से लड़ते हैं. बत्रा ने कहा, “लोगों को इस फैक्ट से रूबरू कराना चाहिए कि इन बीमारियों के इलाज का खर्च कवर किया जाता है”
2020 में रेगुलेटर ने हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों में कुछ बदलाव किए. नई गाइडलाइन्स को फॉलो करते हुए, इंश्योरेंस कंपनियां अब अल्जाइमर, पार्किंसन, HIV, एड्स, मिर्गी और हेपेटाइटिस बी जैसी 17 गंभीर बीमारियों के लिए एक पेशेंट को कवरेज देने से इनकार नहीं कर सकती हैं.
इसके बजाय, वो या तो इसे स्थायी रूप से बाहर कर सकती हैं या सब-लिमिट ला सकते हैं और रिस्ट्रिक्शन कंपनी की अंडरराइटिंग प्रैक्टिस के अनुसार कर सकते हैं.
इसी तरह, मानसिक बीमारी के साथ-साथ, 11 अन्य बीमारियां, जैसे साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर, बिहेवियरल और न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर, जेनेटिक डिसऑर्डर, प्यूबर्टी और मेनोपॉज रिलेटेड डिसऑर्डर एक्सक्लूजन लिस्ट से हटा दिए गए हैं.
यदि किसी व्यक्ति को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के बाद ऐसी बीमारी होती है तो अल्जाइमर जैसी बीमारी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों में कवर की जाती है.
हालांकि, कवरेज अमाउंट पर सब-लिमिट हो सकती हैं, जिसे इंश्योरर के साथ पॉलिसी लेने से पहले जानना जरूरी है.
eExpedise Healthcare के फाउंडर और CEO अमित शर्मा ने कहा, “हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां आम तौर पर आपके अस्पताल में भर्ती होने के खर्च जैसे डॉक्टर की फीस और रूम का रेंट, मेडिसिन की कॉस्ट आदि को कवर करती हैं. पॉलिसी और इंश्योरेंस प्रोवाइडर के आधार पर सब-लिमिट अलग-अलग होती हैं”
ये ध्यान देने वाली बात है कि पॉलिसी होल्डर को कम से कम 24 घंटे तक अस्पताल में भर्ती होने के बाद ही कवरेज ऑफर किया जाता है. बत्रा ने कहा “मानसिक बीमारियों को उस सब-लिमिट के अधीन कवर किया जाता है, जिस प्रोडक्ट के तहत वो कवर किए जाते हैं”
इसलिए लास्ट मिनट पर होने वाली परेशानी से बचने के लिए, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने से पहले, वेटिंग पीरियड और सब-लिमिट जरूर चेक करें.
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