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को-पे क्लॉज के साथ Health Insurance Policy लेने से पहले जान लें ये सच्‍चाई

Health Insurance: पॉलिसी में को-पे क्लॉज का मतलब होता है कि इलाज में आने वाले कुल खर्चे में से कुछ हिस्सेदारी बीमाधारक को भी चुकानी पड़ेगी.

  • Team Money9
  • Last Updated : August 5, 2021, 12:23 IST
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Health Insurance:  क्या आप जानते हैं कि कुछ Health Insurance ऐसे भी होते हैं, जहां तमाम मेडिकल नेटवर्क में कैशलेस सुविधा होने के बावजूद खर्च का कुछ हिस्सा बीमाधारक को देना होता है. अक्सर, मेडिक्लेम में कटौती के पीछे के कारणों में नॉन-मेडिक्लेम खर्च, इनवेस्टिगेशन चार्ज, अस्पताल के कमरे का रेंट आदि शामिल होते हैं. इसके अतिरिक्त अलग अलग सब लिमिट क्लॉज और कैपिंग के कारण बीमाधारकों को कैशलेस होने के बावजूद खर्च उठाना पड़ता है. ज्यादातर बीमा कंपनियां इस क्लॉज के साथ पॉलिसियां बेचती हैं. लेकिन कई नए बीमाधारक इन नियमों से परिचित नहीं होते हैं.

को-पे क्लॉज क्या है?

इंश्योरेंस पॉलिसी में को-पे क्लॉज का मतलब होता है कि इलाज में आने वाले कुल खर्चे में से कुछ हिस्सेदारी बीमाधारक को भी चुकानी पड़ती है.

इसके चलते बीमा कंपनियां पॉलिसियों को कम दाम में बेचती हैं क्योंकि ये खर्च बीमाधारक के खाते में चला जाता है. ये एक स्वीकार्य दावा राशि है, जिसे सहमति के साथ अनुपात के रूप में बीमा कंपनी और बीमाधारक दोनों को चुकाना पड़ता है.

बीमा पॉ़लिसियों में मेडिकल सर्विसेज के लिए को-पे क्लॉज को प्रतिशत के रूप दस्तावेज में लिखा जाता है.

फाइनेंशियल प्लानर और इनवेस्टोग्राफी की फाउंडर श्वेता जैन के मुताबिक “को-पे के चलते बीमा धारकों को कम प्रीमियम चुकाना पड़ता है.

ये एक फिक्स्ड अमाउंट होता है, जिसे बीमा धारक को क्लेम के वक्त चुकाना होता है. ये लोगों को इसके लिए भी प्रोत्साहित करता है कि वो अपने क्लेम को लेकर ईमानदार रहें और बेवजह ट्रीटमेंट न कराएं.

इससे पॉलिसी धारक को भी नुकसान हो सकता है क्योंकि इसके चलते कोई इलाज नहीं भी कराने का फैसला कर सकता है.”

किस अनुपात में होता है को-पे?

अगर आप पॉलिसी कराते हैं और उसमें को-पे का विकल्प होता है तो इसका मतलब है कि इलाज के दौरान आने वाले खर्च का कुछ हिस्सा आप अपनी जेब से अदा करेंगे जबकि शेष हिस्सा बीमा कंपनी देगी. इस भुगतान की लिमिट कुल सम एश्योर्ड के 5 फीसदी से लेकर 30 फीसदी तक हो सकती है.

उदाहरण के लिए, अगर आपकी हेल्थ पॉलिसी का सम एश्योर्ड 1 लाख रुपए के साथ-साथ 20 फीसदी को-पे भी है तो आपको अपनी जेब से 20 हजार रुपए चुकाने होंगे. जबकि क्लेम का बाकी 80 हजार रुपए बीमा कंपनी चुकाएगी.

याद रखें कि इलाज ते कुल क्लेम का 20 फीसदी आपको देना होगा. मान लीजिए कि अगर आपका मेडिकल बिल एक लाख रुपए आया है जिसमें कुछ जरूरी टेस्ट और स्कैन 10 हजार रुपए के हैं. तो टेस्ट और स्कैन पर हुए खर्च को कुल क्लेम में शामिल नहीं किया जाएगा.

इसका मतलब आपका फाइनल क्लेम अमाउंट 90 हजार रुपए हुआ, तो को-पे के मुताबिक आपको इसमें से 20 फीसदी खर्च का बोझ उठाना होगा. इसका मतलब कि इलाज के लिए 72 हजार रुपए बीमा कंपनी चुकाएगी और 18 हजार रुपए आपको चुकाने होंगे.

बीमा धारक को को-पे का फायदा?

समय के साथ हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी महंगी होती जा रही हैं. ये आमतौर पर माना जाता है कि बेहतर पॉलिसी के लिए आपको ज्यादा प्रीमियम चुकाना ही होगा. लेकिन बीमा धारक इस प्रीमियम पर डिस्काउंट हासिल कर सकता है अगर वो को-पे का विकल्प चुनता है.

को-पे क्लॉज विकल्प चुनने पर इंश्योरेंस कंपनी आपको कम प्रीमियम पर पॉलिसी ऑफर करती हैं. जैन के मुताबिक “अगर कोई युवा है और उसकी कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं है, तो वो इस लो-प्रीमियम और ज्यादा कवर वाली स्कीम का फायदा उठा सकता है. ”

क्या करना चाहिए?

अब आप समझ गए होंगे कि को-पे का मतलब होता है कि क्लेम सैटलमेंट के दौरान आपको एक निश्चित अनुपात में इलाज का खर्च उठाना पड़ता है.

लेकिन इसे लेने से पहले सोच विचार करें और अपनी आर्थिक क्षमताओं के आधार पर को-पे हेल्थ इंश्योरेंस को चुनें. यह सुझाव इसलिए है कि कई बार बीमारी के इलाज का खर्च अचानक इमरजेंसी के तौर पर हमारे सामने आता है.

अगर आपको इंश्योरेंस पॉलिसी के होते भी इलाज का खर्च उठाना पड़ता है तो विपरित परिस्थितियों के दौरान ये कठिन साबित हो सकता है.

इसलिए अपने भविष्य के लक्ष्यों को साधते हुए, सब लिमिट और को-पे के तमाम क्लॉज को पढ़कर समझने के लिए पॉलिसी के डॉक्युमेंट्स पर साइन करें.

Published - August 5, 2021, 12:23 IST

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