दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीमा क्षेत्र के नियामक IRDAI से यह बताने के लिए कहा है कि वह किस आधार पर बीमा नीतियों को मंजूरी दे रहा था, जिसमें मानसिक बीमारियों को पूर्ण कवरेज से बाहर रखा गया था. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 यह स्पष्ट करता है कि मानसिक और शारीरिक बीमारियों और इसके संबंध में प्रदान किए गए बीमा के बीच कोई भेदभाव नहीं हो सकता है.
न्यायालय द्वारा IRDAI को निर्देश एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर दिया गया, जिसके द्वारा उसकी मानसिक बीमारी के इलाज में लागत की प्रतिपूर्ति के दावे को बीमा प्रदाता – मैक्स बुपा हेल्थ इंश्यारेंस लिमिटेड द्वारा 50,000 रुपये तक सीमित कर दिया गया था.
अदालत ने IRDAI और मैक्स बूपा को दो सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया, कहा कि बड़ी संख्या में बीमित व्यक्ति ऐसी बीमा पॉलिसी से प्रभावित होंगे.
याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि वह नियमित रूप से 35 लाख रुपये की बीमा राशि का प्रीमियम चुका रहा है, लेकिन जब उसने अपने बीमा के लिए बीमा राशि का दावा किया, तो उसे पता चला कि मानसिक बीमारी के मामले में बीमा राशि 50,000 रुपये तक सीमित है.
उनके वकील ने अदालत को बताया कि लगभग सभी प्रचलित मानसिक स्थितियां, जैसे गंभीर अवसाद, खान-पान की गड़बड़ी, पैनिक डिसऑर्डर, स्किजोफ्रेनिया, PTSD, OCD के लिए 50,000 रुपये के बीमित राशि तक सीमित हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस तरह का प्रतिबंध 2017 के मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है.
याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद, अदालत ने कहा, “नीति में वर्णित खंड स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि बड़ी संख्या में मानसिक स्थितियों को नीति के पूर्ण कवरेज से बाहर रखा गया है और इन मानसिक स्थितियों के लिए केवल 50,000 रुपये की राशि प्रतिपूर्ति योग्य है.
“इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण द्वारा किस आधार पर ऐसी बीमा पॉलिसियों के लिए मंजूरी दी गई है.” अदालत दो जून को मामले की सुनवाई करेगी.
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