लगातार बढ़ती ऑनलाइन ठगी और मैलवेयर हमले के चलते साइबर बीमा कवर महंगा हो गया है. इसमें पिछले एक साल में करीब 50-60 फीसद की वृद्धि हुई है. इस बढ़ती हुई लागत से निपटने के लिए कंपनियां किफायती प्रीमियम बनाए रखने के लिए कवरेज क्षमता को कम करने या कटौतियों को बढ़ाने जैसे उपायों को अपना रही हैं.
कटौती से मतलब उस राशि से है जो बीमा कंपनियों को बतौर कवरेज बीमाधारक को देनी होती है. कई बार इसमें जरूरत से ज्यादा का भी भुगतान करना पड़ता है. भारत में बीमा दावे मुख्य रूप से मैलवेयर हमलों, डेटा उल्लंघन और रैनसमवेयर घटनाओं की वजह से लिए जाते हैं. दावों में वृद्धि को देखते हुए, ज्यादातर कंपनियां साइबर पॉलिसी खरीद रही हैं.
ये कंपनियां ज्यादा ले रहीं बीमा पहले साइबर बीमा मुख्य रूप से आईटी, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों की ओर से खरीदा जाता था. लेकिन अब फार्मास्यूटिकल्स, गेमिंग और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों की कंपनियां भी साइबर बीमा कवरेज खरीद रही हैं. आईटी क्षेत्र में दरों में दोगुनी वृद्धि देखी गई है जबकि वित्तीय सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्रों सहित अन्य में 60% की वृद्धि देखी गई है.
कितना है साइबर बीमा का बाजार? भारत में कारपोरेट साइबर बीमा बाजार का आकार लगभग 400 करोड़ रुपए का है. न्यू इंडिया एश्योरेंस, एचडीएफसी एर्गो, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, बजाज आलियांज और टाटा एआईजी सहित प्रमुख बीमा कंपनियां इस क्षेत्र में बीमा पॉलिसी प्रदान करती हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट? साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट डॉ. दिव्या तंवर का कहना है कि आजकल साइबर सिक्योरिटीज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा हो गया है. तमाम चीजें इंटरनेट पर आधारित हैं. ऐसे में अपने दस्तावेज समेत गोपनीय जानकारी की सुरक्षा जरूरी हो गई है. यही वजह है कि लोग तेजी से साइबर बीमा खरीद रहे हैं. लोगों के बढ़ते रुझान के चलते आने वाले दिनों में बीमा की मांग और बढ़ सकती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि साइबर बीमा का कवर सिर्फ भारत में ही महंगा नहीं हुआ बल्कि कुछ दूसरे देशों में इस बीमा का प्रीमियम तीन गुना तक महंगा हुआ है. अगर इंटरनेट ठगी के ऐसे मामले आते रहे और क्लेम की संख्या बढ़ती रही तो बीमा के दाम आगे और बढ़ जाएंगे. साथ ही बीमा कंपनियों की ओर से कटौतियों को भी बढ़ााया जाएगा.
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