देश में साइबर क्राइम के मामले बढ़ने के बीच मई में नीति आयोग और मास्टरकार्ड के बीच धोखाधड़ी करने वालों की नेशनल रिपॉजिटरी बनाने को लेकर चर्चा हुई थी. तब कहा गया था कि ऑनलाइन दुनिया में अपराध तेजी से बढ़ने के बीच ऐसे कदम से पुलिस को सख्ती बरतने में मदद मिलेगी और लोगों को बचाया जा सकेगा.
एक तरफ जहां अधिकारी साइबर पुलिसिंग पर जोर दे रहे हैं, वहीं बीमा नियामक IRDAI (इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी) नागरिकों को धोखाधड़ी के खिलाफ वित्तीय सुरक्षा देने की कोशिश में लगी है.
नियामक ने हाल में कुछ फीचर, कवर, सुझाव पेश किए हैं, जिनसे योजनाओं को मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है. साइबर इंश्योरेंस की जरूरत बीते कुछ समय से महसूस होनी शुरू हुई है. साइबर हमले बढ़ने और कंपनियों, लोगों के जरूरी डेटा चोरी होने से इसका महत्व अब समझ में आने लगा है.
आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2020 में पहला लॉकडाउन लगने के बाद से साइबर रिस्क में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. एक्सपर्ट्स ने पाया है कि कोरोना वायरस से जुड़े स्कैम बढ़े हैं. लोगों के पर्सनल कंप्यूटर और फोन पर हमला हो रहा है.
रिटेल वेबसाइटों पर क्रेडिट कार्ड की जानकारी स्टोर कर के या नॉन-एनक्रिप्टेड वेबसाइट का इस्तेमाल कर के लोगों ने खुद के लिए जोखिम बढ़ाया है. ऐसे में ऑनलाइन गतिविधियों को सुरक्षा के दायरे में लाए जाने की जरूरत को समझते हुए IRDAI ने साइबर इंश्योरेंस पॉलिसी का एक मॉडल पेश किया है.
नियामक की यह पहल बहुत अच्छी है. ऑनलाइन और डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ने के साथ ऐसे बीमा की जरूरत बढ़ती ही जानी है. IRDAI के अनुसार, साइबर इंश्योरेंस के तहत कई तरह के नुकसान कवर किए जाएंगे. इनमें फाइनेंशियल लॉस, डेटा रिस्टोरेशन, साइबर एक्सटॉर्शन, आइडेंटिटी थेफ्ट, डेटा और प्राइवेसी ब्रीच, मीडिया लायबिलिटी जैसे कवर शामिल होंगे.
जनता की मदद के लिए IRDAI ने पांच हजार रुपये से कम के नुकसान के लिए FIR के बिना बेनेफिट दिए जाने का सुझाव भी दिया है. इंश्योरेंस कंपनियों को आम आदमी के हित के लिए प्रस्तावित नियमों के हिसाब से जल्द से जल्द बदलाव कर लेने चाहिए.
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