देश में कोरोना महामारी के चलते आम लोगों ने आर्थिक और स्वास्थ्य के स्तर पर बेहद बुरा दौर देखा है. लेकिन, क्या हमने सोचा है कि ये दो साल बच्चों के ऊपर कितने भारी गुजरे हैं? नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के डेटा के मुताबिक देशभर में 30,000 बच्चे ऐसे हैं, जिनके एक या दोनों मां-पिता कोरोना का शिकार हुए हैं.
इस दौरान कुल मिलाकर 30,071 बच्चे अनाथ हो गए हैं. ये डेटा NCPCR ने अलग-अलग राज्यों से आए 5 जून तक के डेटा के के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट के सामने बीते महीने रखा है. कुल 26,176 बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है, 3,621 अनाथ हो गए हैं और 274 को छोड़ दिया गया है.
ऐसे बच्चों की देखभाल के लिए कई संस्थाएं मौजूद हैं. सरकारें अनाथ हुए बच्चों को अनाथालय भेजने की बजाए रिश्तेदारों के हवाले करना चाह रही हैं. ऐसा देखने में आ रहा है कि दादा-दादी, नाना-नानी और करीबी रिश्तेदार अनाथ हुए बच्चों को संभालने का जिम्मा उठाने के लिए आगे रहे हैं. लेकिन सवाल है कि उन मृत माता-पिता के जीवन बीमा क्लेम का क्या होगा?
अनाथ बच्चों के लिए क्लेम सेटलमेंट
आमतौर पर, क्लेम सेटलमेंट की प्रक्रिया में मृतक का जीवन साथी जाकर कंपनी में दावा करता है. लेकिन, कोविड के चलते अनाथ हुए बच्चों के मामले में सवाल है कि कौन दावा करेगा और आगे इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी?
अभिभावक की नियुक्ति के लिए हिंदू माइनर और अभिभावक एक्ट के तहत संरक्षकता के लिए आधिकारिक याचिका अदालत में दाखिल की जाती है. कोर्ट के आदेश के बाद, अभिभावक इंश्योरेंस कंपनी में जाकर दावा दाखिल कर सकता है. लेकिन इंश्योरेंस के कंपनी सामने माता-पिता की मौत का डेथ सर्टिफिकेट भी पेश करना होता है.
रिया इंश्योरेंस ब्रोकर के फाउंडर और डायरेक्टर एसके सेठी के मुताबिक “साधारण तौर पर इंश्योरेंस क्लेम में पॉलिसी के ऑरिजिनल डॉक्यूमेंट्स की जरूरत पड़ती है. अगर माता-पिता दोनों की ही मौत हो जाती है, तो बैंक किसी को भी लॉकर खोलने की अनुमति नहीं देता है जब तक कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र पेश नहीं किया जाता है. इसलिए पहले कोर्ट जाकर सर्टिफिकेट जारी कराना पड़ता है ताकि बैंक जाकर लॉकर से पॉलिसी के डॉक्यूमेंट्स बैंक लिए जा सकें.”
सेठी आगे बताती हैं कि माता-पिता की मौत की जानकारी कोर्ट में देने के साथ-साथ इंश्योरेंस कंपनी को भी दी जानी चाहिए. ताकि कंपनी को भविष्य में अदालती कार्रवाई में लगने वाले वक्त के बारे में अंदाजा हो सके. यह इसलिए भी जरूरी है कि क्लेम के मामले में कोई भी फ्रॉड न कर सके.
जरूरी कागजात
उत्तराधिकार सर्टिफिकेट, माता-पिता का डेथ सर्टिफिकेट और पॉलिसी की ऑरिजिनल कॉपी के साथ इंश्योरेंस कंपनी फोटो, आधार कार्ड और पैन कार्ड की मांग करती है.
इंडिया फर्स्ट लाइफ इंश्योरेंस की COO की अत्रि चक्रवर्ती ने बताया कि “क्लेम सेटलमेंट की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए बीमाकर्ता की डेथ सर्टिफिकेट की कॉपी, पूरा भरा हुआ क्लेम फॉर्म जिस पर अभिभावक के साइन होने चाहिए. इसके अलावा पहचान पत्र, बच्चों का निवास प्रमाण पत्र और कानूनी अभिभावक या बच्चों के बैंक की पासबुक की जरूरत पड़ती है. बीमाकर्ता की मौत से संबंधित सभी मेडिकल डॉक्यूमेंट होने जरूरी है.”
फंड के गलत इस्तेमाल से कैसे बचें?
एक बार जब क्लेम फंड रिलीज हो जाता है, इसके इस्तेमाल को लेकर कंपनी का कोई लेना देना नहीं होता है.
चक्रवर्ती ने बताया कि “लीगल गार्जियन सर्टिफिकेट बाद जब इंश्योरेंस कंपनी कानूनी अभिभावक के पक्ष में सैटलमेंट करती है, तो इसके बाद उसका कोई कंट्रोल नहीं होता है. लीगल गार्जियन जैसा चाहे उस रकम का वैसा इस्तेमाल करें. एक कानूनी अभिभावक कानून की अनुमति के अनुसार अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए बाध्य है. क्लेम के पेमेंट के बाद लाइफ इंश्योरेंस कंपनी अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाती है. ”
बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोर्ट गार्जियनशिप में कुछ नियम-शर्तें लागू करती है. जैसे कि क्लेम में मिली रकम को फिक्स्ड डिपॉजिट में रखना होगा और उससे मिलने वाली ब्याज का इस्तेमाल बच्चों की देखभाल के लिए किया जाए जबतक वो 18 साल से ऊपर के न हो जाएं.
संशोधित बीमा अधिनियम, 2015 ने एक नई श्रेणी बनाई है जिसे ‘लाभार्थी नामांकित व्यक्ति’ के रूप में जाना जाता है. यदि पॉलिसीधारक के माता-पिता, पति या पत्नी या बच्चों को पॉलिसी में नामांकित किया जाता है, तो उनके अधिकार कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकार से अधिक हो जाएंगे, जिससे प्रक्रिया आसान हो जाएगी.
इस बीच, हालिया महीनों में विल निर्माण के महत्व पर कई वेबिनार कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं, जहां माता-पिता की मौत होने पर काफी विचार रखे गए हैं. इसलिए सोचने का विषय है कि आखिर आप क्यों अपनी विल को सिर्फ जीवनसाथी तक क्यों रखना, अब सारी स्थितियों को समझते हुए आगे के लिए कदम उठाने होंगे.
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