सेहत की सुरक्षा के लिए स्वाथ्य बीमा बहुत जरूरी है. कोरोना महामारी के बाद से लोग इस बीमा के महत्व को अच्छी तरह से समझ गए हैं. फिर भी देश में 43 फीसद लोगों ने स्वास्थ्य बीमा नहीं खरीदा है. यह बात सच है कि पिछले दो साल में स्वास्थ्य बीमा का प्रीमियम करीब 40 फीसद तक महंगा हो गया है. महंगाई की वजह से यह बीमा न खरीदने की बात तो समझ आती है लेकिन कुछ ऐसे भी कारण हैं जो चौंकाने वाले हैं.
फिनटेक कंपनी पॉलिसी बाजार के सर्वे के मुताबिक महंगे प्रीमियम और पॉलिसी की जटिलता की वजह से स्वास्थ्य बीमा नहीं खरीद रहे हैं. सर्वे में शामिल 19 फीसद लोगों का कहना है कि उन्हें यह समझ नहीं आता है कि स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी कैसे काम करती है? इन लोगों ने पॉलिसी की जटिलताओं की वजह से यह बीमा नहीं खरीदा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर सरकार और बीमा नियामक इरडा मिलकर कुछ बुनियादी कदम उठाएं हैं तो स्वास्थ्य बीमा काफी हद तक सस्ता हो सकता है.
क्या है स्थिति नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2021 के मुताबिक अस्पताल में भर्ती होने पर एक बार के खर्च में से औसतन 80 फीसद से ज्यादा हिस्सा लोगों को अपनी जेब से देना पड़ रहा है. इसे ‘आउट ऑफ पॉकेट’ मेडिकल खर्च कहते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि इस तरह के मेडिकल खर्च के कारण भारत में हर साल 5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हो जाते हैं. घरों में स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च की वजह से हर साल 8-9 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं.
कवर को लेकर उलझनें स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में आए दिन नई-नई पॉलिसी लॉन्च हो रही हैं. इनमें से कौन सी पॉलिसी किसके लिए बेहतर रहेगी, आम लोगों के लिए इसका चयन कर पाना मुश्किल हो जाता है. इस बीमा में सबसे पहले लोग ओपीडी कवर की सुविधा देखते हैं. एक-दो लाख रुपए के कवर वाली पॉलिसी में ओपीडी और अस्पताल में चेकअप के खर्च को शामिल नहीं किया जाता. ऐसे में लोग सोचते हैं ओपीडी का खर्च कवर ही नहीं हो रहा है तो इस बीमा को क्यों खरीदें? इनमें से अधिकतर लोग इस बात अनुमान नहीं लगा पाते कि उन्हें कभी बड़ी बीमारी हो सकती है. इसी तरह जब नई पॉलिसी खरीदते हैं तो उस समय कुछ बीमारियों के इलाज को कवर नहीं किया जाता. कई बीमारियां ऐसी होती हैं जो एक से दो साल बाद ही कवर होती हैं.
कुछ कंपनियां ऐसी स्कीम बेचती हैं जिसमें अस्पताल का रूम रेंट पूरा नहीं मिलता. इसका एक हिस्सा बीमा ग्राहक को अपनी जेब से चुकाना होता है. आम लोग सामान्य पॉलिसी खरीदने के बारे में ही चर्चा करते हैं. इसमें ऐसी कई शर्तें जुड़ी होती हैं कि इलाज के कुल खर्च का एक हिस्सा आपको अपनी जेब से ही देना होगा. इस वजह से लोग पॉलिसी खरीदने से पीछे हट जाते हैं.
कैसे आसान होगी बीमा की राह? पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट जितेन्द्र सोलंकी कहते हैं कि देश में स्वास्थ्य बीमा की महंगाई सामान्य की तुलना में करीब तीन गुना ज्यादा ऊंची है. इस वजह इस बीमा का प्रीमिमय बढ़ रहा है. लागत बढ़ने की वजह से बीमा कंपनियां प्रीमियम में कटौती नहीं करेंगी. ऐसे में सरकार को निजी अस्पतालों में इलाज के खर्च पर अंकुश लगाकर कम कराना होगा. कंपनियां अपने एजेंटों के जरिए ही स्वास्थ्य बीमा बेचने को बढ़ावा देती हैं. इस प्रीमियम में एजेंट का 20 फीसद तक का कमीशन शामिल होता है जिससे यह बीमा महंगा जाता है. टर्म इंश्योरेंस की तरह स्वास्थ्य बीमा भी ऑनलाइन मुहैया कराना जाना चाहिए. साथ ही आरोग्य संजीवनी जैसी स्टैंडर्ड पॉलिसी का प्रचार-प्रसार बढ़ाना चाहिए. इससे तरह आम लोगों के लिए सेहत सुरक्षा सस्ती हो सकती है.
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