निवेशकों के लिए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) में निवेश फायदेमंद साबित हो रहा है. दूसरी ओर सरकार के लिए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड से धन जुटाना अब एक महंगा सौदा हो गया है. वजह यह है कि अब सोने की कीमत, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की जारी कीमत से लगभग दोगुनी से अधिक हो चुकी है. इसके अलावा सरकार को गोल्ड बॉन्ड पर निवेशकों को 2.5 फीसदी सालाना ब्याज भी देना पड़ रहा है.
एसजीबी के निवेशकों का पैसा तो डबल से ज्यादा हो गया है लेकिन इससे सरकार पर देनदारी का बोझ बढ़ गया है. RBI ने 14 अगस्त को 5 साल की अवधि पूरी करने वाले एसजीबी के लिए 7,000 रुपए प्रति ग्राम का प्री-मेच्योर रिडम्पशन प्राइस तय किया है. इन बॉन्ड्स को अगस्त 2019 में 3,499 रुपए प्रति ग्राम पर जारी किया गया था.
इसके अलावा जिस उद्देश्य के लिए एसजीबी स्कीम को शुरू किया गया था, वह भी पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा है. सरकार सोने के आयात में कमी लाने और फिजिकल गोल्ड की मांग को कम करने के लिए यह स्कीम को लेकर आई थी. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की सफलता के बावजूद सोने के आयात में लगातार बढ़ोतरी देखी गई. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के मुताबिक, इस साल की पहली छमाही में सोने का आयात 325 टन के मुकाबले 16 फीसदी बढ़कर 376 टन पर पहुंच गया.
इस साल फरवरी से अबतक RBI ने एसजीबी की कोई भी नई किस्त जारी नहीं की है. एसजीबी से पैसा जुटाना सरकार के लिए महंगा पड़ना और सोने के आयात में कमी लाने का उद्देश्य पूरा न होना, ये दो ऐसे प्रमुख कारण हैं जिनकी वजह से सरकार सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी करने की आवृत्ति कम करने या फिर इसे बंद करने जैसे विकल्पों पर विचार करने को मजबूर हुई है.
हालिया मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बात की संभावना बढ़ती जा रही है कि सरकार अगले महीने RBI के साथ होने वाली बैठक में एसजीबी स्कीम को बंद करने का फैसला ले सकती है. हालांकि, अभी तक जारी सभी एसजीबी BSE और NSE पर ट्रेड करते रहेंगे. इससे निवेशकों के पास निवेश करने का मौका बना रहेगा.
सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की पहली किस्त 30 नवंबर, 2015 को जारी की थी. तब से अबतक इसकी 67 किस्तें जारी हो चुकी हैं. इसके तहत कुल 14.7 करोड़ यूनिट जारी की गई हैं. BSE और NSE के कैश सेगमेंट में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड लिस्टेड है. रिटेल इन्वेस्टर्स डीमैट अकाउंट के जरिये सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को खरीद या बेच सकते हैं.