सोने के बढ़ते दाम ने होश उड़ा रखे हैं. इससे सिर्फ आपकी ज्वेलरी ही नहीं महंगी हो रही, बल्कि इसका असर आपकी साड़ी पर भी पड़ रहा है. गोल्ड का ज्वेलरी कनेक्शन तो हम सब जानते हैं लेकिन गोल्ड के साड़ी कनेक्शन के बारे में क्या आप जानते हैं?
महंगे सोने का मतलब है महंगी साड़ी भी. लेकिन हर साड़ी नहीं बल्कि एक बेहद खास साड़ी, जिसका नाम है कांचीपुरम साड़ी. इसे हम कांजीवरम साड़ी के नाम से भी जानते हैं. शादी-ब्याह, त्योहार में महिलाएं इस साड़ी को खूब पसंद करती हैं और प्राउड फील करती हैं. इस प्राउड के पीछे छिपा है असली सोना…
कांचीपुरम या कांजीवरम साड़ी रेशम की साड़ी का एक प्रकार है जो तमिलनाडु के कांचीपुरम क्षेत्र में बनाई जाती है. देश के विभिन्न हिस्सों, खासकर दक्षिण भारत में कांचीपुरम सिल्क साड़ी का काफी ज्यादा क्रेज है. शादी-ब्याह और त्योहार जैसे खास मौकों पर कांचीपुरम साड़ी पहनी जाती है.
लेकिन सोने की आसमान छूती कीमतों की वजह से ये साड़ियां काफी महंगी हो गई हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 8 महीनों में कांचीपुरम सिल्क साड़ी की कीमत 50 फीसदी तक बढ़ी है.
सोने की कीमत बढ़ने से कांचीपुरम साड़ी की कीमत क्यों बढ़ी इसे समझने के लिए दोनों के बीच का कनेक्शन समझना जरूरी है. दरअसल, मलबरी सिल्क से बनी कांचीपुरम साड़ी के बॉर्डर और पल्लू में जरी का काम होता है. जरी के काम में सोने और चांदी के धागों और डॉट का इस्तेमाल होता है.
Kancheepuram Varamahalakshmi Silks की वेबसाइट के मुताबिक, इसकी कीमत 3,000 रुपए से लेकर 4 लाख रुपए तक जाती है. साड़ी में सिल्क, सोने और चांदी के वर्क के हिसाब से कीमतें तय होती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, चेन्नई में 1 अक्टूबर 2023 को 22 कैरेट सोना का भाव 5,356 रुपए प्रति ग्राम था जो 21 मई 2024 को बढ़कर 6,900 रुपए प्रति ग्राम पहुंच गया. इस दौरान चांदी 75.5 रुपए प्रति ग्राम से बढ़कर 101 रुपए प्रति ग्राम पहुंच गई है.
सोने-चांदी की कीमतें बढ़ने से कांचीपुरम साड़ी की कीमत भी बढ़ी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर अंत में जिस कांचीपुरम साड़ी की कीमत 70,000 रुपए थी, अब उसके दाम बढ़कर 1.2 लाख रुपए पर पहुंच गए हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने ने 2,450 डॉलर प्रति औंस के नए स्तर को छुआ. इसकी वजह इजराइल-ईरान, रूस-यूक्रेन युद्ध समेत दुनियाभर के कई हिस्सों में भू-राजनीतिक तनाव है. गोल्ड और सिल्वर को सेफ हेवेन माना जाता है. इसलिए जब भी वैश्विक स्तर पर किसी तरह की उथल-पुथल होती है, सोने की डिमांड बढ़ती है और इस वजह से दाम बढ़ते हैं.
कांचीपुरम साड़ी की कीमतें बढ़ने से महिलाएं किफायती साड़ियां खरीदने को मजबूर हैं. यानी ऐसी साड़ियां जिनमें या तो सोने और चांदी का वर्क नहीं है या फिर इनका इस्तेमाल काफी कम हुआ है.
साल 2005-2006 में भारत सरकार की ओर से कांचीपुरम साड़ी को GI टैग दिया गया था. भारत में कई तरह की सिल्क की साड़ियां मौजूद हैं. इसमें बनारस की रेशमी साड़ी से लेकर पाटन की पटौला तक शामिल हैं. बावजूद इसके कांचीपुरम साड़ी एक खास जगह रखती है.