virtual currency: नोबल पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्त्री जेम्स टोबिन की एक सोच फिर से भारत में चर्चा में आ गई है. वैसे तो टोबिन थोड़े समय के वित्तीय लेनदेन के जरिए भारी सट्टेबाजी और उतार-चढ़ाव पर लगाम के लिए लगाए जाने वाले खास टैक्स की अवधारणा सबके सामने रखने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उनके नाम के साथ एक और सोच जोड़ी जाती है. और वह है सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC). करीब तीन दशक से भी ज्यादा समय पहले उन्होंने अमेरिकी फेडरल रिजर्व को एक ऐसा माध्यम लोगों को मुहैया कराने का सुझाव दिया जिसमें जमा की सुविधा हो और नकदी की सुरक्षा हो. माना जाता है कि यह CBDC को लेकर पहली बड़ी सोच थी.
वर्चुअल करेंसी का इतिहास
CBDC की सोच पहली बार हकीकत के जमीन पर उतरी जब ट्यूनीशिया ने 2015 में eDinar (जिसे Digicash और BitDinar भी कहा गया) के नाम से ब्लॉकचेन आधारित राष्ट्रीय करेंसी पेश की. इसी के साथ इक्वाडोर ने SISTEMA de Dinero Electronico नाम से अपनी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) पेश की. मकसद यह नहीं था कि मौजूदा करेंसी को हटा कर नई मुद्रा लाई जाए, बल्कि नई कागजी मुद्रा लाने पर होने वाले खर्च को कम किया जा सके.
लेकिन, क्या सरकारी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) कामयाब हो सकी? 2018 में प्रोफेसर लॉरेंस एच व्हाइट के अध्ययन से पता चला कि वर्चुअल करेंसी (virtual currency) के लिए 71 फीसदी से ज्यादा खातों में कोई लेनदेन हुआ ही नहीं.
भारत में 2019 में आया प्रस्ताव
इस अध्ययन के ठीक एक साल बाद यानी 2019 में तत्कालीन वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग की अध्यक्षता वाली समिति का विचार था कि भारत में सरकारी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) यानी CBDC लाने पर खुले दिमाग से विचार होना चाहिए. इसके साथ ही समिति की राय थी कि प्राइवेट वर्चुअल करेंसीज (प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी) पर पाबंदी लगनी चाहिए.
वैसे तो समिति के सुझावों के हिसाब से संसद के बजट सत्र में एक विधेयक लाने का प्रस्ताव था, लेकिन वो हो नहीं हो सका.
अब RBI ने की पहल
अब रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर का बयान आया है कि केंद्रीय बैंक (RBI) चरणबद्ध तरीके से CBDC लाने की रणनीति पर काम कर रहा है. साथ ही निकट भविष्य में इसे लेकर पायलट परियोजना शुरू की जा सकती है.
अब सवाल यह है कि क्या ऐसी कोई करेंसी भारत में कामयाब होगी? इस सवाल के जवाब में 3 बातों पर गौर करना होगाः
1. लेनदेन में नकदी का इस्तेमाल, 2. कागजी मुद्रा की लागत और 3. बिटकॉइन जैसे क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrency) का आकर्षण.
लेनदेन में कैश का दबदबा
भले ही डिजिटल लेनदेन के इनोवेशन के मामले में भारत दूसरे देशों से काफी आगे है, लेकिन एक सच यह है कि आज भी लेनदेन के लिए ज्यादातर भारतीय कैश को ही तरजीह देते हैं.
दिसंबर, 2018 – जनवरी, 2019 के बीच 6 प्रमुख शहरों में रिजर्व बैंक (RBI) के एक सर्वे में यह बात सामने आई कि 54 फीसदी से ज्यादा लोग नकद में भुगतान करना पसंद करते हैं जबकि बात भुगतान लेने की आती है तो यह फीसदी करीब 50 फीसदी है. यही नहीं 500 रुपये तक के लेनदेन में दो तिहाई या उससे ज्यादा प्रतिभागियों ने नकदी (cash) इस्तेमाल की बात कही, वहीं 5000 रुपये से ज्यादा के लेनदेन में यह संख्या करीब 30% रही.
इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि बड़े लेनदेन में भले ही वर्चुअल करेंसी (virtual currency) एक माध्यम बन जाए, लेकिन बड़ी संख्या में लेनदेन के लिए नकदी (cash) को ही तरजीह दी जाएगी.
नकदी पर क्या हैं खर्च के आंकड़े?
अब बात लागत की. रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट बताती है कि करेंसी की छपाई पर 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में हर साल औसतन 4,400 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. नकद को लाने-ले जाने और दूसरे खर्चें मिला दे यह रकम और भी बढ़ जाएगी.
कोशिश यही होगी कि इस खर्च को कैसे कम किया जाए और ऐसे में वर्चुअल करेंसी (virtual currency) एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखी जा सकती है.
क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती लोकप्रियता
तीसरी और अंतिम बात सबसे अहम है और वो है बिटकॉइन जैसी प्राइवेट डिजिटल करेंसी (क्रिप्टोकरेंसी- cryptocurrency) की बढ़ती लोकप्रियता. जिस तरह से कीमतें हाल के दिन में बढ़ीं, उसने युवाओं के भीतर अच्छा-खासा क्रेज पैदा कर दिया.
चेन एनालिसिस की रिपोर्ट के हवाले से ब्लूमबर्ग लिखता है कि क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrency) में अप्रैल 2020 से मई 2021 के बीच निवेश करीब 900% बढ़ा और 92.30 लाख डॉलर से 6.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया. एक अनुमान है कि देश में करीब 1.5 करोड़ लोग क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrency) में खरीद-फरोख्त करते हैं.
यह स्थिति तब है जब देश में प्राइवेट वर्चुअल करेंसी (virtual currency) पर पाबंदी की तलवार लटक रही है, हालांकि सरकार से ऐसे संकेत मिल रहे हैं अगर अगर क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrency) पर बैन लगाया भी गया तो भी लोगों को इसमें अपना निवेश निकालने के लिए कुछ समय दिया जाएगा.
सरकारी बनाम निजी वर्चुअल करेंसी
तो क्या समझा जाए कि ये निवेशक सरकारी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) को भी समान भाव देंगे. शायद नहीं. वजह साफ है कि सरकारी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) पर भले ही फिएट करेंसी की तरह सरकारी हुकुम का ठप्पा लगा हो, लेकिन उसमें निजी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) की तरह अप्रत्याशित मुनाफे (और नुकसान) जैसी स्थिति नहीं बनेगी.
यही वो तथ्य है जो सरकारी और निजी वर्चुअल करेंसी (virtual currency) के बीच बड़ा अंतर पैदा करती है और आकर्षण का आधार बनती है.
जाहिर है कि रिजर्व बैंक (RBI) जब भी CBDC जारी करे, उसमें कुछ हद तक लेनदेन का आधार बनने की क्षमता तो हो सकती है, लेकिन वह आकर्षक भी होगी, ऐसा कहना मुश्किल है.