वैक्सीनेशन, फ्यूल प्राइस और मॉनसून पर टिकी है रिकवरी: अर्थशास्त्री

5% लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लगे हैं और बाजारों व टूरिस्ट स्थलों पर भारी भीड़ हो रही है, ऐसे में तीसरी लहर अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा सकती है.

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रेटिंग एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कारोबारी गतिविधियों पर लगाई गई रोक को वापस लेने के बाद जुलाई 2021 में विभिन्न उच्च आवृत्ति वाले औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के संकेतकों, आवाजाही और टोल संग्रह में सुधार देखने को मिला है.

रेटिंग एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कारोबारी गतिविधियों पर लगाई गई रोक को वापस लेने के बाद जुलाई 2021 में विभिन्न उच्च आवृत्ति वाले औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के संकेतकों, आवाजाही और टोल संग्रह में सुधार देखने को मिला है.

कोरोना की दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना एक चुनौती है. इस बीच, वैक्सीनेशन (vaccination) की सुस्त रफ्तार, तेल की ऊंची कीमतें और कमजोर खरीफ बुवाई, रिकवरी पर बुरा असर डाल रहे हैं. सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर “करीब और निश्चित” है. इसके मुताबिक, अभी तक केवल 5 फीसदी लोगों को वैक्सीन (vaccination) के दोनों डोज लग पाए हैं और इस बीच बाजारों व टूरिस्ट स्थलों में भारी भीड़ नजर आ रही है, ऐसे में तीसरी लहर अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचा सकती है.

वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार

रिसर्च एजेंसी QuantEco के मुताबिक, “जून के आखिरी हफ्ते में रोजाना 62 लाख लोगों को वैक्सीन (vaccine) लग रहा थी, जो कि जुलाई के पहले दो हफ्तों में गिरकर 35 लाख तक रोजाना के औसत पर आ गई. अभी तक देश के 22 फीसदी लोगों को ही वैक्सीन का एक डोज लग पाया है.” एजेंसी की अर्थशास्त्री युविका सिंघल का कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में इसमें तेजी देखी जा सकती है.

खरीफ की कमजोर बुवाई

इस बीच, ठहरे हुए मॉनसून (Monsoon) ने भी चिंता बढ़ा दी है. सिंघल का कहना है कि जुलाई के दूसरे हफ्ते में करीब 8 फीसदी कम बारिश हुई है. इसकी वजह से खरीफ की बुवाई सामान्य से कम है. खासतौर पर, धान की, जिसे अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता पड़ती है.

मॉनसून का महत्व

देश की अर्थव्यवस्था में मॉनसून (Monsoon) का काफी महत्व है. जीडीपी का 20 फीसदी हिस्सा कृषि से आता है और यह क्षेत्र 40 फीसदी लोगों को रोजगार देता है. वैसे भी कोरोना की दूसरी लहर ने उपभोग पर काफी बुरा असर डाला है. अच्छे मॉनसून (Monsoon) से उत्पादन बढ़ेगा और इससे मुद्रास्फीति में भी कमी आएगी. साथ ही, सरकार का आर्थिक दबाव भी कम होगा.

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें

इस बीच फ्यूल (fuel) की ऊंची कीमतें में रिकवरी की प्रक्रिया पर बुरा असर डाल रही हैं. अर्थशास्त्री अभिरूप सरकार का कहना है कि सरकार को कल्याणकारी योजनाओं में अधिक से अधिक धन लगाना चाहिए, इससे आम लोगों के हाथ में पैसा आएगा और डिमांड की बढ़ोतरी होगी.

QuantEco का कहना है कि फ्यूल प्राइस बढ़ने से फ्यूल इंफ्लेशन में वृद्धि होगी. रेटिंग एजेंसी इकरा के वाइस प्रेसिडेंट प्रशांत वशिष्ठ के अनुसार, पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों (petrol-diesel prices) से ग्रोथ पर असर पड़ेगा और अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने में दिक्कत होगी.

एक्साइज ड्यूटी में कमी की जरूरत

QuantEco के अनुमान के मुताबिक, यदि ईंधन (fuel) के एक्साइज ड्यूटी में 5 रुपये की भी कमी की जाती है तो से उपभोक्ता मुद्रास्फीति (CPI) में 8 से 10 बेसिस प्वाइंट तक गिरावट आ सकती है.

Published - July 13, 2021, 04:47 IST