पेट्रोल व डीजल (Petrol-Diesel) की महंगाई से फिलहाल निजात नहीं मिलने वाली है, न ही सरकार इसके लिए करों में कोई कटौती करने जा रही है. इस बात के स्पष्ट संकेत के केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के वी सुब्रमण्यम ने दिए हैं. सुब्रमण्यम ने कहा है कि खुदरा महंगाई दर में खाद्य महंगाई की हिस्सेदारी 60 फ़ीसदी तक है, जबकि ईंधन की हिस्सेदारी 3 फीसदी से भी कम है. सीईए ने एक साक्षात्कार में कहा ”यदि आप पिछले 6-7 वर्षों को देखें, तो खुदरा महंगाई में खाद्य महंगाई का योगदान 35-60% रहता है.
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में पेट्रोल और डीजल का भारांक 3% से भी कम है, जबकि भोजन का भार लगभग 50% है. दूसरी ओर आप ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी जैसे दूसरे प्रभावों पर विचार करें, तो इसका भारांक लगभग 5% है. इससे यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि ईंधन की कीमतों की महंगाई में बहुत बड़ी भूमिका नहीं है.”
यह पूछे जाने पर कि क्या ईंधन करों में कटौती संभव नहीं है, सुब्रमण्यम ने कहा: “जब हम इसे महंगाई के नजरिए से देखते हैं, तो महंगाई में (पेट्रोल और डीजल का) योगदान क्या है, यह हमें ध्यान में रखना होगा. इसलिए हमें इन सभी पहलुओं पर डेटा के आधार पर ही बोलना चाहिए.”
सुब्रमण्यम ने कहा कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर महंगाई पर पड़ रहा है. ब्रेंट क्रूड पिछले साल के 30 डॉलर प्रति बैरल से इस महीने करीब 78 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. ईंधन की महंगाई 12.7% बढ़ी, क्योंकि तेल विपणन कंपनियों ने कीमतों में वृद्धि जारी रखी, इस प्रक्रिया में परिवहन और संचार सेवाओं की लागत भी बढ़ गई. इसकी तुलना में, खाद्य महंगाई मामूली रूप से 5.15% ही बढ़ी. हालांकि, खाने-पीने की चीजों और ईंधन को छोड़कर मुख्य महंगाई दर जून में घटकर 6.2 फीसदी पर रही, जोकि मई में 6.4 फीसदी पर थी.
इससे पहले केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी पेट्रोल और डीजल की महंगाई घटाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोई उपाय किए जाने के बजाय गेंद राज्य सरकारों के पाले में डाल चुकी हैं. 5 मार्च को सीतारमण ने कहा था कि पेट्रोल और डीजल पर टैक्स कम करने का फ़ैसला केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर लेना होगा. सीतारमण यहां तक कह चुकी हैं कि तेल कीमतें अब पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो चुकी है और दाम तय करने में अब सरकार की कोई भूमिका नहीं है.
मोदी सरकार के दोनों कार्यकालों में लंबे समय तक पेट्रोलियम मंत्री रहे धर्मेंद्र प्रधान तो इससे भी एक कदम आगे बढ़कर मामले का रुख राज्यों के अलावा तेल उत्पादक देशों की ओर मोड़ने की कोशिश कर चुके हैं, पेट्रोलियम मंत्री रहने के दौरान प्रधान ने हाल ही में तेल की बढ़ती कीमतों को काबू करने के लिए ओपेक देशों से चरणबद्ध तरीके से कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती बंद कर उत्पादन बढ़ाने का आग्रह किया था.