किसी भी राज्य की पुनर्वितरण की भूमिका उसके अस्तित्व के प्राथमिक कारणों में से एक होती है. हर सरकार यह कार्य करती है. जैसे-जैसे देश आगे बढ़ा है, विभिन्न सरकारों ने पिरामिड के निचले हिस्से तक राहत पहुंचाने के लिए कल्याणकारी परियोजनाओं के प्रति एक सुनियोजित और संरचित दृष्टिकोण अपनाया है. ये कल्याणकारी योजनाएं हेल्थकेयर, प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा, सार्वभौमिक बुनियादी आय के आधार पर प्रत्यक्ष आय सहायता, परिवहन, एक सीमा तक मुफ्त यूटिलिटी और यहां तक कि रसोई प्रबंधन जैसे विषयों को भी संबोधित कर रही हैं.
अधिकाधिक योजनाएं वंचित जातियों व वर्गों, कमजोर आयु समूहों, किसानों, ब्लू-कॉलर वर्कर्स और महिलाओं को लक्षित करके चलाई जा रही हैं. एक राज्य का मुख्यमंत्री नियमित रूप से वंचित व्यक्ति को पालने से लेकर कब्र तक ढकने का दावा करता है.
इस दृष्टिकोण पर सैद्धांतिक रूप से आपत्ति करने की कोई बात नहीं है और विभिन्न सरकारों के कल्याणकारी उपायों का स्वागत किया जाना चाहिए. भले ही वे वोट हासिल करने के इरादे से किए गए हों, प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद जरूरतमंद लोगों की मदद कर रहा है. लक्ष्य तक संसाधनों के सीधे हस्तांतरण के साथ ही भ्रष्टाचार की घटनाओं में भी कमी आ रही है.
हालांकि, एक सावधानी रखनी है. लोकलुभावनवाद के लिए हड़बड़ी में सरकारों को कर्ज नहीं लेना चाहिए. कर्ज का जाल सरकार के लिए भी उतना ही खतरनाक है, जितना कि एक व्यक्ति के लिए. देश की विभिन्न सरकारें कर्ज में डूबी हुई हैं और अपने स्वयं के कर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा पिछले ऋणों को चुकाने में खर्च करती हैं.
सरकारों को कल्याणकारी योजनाओं के वित्तपोषण के लिए अपनी राजस्व आय बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए. इससे ऋण के बोझ से बचने और कल्याणकारी योजनाओं को निरंतर जारी रखने में मदद मिलेगी. लेकिन राजस्व सृजन की योजना बनाते समय सरकारों को केवल मध्यम वर्ग पर अधिक कर लगाने से बचने की कोशिश करनी चाहिए और ना ही कर राजस्व के लिए ईंधन जैसे क्षेत्रों पर फोकस करना चाहिए. ईंधन पर अधिक कर महंगाई को बढ़ाएगा और इससे लोगों क्रय शक्ति कम हो जाएगी.
सरकार को राजस्व स्रोतों को अधिकतम करने का प्रयास करना चाहिए और अनुपालन में वृद्धि के लिए दरों को मध्यम रखने की कोशिश करनी चाहिए. साथ ही साथ राजस्व में लीकेज को रोकना चाहिए. तभी गरीबों के लाभ के लिए लंबे समय तक चलने वाले कल्याणकारी कार्यक्रम तैयार किए जा सकते हैं.