घर के बजट (Budget) का बढ़ना अब आम बात हो गई है. लोग बजट (Budget) को कम करने की कोशिश करते हैं जो ना चाहते हुए भी बढ़ गया है. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद इसे कम नहीं किया जा सकता है? एक भारतीय परिवार को जिसमें केवल पति-पत्नी शामिल हैं, उनको साफ पानी पीने के लिए 6,000 रुपये (20 लीटर जार) खर्च करना पड़ते है. वहीं वॉटर प्यूरीफायर के रखरखाव पर उन्हें 5,000 रुपये खर्च करना होते है. हालांकि पहले साल में यह रखरखाव फ्री होता है. जबकि सर्विसिंग की लागत आने वाले सालों में बढ़ जाती है.
हमारे देश में आबादी की बड़ा हिस्सा किराए के घर में रहता है, जो प्यूरीफायर में इन्वेस्ट करने से परहेज करता है. इनमें से कई लोग ब्रांड का पानी अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। ये लोग पानी के लिए लोकल वॉटर सप्लाई पर निर्भर रहते हैं.
पानी की कमी एक वैश्विक मुद्दा है लेकिन पीने का साफ पानी हमारा मूल अधिकार है. बढ़ती लागत के कारण एक इंसान कम पानी नहीं पी सकता है. पानी की बढ़ती कीमत धीरे-धीरे हमारे बजट में शामिल होती जा रही हैं. जिसका सीधा असर घर के बजट पर पड़ रहा है. लोगों का फोकस केवल सब्जियों और मांस की बढ़ती कीमतों पर है. यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि एक भी राजनीतिक दल को इसकी परवाह नहीं है.
2004 में दिवंगत एक्टर इरफान खान की फिल्म ‘चरस’ आई थी. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं किया था लेकिन फिल्म में एक डायलॉग था जो इस स्थिति को बखूबी बयां करता है. “इस देश में जब तक कोई समस्या बड़ी न हो, तब तक वो समस्या नहीं है” .
दुर्भाग्य से, पानी की समस्या एक ऐसी चीज है जिसके साथ हमें जीना ही पड़ेगा. वहीं साफ पानी का बजट बढ़ता ही रहेगा. दूध की लगातार बढ़ रही कीमतों के बीच भले ही लोगों ने घर आने वाले मेहमानों से चाय या कॉफी के बारे में पूछना छोड़ दिया है. लेकिन अब वह दिन दूर नहीं जब लोग पानी मांगने या फिर ऑफर करने से पहले दो बार सोचेंगे. अब हमें बारिश का पानी को सेव करने पर ही सही पानी मिल सकता है. नीति निर्माताओं को देश के लिए पीने के पानी पर ध्यान देने के साथ लांग टर्म वॉटर पॉलिसी बनाने की जरूरत है