अर्थव्यवस्था में हुए सुधार के साथ जिस सेक्टर में सबसे अधिक बदलाव देखने को मिले हैं, वह टेलिकॉम (telecom) है. कोलकाता में 1995 में काले तार वाले हैंडेसट के साथ हुई शुरुआत ने ढाई दशक बाद ऐसा रूप ले लिया है, जिसकी तब शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी.
हालांकि, बाजार में हुए बदलावों और तमाम तरह के प्रशासनिक और न्यायिक फैसलों ने समय के साथ न सिर्फ सेक्टर का जोश ठंडा किया, बल्कि गिरावट का दौर भी शुरू कर दिया. सरकार ने अब टेलिकॉम सेक्टर के लिए कुछ घोषणाएं की हैं, जिनकी मदद से कंपनियां और बाजार फिर से मजबूती के साथ खड़े हो सकते हैं.
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की पेमेंट और स्पेक्ट्रम बकाया पर चार साल की रियायत से एयरटेल और वोडाफोन आइडिया (VI) को राहत मिलेगी. इसी के साथ सरकार ने AGR के दायरे से नॉन-टेलीकॉम रेवेन्यू को हटाया है. इससे कंपनियों का आगे चलकर चुकाया जाने वाला ड्यू घटेगा.
इन सबके बीच सबसे बड़ा फैसला टेलीकॉम सेक्टर में ऑटोमैटिक रूट के जरिए 100 प्रतिशत FDI को अनुमति देने का रहा है. इससे घरेलू बाजार में नई टेलीकॉम कंपनियों के लिए रास्ता खुलेगा. ग्राहकों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी और युवाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़ेंगे.
हालांकि, इन कदमों का प्रभाव इसपर निर्भर करेगा कि देश में ग्राहकों की पैसे दे पाने की क्षमता कितनी है. देश के टेलीकॉम मार्केट को लेकर एक आम शिकायत यह रही है कि प्रति यूजर होने वाली औसत कमाई (average revenue per user – ARPU) बहुत कम है. इस कारण घरेलू बाजार कंपनियों को आकर्षित नहीं कर पाता.
इसमें कोई शक नहीं है कि इंडियन मार्केट बहुत बड़ा है. मगर सर्विस प्रोवाइडर के बाजार में बने रहने के लिए ARPU काफी मायने रखता है. सरकार की तरफ से हो रहे प्रयास आगे चलकर तभी सफल होंगे, जब ARPU का स्तर बढ़ेगा. भारतीय ग्राहकों को दुनिया में सबसे सस्ते टेलीकॉम टैरिफ का फायदा मिल रहा है. मार्केट में बने रहने का दबाव जल्द सेवाओं को महंगा कर सकता है.