Inflation Impact: जुलाई की शुरुआत उम्मीदों के मुताबिक नहीं रही. कम से कम हमारा आपका जेब तो यही कह रहा. दूध महंगा हुआ. रसोई गैस का सिलिंडर महंगा हुआ. पेट्रोल-डीजल के भाव दो महीने में 33वीं बार बढ़े. ये तो बस बानगी है, कई दूसरे सामान के दाम भी पीछे नहीं है. ऐसा नहीं है कि यह सब जुलाई में ही हुआ है, पिछले कुछ समय से रोजाना के सामान से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं, सभी के दाम उत्तर के दिशा में ही बढ़ रहे है. हो सकता है कि आपने इन्हें महसूस भी किया होगा, अब समग्र रूप से इन्हें समझने के लिए आपको 12 तारीख का इंतजार करना होगा जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित जून के लिए खुदरा महंगाई दर के आंकड़े आएंगे.
अब आप पूछेंगे कि इस आंकड़े का हमारे लिए क्या मतलब है? इस सवाल को समझने के पहले खुदरा महंगाई दर की ताजा स्थिति को समझ लेते हैं. मई के आंकड़ों में यह दर 6.30 फीसदी बतायी गयी. यह दर भारत सरकार और रिजर्व बैंक के बीच सहमति के हिसाब से महंगाई दर के लक्ष्य (Inflation Targeting) से कहीं ज्यादा है. 2016 में पहली बार देश में लाए गए इस अवधारणा के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर को कम से कम 2 फीसदी और ज्यादा से 6 फीसदी पर रखने का लक्ष्य तय किया गया. इन्हीं दर पर कुछ दिन पहले लक्ष्य का अगले पांच साल के लिए नवीकरण किया गया है.
रिजर्व बैंक गवर्नर की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति जब हर दो महीने के अंतराल पर बैठक करती है तो नीतिगत ब्याज दर (जिसे तकनीकी तौर पर रेपो रेट कहते हैं, यानी वो दर जिस पर रिजर्व बैंक, आम बैंकों को कर्ज देता है) की समीक्षा इस लक्ष्य के परिपेक्ष्य में करती है . ध्यान रहे कि नीतिगत ब्याज दर घटेगी तो कर्ज सस्ता होगा और विपरित परिस्थिति में महंगा. गौर करने की बात यहां यह है कि बीते साल मई के बाद से लेकर अब तक रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया.
आम तौर पर नीतिगत ब्याज दर में बदलाव के समय जमा को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं होती, लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि कर्ज तभी सस्ता होगा, जब बैंक सस्ती जमा जुटाएंगे, यानी नीतिगत ब्याज दर घटती है तो जमा पर मिलने वाला ब्याज भी घट सकता है. गौर करने की बात है कि जब नीतिगत ब्याज दर बढ़ायी जाती है तो आम तौर पर कर्ज पर भले ही ब्याज दर बढ़ जाए, लेकिन उसी तत्परता से जमा पर ब्याज दर नहीं बढ़ायी जाती.
आम धारणा यही है कि महंगाई दर पर लगाम लगाने के लिए ब्याज दर बढ़ा दी जाती है. सोच यही होती है कि इससे खर्च पर लगाम लगेगी, मांग कम होगी और महंगाई दर काबू में आ सकती है. लेकिन सोचने की बात यह है कि जब मौजूदा समय में बाजार में मांग ही नहीं है तो फिर ब्याज दर बढ़ाने जैसा कदम क्यों उठाया जाए. उलटे इस बात की आशंका हो जाती है कि ब्याज दर बढ़ी तो विकास प्रभावित होगा. यही वजह है कि ताजा सूरते-हाल में लक्ष्य के ऊपर महंगाई दर होना मौद्रिक नीति समिति के लिए दुविधा का सबब बन गया है.
12 जुलाई को खुदरा महंगाई दर के जो आंकड़े आएंगे वो ज्यादा ही रहेंगे. फिर भी अगले महीने जब 4-6 अगस्त के बीच समिति की बैठक होगी कि तो विकास की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नीतिगत ब्याज दर में कमी नहीं करने का विकल्प बेहतर समझ सकती है. यदि ऐसा हुआ तो इसके दो मतलब होंगे – पहला तो यह कि महंगाई दर भले ही ज्यादा हो, लेकिन घर, गाड़ी या फिर व्यक्तिगत कर्ज की आपकी किस्त नहीं बढ़ने वाली. दूसरी ओर बैंक जमा पर ब्याज दर घटाने का जोखिम नहीं उठाएंगे, वो भी तब छोटी बचत योजनाओं पर 30 सितम्बर तक यथावत रखी गयी है.
फिर भी आपको नुकसान तो हो ही रहा है. नुकसान यह है कि आपके बटुए में पड़ी रकम का मोल कम हो जाएगा. आप उस रकम से जितना सामान खरीद सकते थे, अब उतनी ही मात्रा के लिए ज्यादा रकम देनी होगी. इसीलिए कहा भी जाता है कि महंगाई एक तरह का कर है जिसका ज्यादा बोझ उस पर पड़ता है, जिसकी कमाई कम होती है या फिर कम होती जाती है. अर्थशास्त्र की भाषा में कहे तो यह ‘Regressive Taxation’ है.
अब आप क्या करेंगे? पहले तो यह जितनी कमाई है, उसमें प्राथमिकता तय कर लें. जिन खर्चों के बगैर जिंदगी नहीं चल सकती है, वो आपकी प्राथमिकता में सबसे ऊपर रहनी चाहिए, वहीं हर महीने एक निश्चित रकम आकस्मिक निधि में रखे ताकि अगर बीमार पड़े तो पैसे के लिए ज्यदा चिंता नहीं नहीं करनी पड़े. इन सब के बाद अगर आपके पास कुछ रकम हर महीने बच रही है तो उसे बचत खाते में भी नहीं छोड़े, बल्कि साल भर के रेकरिंग डिपॉजिट में जमा करें, आज की ब्याज दर के हिसाब से फायदा होगा. डाक घर में रेकरिंग डिपॉजिट खुलवाते हैं तो वहां बैंक से भी ज्यादा कमाई हो सकती है.
महंगाई परेशान तो करेगी, फिर भी थोडी राहत की उम्मीद तो कर ही सकते हैं.
Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.