दक्षिण-पश्चिम मानसून: गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में सूखे की आशंका, दालों के लिए शुभ संकेत

southwest monsoon:मानसून के रिवाइवल और खरीफ की बुवाई में तेजी आती है तो ये आने वाले महीनों में अनाज की कीमतों के दबाव को कम करने में मदद कर सकती है'.

monsoon, Skymet, Skymet monsoon forecast, Indian monsoon, oilseeds, rainfall deficit, weather forecast, monsoon 2021, harvesting, agriculture, rbi, indian economy, Economy

विकसित उन्नत किस्मों व तकनीकों को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके। इसके लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है

विकसित उन्नत किस्मों व तकनीकों को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके। इसके लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है

Southwest Monsoon: दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon) जून से शुरू हुए चार महीने के सीजन के अपने अंतिम महीने में प्रवेश करने के लिए तैयार है. प्राइवेट वेदर फोरकास्टिंग कंपनी स्काईमेट ने सोमवार को मानसून के अपने 2021 के पूर्वानुमान को ‘नॉर्मल’ से कम करके ‘बिलो नॉर्मल’ कर दिया है. कंपनी ने अपने अप्रैल के पूर्वानुमान में मानसून का लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) का 103% रहने का अनुमान लगाया था. स्काईमेट ने कहा कि गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में सूखे की आशंका है. गुजरात में मूंगफली और कपास की फसलों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

मानसून अब LPA का 94% रहने की उम्मीद

स्काईमेट ने अपने नए अपडेट में कहा, ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून अब एलपीए का 94% रहने की उम्मीद है. इसका मॉडल एरर प्लस/माइनस 4% है. जून-सितंबर का एलपीए 880.6 मिलीमीटर है’.

LPA, 50 साल की अवधि में साउथवेस्ट मानसून के दौरान पूरे देश में प्राप्त एवरेज रेनफॉल (average rainfall) है. 1951 और 2000 के वर्षों में एवरेज रेनफॉल के आधार पर वर्तमान एलपीए 89 सेमी है. यह एक बेंचमार्क के रूप में काम करता है.

यदि एक्चुअल रेनफॉल एलपीए के 90 प्रतिशत से कम हो जाती है तो इसे देश में कम वर्षा होना कहा जाता है. इसी तरह, अगर एलपीए के 110 प्रतिशत से अधिक वर्षा होती है, तो देश में इसे अधिक वर्षा होना कहा जाता है.

वहीं जब एक्चुअल रेनफॉल एलपीए के 96 और 104 प्रतिशत के बीच होती है तो इसे नॉर्मल कहा जाता है.

क्या फसलों पर पड़ेगा असर?

स्काईमेट ने कहा, सामान्य से कम मानसून की स्थिति में अब तक सुधार नहीं हुआ है. ये भी बताया गया है कि 2021 के पूरे सीजन में गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, केरल और पूर्वोत्तर भारत में कम बारिश होने का अनुमान है.

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि चूंकि देश के कई हिस्सों में खरीफ फसलों की बुवाई लगभग हो चुकी है और अधिकांश फसलों का रकबा उनके 2020 के स्तर के करीब है, इसलिए मानसून में गिरावट का उनकी अंतिम पैदावार पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि ऑइल सीड पर इसका प्रभाव पड़ सकता है.

Reservoir levels पर नजर रखने की जरूरत

केयर रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस ने कहा, ‘जलाशय के स्तर (Reservoir levels) पर पैनी नजर रखने की जरूरत है. यदि जल स्तर खतरनाक रूप से गिरता है, तो यह रबी की फसल में व्यवधान पैदा कर सकता है.

सभी फसलों में, तिलहन (oilseeds) सबसे कमजोर हैं. रकबे में कोई भी तेज गिरावट इसकी कीमतों को बढ़ाएगी’. उन्होंने कहा कि ‘नवीनतम बुवाई के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल अनिश्चित मानसून के कारण कपास और तिलहन का रकबा सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है’.

क्या कहा आरबीआई गवर्नर ने?

RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने बयान में कहा, ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून के रिवाइवल और खरीफ की बुवाई में तेजी आती है तो ये आने वाले महीनों में अनाज की कीमतों के दबाव को कम करने में मदद कर सकती है’.

उन्होंने कहा कि ‘इंफ्लेशन 2021-22 की दूसरी तिमाही तक अपर टॉलरेंस बैंड के करीब रह सकती है, लेकिन खरीफ फसल की आवक के कारण ये दबाव 2021-22 की तीसरी तिमाही में कम हो सकता है’.

जुलाई और अगस्त में मानसून का ब्रेक

इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत जल्दी हुई और जून के अंत में अच्छी बारिश हुई. ये एलपीए के 110 प्रतिशत के करीब थी. हालांकि जुलाई महीने में एलपीए की 93 प्रतिशत रेनफॉल दर्ज की गई.

मानसून में पहला ब्रेक जुलाई में और दूसरा ब्रेक अगस्त में देखा गया. हालांकि अच्छी खबर यह है कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के वर्षा सिंचित क्षेत्रों (rainfed areas) में अब तक पर्याप्त बारिश हुई है. यह दालों (pulses) के लिए शुभ संकेत है.

Published - August 24, 2021, 04:19 IST